पैसा कमाने के बाद सत्ता हथियाने की महत्वाकांक्षा अनेक बड़े उद्योगपतियों की रही है। अनेक उद्योगपति दुनिया के विभिन्न देशों में सफल राजनेता रहे हैं। किंतु अक्सर यह महत्वाकांक्षा अक्सर उनके उद्योग व व्यापार पर ख़ासी भारी पड़ जाती है। हाल ही के समय तीन प्रसिद्ध उद्योगपति दुनिया में अपने अपने देश की राजनीति में प्रत्यक्ष व परोक्ष हस्तक्षेप के कारण सुर्ख़ियों में आए , विवादित हुए, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का शिकार हुए और बड़े घाटे का शिकार भी बने और हालात न माया रही न राम मिले जैसे हो गए।
1) चीन में बड़ी कंपनी अलीबाबा के संस्थापक जैक मा पिछले वर्ष ही चीन सरकार व राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आलोचना करने के कारण चीनी सरकार के कोप का कारण बने। अपनी सत्ता के लिए चुनौती मान जिनपिंग ने उनको देश से निर्वासित कर दिया और वे अब जापान में शरण लिए हुए हैं।उनकी कंपनियों के शेयर बहुत नीचे आ चुके हैं और आज अपनी ही कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी दो अंकों में रह गई है।
2) ऐलन मस्क की कहानी तो अपने घुटनों पर ख़ुद कुल्हाड़ी मारने की है। अमरीका के राष्ट्रपति बनने का सपना पाले मस्क ने टेस्ला व स्टारलिंक जैसी कंपनियों के माध्यम से दुनिया में धाक जमाई तो शेयर, सट्टा व बिटकाइन के माध्यम से मोटा माल भी कमाया किंतु सत्ता के खेल में पड़कर जब ट्विटर ख़रीदा तबसे नुक़सान ही नुक़सान झेल रहे हैं।निश्चित रूप से इसके पीछे अमेरिका की आंतरिक राजनीति ही है। यह समझना भी मुश्किल हो जाता है कि वे रिपब्लिकन के साथ हैं या डेमोक्रेट के साथ।हाँ यूक्रेन को सहायता देने के कारण रूसी राष्ट्रपति पुतिन से उनकी दुश्मनी ज़रूर पक्की हो गई है। फ़िलहाल उनका राजनीतिक भबिष्य और व्यापार दोनों ही ख़ासे उतारचढ़ाव झेल रहे हैं।
3) भारत के दिग्गज उद्योगपति गौतम अदाणी इसी श्रृंखला में नया नाम हैं। बहुत तेज़ी से प्रगति कर रहे अदाणी समूह पर विपक्ष मोदी सरकार पर विशेष कृपा करने के आरोप लगाता रहा है। पिछले कुछ महीनों में अदाणी विपक्ष शासित राज्यो में भी निवेश बढ़ाने व एनडीटीवी ख़रीदने के बाद मोदी – शाह के रडार पर थे।मुकेश अंबानी के स्थान पर अब वो “किंगमेकर” की गद्दी पर काबिज होना चाहते थे। उनका यह सपना उनको भारी पड़ गया और एक अंजान सी अमेरिकन रिसर्च कंपनी के माध्यम से उनकी औक़ात रातोरात आधी कर दी गई। नोट : सच्चाई यह है कि शेयर बाज़ार ज़रूरत से बहुत ज्यादा निवेश आते जाने के कारण बहुत ज्यादा फूला हुआ है और इस कारण कंपनियों का मार्केट केपिटलाइज़ेशन उनकी वास्तविक औक़ात से कई गुना अधिक है । ऐसे में कोई भी भ्रम फैलाकर कभी भी किसी भी कंपनी के शेयर बड़े स्तर पर गिराए जा सकते हैं। इसी फ़ार्मूले का उपयोग कर अदाणी को आईना दिखाया गया है। राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने के ये खेल शाश्वत हैं और आगे भी जारी रहेंगे।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
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