धर्मसंसद जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुई, जिसमें देशभर के पूज्य सन्तों की उपस्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंघचालक माननीय मोहन भागवत जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि शबरीमला समाज का संघर्ष है। वामपंथी सरकार न्यायपालिका के आदेशों के परे जा रही है। वे छलपूर्वक कुछ गैर श्रद्धालुओं को मन्दिर के अन्दर ले गए हैं, जो अयप्पा भक्त हैं, उनका दमन किया जा रहा है, जिससे हिन्दू समाज उद्वेलित है। हम समाज के इस आन्दोलन का समर्थन करते हैं। न्यायपालिका में जाने वाले याचिकाकर्ता भी भक्त नहीं थे। आज हिन्दू समाज के विघटन के कई प्रयास चल रहे हैं। कई प्रकार के संघर्षों का षड्यंत्र किया जा रहा है। जातिगत विद्वेष निर्माण किये जा रहे हैं। इनके समाधान के लिए सामाजिक समरसता, जातिगत सद्भाव तथा कुटुम्ब प्रबोधन के कदम उठाने पड़ेंगे। धर्म जागरण के माध्यम से जो हिन्दू बन्धु हमसे बिछड़ गए हैं, उनको वापस लाना और वापस न जाने पाए इसके लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय महामंत्री श्री मिलिन्द परांडे जी ने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि हिन्दू समाज स्वयं जागरूक समाज है जिसने समयानुसार अपने दोषों का निर्मूलन स्वयं किया है। इसके बाद भी उस पर दोष थोपने का प्रयास किया जाता है। नम्बुदरीपाद ने लिखा था कि अगर केरल में साम्यवाद बढ़ाना है तो भगवान अयप्पा के प्रति श्रद्धा समाप्त करनी पड़ेगी। 1950 में अयप्पा मन्दिर का विग्रह तोड़ा गया तथा आग लगाई गई। अयप्पा भक्तों की आस्था पर चोट पहुँचाने के लिए ऐसा कृत्य किया गया। हिन्दू समाज न्यायालय के निर्णय के पश्चात वामपंथी सरकार का जो व्यवहार रहा है, उसके विरोध में भगवान अयप्पा के पुरुष भक्तों तथा माँ बहनें आज तक संघर्ष कर रही हैं। किन्तु वामपंथी सरकार दमन चक्र चला रही है। इस संघर्ष में पाँच भक्तों को जान गंवाई पड़ी। जाति एवं भाषा के आधार पर महाराष्ट्र, असम और गुजरात में हिन्दू समाज को आपस में लड़ाने का षड्यंत्र किया गया।
इस अवसर पर स्वामी रामदेव जी ने कहा कि देश में समान नागरिक कानून तथा समान जनसंख्या का कानून लाना चाहिए तथा गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज ने कहा कि सरकार को शीघ्र ही गोसेवा आयोग बनाना चाहिए। मंच पर विशेष रूप से जगद्गुरु रामानन्दाचार्य नरेन्द्राचार्य जी महाराज, जगद्गुरु रामानुजाचार्य हंसदेवाचार्य जी महाराज, निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव जी महाराज, पूज्य स्वामी जितेन्द्रनाथ जी महाराज, पूज्य सतपाल जी महाराज, पूज्य स्वामी वियोगानन्द जी महाराज, पूज्य स्वामी विवेकानन्द सरस्वती जी महाराज, आनन्द अखाड़ा के आचार्य म0म0 बालकानन्द जी महाराज, निरंजनी अखाड़ा के पूज्य स्वामी पुण्यानन्द गिरि जी महाराज, पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, पूज्य स्वामी परमानन्द जी महाराज, पूज्य स्वामी अयप्पादास जी महाराज, पूज्य स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज, डाॅ0 रामेश्वरदास जी वैष्णव, पूज्य श्रीमहंत नृत्यगोपालदास जी महाराज तथा म0म0 जयरामदास जी महाराज सहित 200 सन्त मंच पर एवं 3000 से अधिक सन्त सभागार में उपस्थित रहे।
केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल के वरिष्ठ सदस्य एवं आचार्य सभा के महामंत्री पूज्य स्वामी परमात्मानन्द जी महाराज ने ‘शबरीमला में परम्परा और आस्था की रक्षा करने का संघर्ष-अयोध्या आन्दोलन के समकक्ष‘ प्रस्ताव पढ़ा तथा पूज्य स्वामी अयप्पादास जी ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया।
दूसरे प्रस्ताव ‘हिन्दू समाज के विघटन के षड्यंत्र’ का वाचन पूज्य स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज ने किया तथा अनुमोदन सन्त समिति के महामंत्री पूज्य स्वामी जितेन्द्रानन्द जी महाराज ने किया।
प्रस्ताव (1) – शबरीमला में परम्परा और आस्था की रक्षा करने का संघर्ष- अयोध्या आन्दोलन के समकक्ष
शबरीमला सहित भारत में स्थित प्रत्येक मन्दिर का अपना इतिहास एवं विशिष्ट परम्परा रही है, जो भारत के पूज्य ऋषि-मुनियों द्वारा स्थापित है। सदियों से हिन्दू समाज इन परम्पराओं के आधार पर श्रद्धा से पूजन करता आया है।
गत कुछ वर्षों से देखने में आया है कि हिन्दू परम्पराओं के प्रति समाज में अश्रद्धा और अविश्वास निर्माण कर अपमानित और कलंकित करने का कुप्रयास किया जा रहा है। दक्षिण भारत का शबरीमला मन्दिर इसका ताजा उदाहरण है। कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी आधुनिकता के नाम पर इस प्रकार के विवाद जानबूझ कर खड़े किए जाते हैं और हिन्दू परम्पराओं के प्रति समाज में अश्रद्धा और अविश्वास निर्माण कर बदनाम किया जाता है जबकि हिन्दू समाज क्रान्तिधर्मा है। उसने आवश्यकतानुसार अपने गुण-दोषों का स्वयं ही परिमार्जन किया है।
शबरीमला मन्दिर में 1950 में ईसाइयों द्वारा आग लगाई गई और विग्रह भंग किया गया, 1982 में मन्दिर की जमीन पर क्रास गाड़ा गया और अभी हजारों मुस्लिम महिलाएं ‘‘महिला दीवार’’ शबरीमला के विरुद्ध में बनाती हैं, ये सब उदाहरण इस षड्यंत्र की व्यापकता को दर्शाते हैं। यहाँ पर न्यायपालिका की आड़ में केरल सरकार ने भगवान अयप्पा भक्तों पर दमनचक्र चला रखा है। जिसके कारण 5 भक्तों को जान से हाथ धोना पड़ा, सैंकड़ों भक्तों को गिरफ्तार किया गया। 5000 प्रकरणों के माध्यम से लगभग 15,000 भक्तों को गिरफ्तार करने का षड्यंत्र रचा गया है। लाखों अयप्पा भक्तों ने श्रृंखला बनाकर और अन्य प्रदर्शनों के माध्यम से मन्दिर की पुरातन परम्परा को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया है किन्तु केरल सरकार द्वारा षड्यंत्रपूर्वक इनका अपमान करने के लिए जिनकी श्रद्धा नहीं है, उनको रात में भेष बदलकर जबरन व छलपूर्वक दर्शन करवाए गए।
भारत का सन्त समाज अयप्पा भक्तों विशेष तौर पर हिन्दू महिलाओं, एन.एस.एस., के.पी.एम.एस., एस.एन.डी.पी., आर्य समाज, पीपुल आॅफ धर्मा तथा अन्य कई हिन्दू संगठनों के इस पावन संघर्ष का अभिनन्दन करती है जिन्होंने शबरीमला के संघर्ष को अयोध्या आन्दोलन के समकक्ष खड़ा कर दिया है।
इतना सब कुछ होने के बाद हिन्दू समाज की धारणा बनी है कि केरल की वामपंथी सरकार जेहादी तत्वों, वामपंथी अराजक गुण्डों तथा प्रशासन के माध्यम से भगवान अयप्पा के भक्तों पर दमनचक्र चला रही है। धर्मसंसद का यह अभिमत है कि न्यायपालिका तथा सरकार को हिन्दू परम्पराओं व मान्यताओं के पालन में हस्तक्षेप से दूर रहना चाहिए।
धर्मसंसद केरल की वामपंथी सरकार के इस दमनचक्र की घोर भत्र्सना करती है और हिन्दू समाज से आह्वान करती है कि इस दमनचक्र के विरोध में राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाए। देश के सम्पूर्ण हिन्दू समाज से यह अपील है कि इस जन जागरण आन्दोलन के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर सहभागिता करें।
प्रस्तावक: स्वामी परमात्मानन्द जी
अनुमोदक: स्वामी अयप्पा दास जी
प्रस्ताव (2) – हिन्दू समाज के विघटन के षड्यंत्र
हिन्दू समाज की एकता को तोड़ने के लिए इस्लामिक, चर्च तथा साम्यवादी संगठन हमेशा से कुचक्र रचते रहे हैं। अब कुछ राजनैतिक दल व अन्य संगठन भी अपने निहित स्वार्थों के कारण लोक लुभावने नारे देकर व हिंसा का सहारा लेकर इन षड्यंत्रों को तेजी से बढ़ा रहे हैं। इनकी कार्य पद्धति देखकर ऐसा लगता है कि ये देश में अशान्ति भी फैला सकते हैं।
भीमा कोरेगांव (महाराष्ट्र) में दलित-मराठा विवाद पैदा किया जाता है तो पत्थलगढ़ी (झारखण्ड) में चर्च व माओवादी वहाँ की जनजाति समाज को शेष हिन्दू समाज व देश से अलग-थलग करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। सहारनपुर (उ0प्र0) में बाबा साहब अम्बेडकर की शोभायात्रा पर हमला करवाकर दलित-सवर्ण के मध्य विवाद पैदा किया गया, वहीं ऊना (गुजरात) में परम्परागत व्यवसाय में लगे अनुसूचित जाति के युवकों की पिटाई करवाकर सामाजिक वैमनस्य पैदा करने का कुत्सित प्रयास किया गया। पिछले कुछ समय से शहरी नक्सलियों के राष्ट्र विरोधी षड्यंत्र देश के सामने आये हंै। इनके द्वारा हिन्दू समाज को बदनाम करना, आतंकवादी एवं राष्ट्र विरोधी लोगों को प्रोत्साहित करना, भारत के गौरवशाली इतिहास को तोड़ मरोड़कर लोगों को भ्रमित करना, जनजाति क्षेत्रों में नक्सलियों की हर प्रकार से सहायता करना, यहाँ तक कि देश के प्रधानमंत्री की हत्या करवाने तक का पर्दाफाश हुआ है।
हिन्दू समाज में उत्पन्न हो रहे विभेद में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे ही समूहों तथा संगठनों का हाथ है जो कि विभिन्न जांच एजेन्सियों के द्वारा प्रमाणित भी हुए हंै। केरल व बंगाल जैसी सरकारें भी अपनी संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करके विभिन्न कृत्रिम आधारों पर हिन्दू समाज का विघटन व दमन करने का प्रयास कर रही है।
पिछले कुछ वर्षों से दलित-मुस्लिम गठजोड़ करने का भी असफल प्रयास हो रहा है। जिन जेहादियों को बाबा साहब अम्बेडकर ने स्वयं बर्बर तथा अविश्वसनीय करार दिया था अब उन्हीं के नाम पर यह दुष्चक्र किया जा रहा है जिसे उजागर करने की आवश्यकता है।
भारत में महर्षि वाल्मीकि जी, सन्त रविदास जी, गुरुनानक देव जी, पूज्य रामानुजाचार्य जी, पूज्य रामानन्दाचार्य जी, नारायण गुरु, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द जैसे पूज्य सन्तों तथा वीर सावरकर, महात्मा गाँधी, डाॅ0 हेडगेवार जैसे महापुरुषों द्वारा हिन्दू समाज की एकता का सदैव प्रयास हुआ है। देश में आयोजित होने वाले कुम्भ तथा अन्य महापर्वों पर भी सम्पूर्ण हिन्दू समाज ने ऊँच-नीच, जात-पात, छुआ-छूत, मत-पंथ व सम्प्रदायों से ऊपर उठकर भाग लिया है साथ ही समय-समय पर ऐसे कुचक्रों का मुँहतोड़ जवाब भी दिया है।
धर्मसंसद हिन्दू समाज से आह्वान करती है कि क्षेत्रवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, जातिवाद व छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश को तोड़ने का जो प्रयास किया जा रहा है, उससे दिग्भ्रमित न होते हुए ऐसे कुत्सित प्रयासों का संगठित होकर प्रतिकार करें। जिन राजनैतिक दलों द्वारा भी ऐसे प्रयास किए जा रहे हों उनसे भी सावधान रहें तथा उचित जवाब दें।
प्रस्तावक: स्वामी गोविन्द देव गिरि जी
अनुमोदक: स्वामी जितेन्द्रानन्द जी