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बंग्लादेश की दुर्दशा

आज भारत देश को यह सत्य स्वीकार करना होगा कि बंग्लादेश भारत की मित्रता की परिधि से बाहर आ चुका है और आज वह अपने शत्रु देश पाकिस्तान के कट्टरपंथियों व उग्रवादियो के अधिकार क्षेत्र में पहुँच चुका है। वहाँ की न्यायपालिका, पुलिस, शासन, प्रशासन, चुनाव आयोग, विश्वविद्यालयों के कुलपति, सेना आदि सभी प्रमुख विभागों में जमात-ए-इस्लामी संगठन के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हो चुकी है और यह संगठन भारत का विरोधी तथा पाकिस्तान व अमेरिका का सहयोगी रहा है।
बंग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरुद्ध वहाँ के छात्रों ने आन्दोलन इसलिए किया था, क्योंकि वे पूर्णतया भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी थी। उन्होंने सभी स्तर पर शासन, प्रशासन, व संवैधानिक संस्थाओं में अपने कार्यकर्ताओं की नियुक्ति कर दी थी। वहाँ का सम्पूर्ण हिन्दु समुदाय शेख हसीना की पार्टी, आवामी लीग का समर्थक था। उसके कार्यकाल में वहाँ के हिन्दु समुदाय ने शासन का पूर्ण आनन्द उठाया था, जिससे वहाँ का मुस्लिम समुदाय हृदय में कटुता का भाव लिए स्वीकार करता रहा। जब छात्र आन्दोंलन ने शेख हसीना को पदमुक्त कर दिया तो वहाँ पर नोबल पुरुस्कार विजेता मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार के गठन हुआ। नई सरकार से समस्त जनता को यह आशा थी कि वे लोकतंत्र, समाजवाद और बांग्ला राष्ट्रवाद की रक्षा सम्पूर्ण निष्ठा से करेगी। मोहम्मद युनुस को अमेरिका समर्थक माना जाता है और उनका अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से भी घनिष्ठ संबंध रहा है।
बंग्लादेश की जनता ने शेख हसीना के तख्तापलट को तो स्वीकार कर लिया, परन्तु वे इस बात से अत्यधिक रूष्ट प्रतीत होती हैं कि भारत ने शेख हसीना को अपने यहाँ शरण क्यों दे रखी है। उनका मूलतः क्रोध शेख हसीना व उसके समर्थकों पर है। इसलिए वे इस समय न केवल हिन्दु अपितु आवामी लीग समर्थक मुस्लिमों के समक्ष भी अपना क्रोध प्रकट कर रहें हैं। आज बंग्लादेश की परिस्थिति से वहाँ के छात्र भी प्रसन्न नहीं हैं परन्तु अब परिस्थिति उनकी सीमा से भी बाहर हो चुकी है। आशा यह थी कि मोहम्मद युनुस अति शीघ्र चुनाव करायेंगे, परन्तु वहाँ के हालातों से स्पष्ट होता है कि निकट भविष्य में भी चुनावों का होना असम्भव है। जब तक वहाँ पर निष्पक्ष चुनाव नहीं होते हैं तब तक वहाँ की स्थिति का दर्द आवामी लीग के समर्थकों को सहन करना ही होगा। जनवरी 2025 में अमेरिका में भी नई सरकार का गठन हो जायेगा। सम्भवतया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी नियुक्ति के पश्चात कोई ऐसा कठोर कदम अवश्य ही उठाऐंगे, जिससे वहाँ के हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को रोका जा सके। भारत को भी वहाँ के हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को गम्भीरता से लेना होगा, क्योंकि वहाँ पर अत्यधिक मात्रा में हिन्दुओं का संहार, तथा महिलाओं व कन्याओं पर अत्यधिक अत्याचार हो रहे हैं जिससे वे आकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। भारत में जनता द्वारा किए हुए आन्दोलनों का वहाँ की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं होगा। ऐसे में भारत को वर्ष 1971 की भांति कठोर निर्णय लेने में तनिक भी विलम्ब नहीं करना चाहिए। नई व्यवस्था के अनुसार, वहाँ पर पाकिस्तानियों के लिए वीजा की व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया है। अब पाकिस्तान से आतंकवादी अत्यधिक मात्रा में बंग्लादेश पहुँचेंगे और वहाँ के हिन्दुओं पर अत्याचारों में भी वृद्धि होगी। यदि वहाँ की परिस्थिति इसी प्रकार विपरीत होती रही अर्थात् समस्त हिन्दु समुदाय ही नष्ट हो गया तो कोई भी कदम उठाना एक निरर्थक बात होगी।

योगेश मोहन

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