आनंद महिंद्रा जी, इस दोगलेपन की वजह क्या है? क्रिकेट मैच के दौरान कमर्शियल ब्रेक में क्लब महिंद्रा के दो एड बार-बार चल रहे हैं। इसके एक एड में टीचर बच्चों से पूछती है कि बताओ बच्चो, वर्ल्ड की Second Longest Wall कहां पर है? इसके जवाब में एक छोटा बच्चा हाथ खड़ा करता है और कहता है कि राजस्थान के कुंभलगढ़ में…इसके बाद वो कुंभलगढ़ के बारे में और बहुत सारी बातें बताने लगता है। उसकी जानकारी सुन सारी क्लास हैरान हो जाती है और उसी हैरानी में क्लास टीचर भी उससे पूछती है कि तुम्हें ये सब बातें कैसे पता लगीं? जिसके जवाब में बच्चा इतराते हुए एक तरफ गर्दन फेंककर बताता है…मेरे पापा क्लब महिंद्रा के मेंबर जो हैं! इसी तरह के एक और एड में जब एक छोटी बच्ची बताती है कि वो इस बार गर्मियों की छुट्टियों में केरल, गोवा और हिमाचल गई और फिर वो बताती है कि मेरे पापा क्लब महिंद्रा के मेंबर है। जिस पर दूसरा बच्चा कहता है कि तुम्हारे पापा तो बेस्ट हैं! Basically दोनों ही एड इस बात को अंडरलाइन करते हैं कि अगर पापा ने क्लब महिंद्रा की मेंबरशिप ले रखी है तो वो बेस्ट हैं! मुझे इन दोनों एड से एक से ज़्यादा प्रॉब्लम हैं। पहला तो ये कि छोटे बच्चों का मन बड़ा कोमल होता है। इस उम्र में स्कूली बच्चे अक्सर अपने मां-बाप के अच्छा या बुरे होने का इस बात से भी अंदाज़ा लगाते हैं कि वो उन्हें कितनी सुविधाएं दे रहे हैं। वो उन्हें छुट्टियों में कहां घुमाने ले जाते हैं। उनके पास कौनसी गाड़ी है। ये बात एड मेकर भी अच्छे से जानते हैं कि ऐसा एड बनाने पर बच्चे के मन पर क्या असर पड़ेगा…वो बच्चों को बता रहे हैं कि जो बाप 4-5 लाख की क्लब महिंद्रा की मेंबरशिप लेकर उन्हें यहां-वहां घूमा सकता है, वही बेस्ट है! दो-तीन परसेंट Rich और सुपर Rich लोगों को छोड़ दें, तो ज़्यादातर मां-बाप को यही लगता है कि वो अपनी औकात से बाहर बच्चों को अच्छे स्कूलों में तो पढ़ा देते हैं मगर उन्हीं स्कूलों में उनके बच्चे जब साथी बच्चों के लाइफ स्टाइल देखते हैं कि दूसरे बच्चे ने अपना बर्थडे कैसे मनाया, वो गर्मियों की छुट्टियों पर कहां गया, तो उनके बच्चे भी खुद को उनसे कंपेयर करते हैं। फिर यही बच्चे घर आकर मां-बाप को बताते हैं कि उनकी क्लास में पढ़ने वाला एक बच्चा तो गर्मियों की छुट्टियों में लंदन गया था। दूसरा बताता है कि उसके पापा तो उसे मर्सिडिज में छोड़ने आते हैं। और ये सब बातें मां-बाप को भी बेचैन करती हैं। वो मां-बाप जो पहले ही अपनी औकात से बाहर जाकर बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। उन्हें हर तरह की सुविधा दे रहे हैं। और जब इन्हीं मां-बाप को ये पता लगता है कि बजाए जो ज़िंदगी मिल रही हैं उसके लिए शुक्रगज़ार होने के, उनके बच्चे तो इस बात की टीस और शिकायत लिए बैठे हैं कि उनके मां-बाप उन्हें वो सब क्यों नहीं दे रहे जो उनका हक है! इसलिए जब कोई टीवी एड 4-5 लाख की Club महिंद्रा की मेंबरशिप से एक पापा के बेस्ट होने को जोड़ता है तो वो न सिर्फ बच्चों के कोमल मन को Exploit करता है। साथ ही वो मिडिल क्लास मां-बाप को ऐसे प्रेशर और गिल्ट में डालता है जिसके वो कतई हकदार नहीं है। कुछ वक्त पहले की बात है। मेरे एक जानने वाले नोएडा के स्कूल में एक बच्चे के साथ हुई घटना का ज़िक्र कर रहे थे। उन्होंने बताया कि मिडिल स्कूल की एक क्लास में एक बच्चा रो रहा था और कुछ बच्चे उसके आसपास खड़े थे। तभी टीचर बच्चों के पास जाती है और वहां खड़े बच्चों से पूछती है कि ये क्यों रो रहा है, तो बच्चे बताते हैं कि मैम, ये इस बार Summer Vacation में सिंगापुर गया था वो भी Economy क्लास में जिस पर कुछ बच्चे इसका मज़ाक उड़ा रहे थे इसीलिए ये रोने लगा। अब हमारा मिडिल क्लास दिमाग एकदम से ऐसी घटना को process नहीं कर पाता। वो सोचता है, अरे ऐसे कैसे हो सकता है। नहीं, ये तो झूठ है। तुम मज़ाक कर रहे हो। लेकिन महंगे स्कूलों में बच्चों के बीच एक तरह का कॉम्पिटिशन आम है। और जो नॉर्मल प्राइवेट स्कूलों में भी यही सच बातें होती हैं मगर थोड़े निचले स्तर पर लेकिन कॉम्पिटिशन वहां भी ऐसा ही होता है। इसलिए कल्ब महिंद्रा की 4-5 लाख की मेंबरशिप लेने वाले पापा को बेस्ट पापा बताने वाला एड एक नहीं कई लिहाज़ से गलत है। हाल ही ख़बर आई थी कि आनंद महिंद्रा जी को जब ये पता लगा कि सरफराज़ खान के पिता ने उसे क्रिकेटर बनाने के लिए कितना संघर्ष किया तो उन्होंने उनके पिता के संघर्ष का सम्मान करते हुए उन्हें एक थार गाड़ी गिफ्ट करने का फैसला किया है। इसलिए मुझे लगता है कि आनन्द महिंद्रा जी का ये फैसला ही उनके ही क्लब महिंद्रा एड की सबसे बड़ी आलोचना है। उन्होंने शायद खुद ये बता दिया कि पापा वो बेस्ट नहीं होता जो बच्चों के लिए किसी महंगे रिसॉर्ट की मेंबरशिप खरीद सके। पिता वो बेस्ट होता है जो बच्चों को कुछ बनाने के लिए अपनी सारी ज़िंदगी खपा दे। पैसे से खरीदी गई चीज़ आपको किसी रिश्ते में बेस्ट नहीं बना सकती लेकिन कुछ न होते हुए भी अपने बच्चे की बेहतरी के लिए दिया आपका वक्त, आपके इमो्शन ज़रूर आपको बेस्ट बना सकते हैं। पिता वो बेस्ट नहीं होता जो बच्चों पर बेइंतहा पैसा खर्च कर सके। पिता वो बेस्ट हो जो बच्चे को बेस्ट बनाने के लिए खुद खर्च हो जाए। Neeraj Badhwar