
अज़ान पर फिजूल की बहस
अज़ान को लेकर हमारे टीवी चैनलों और अखबारों में फिजूल की बयानबाजी हो रही है। यदि सिने-गायक सोनू निगम ने कह दिया कि सुबह-सुबह मस्जिदों से आनेवाली तेज आवाजें उन्हें तंग कर देती हैं और यह जबरिया धार्मिकता ठीक नहीं तो इसमें उन्होंने ऐसा क्या कह दिया कि उन्हें इस्लाम का दुश्मन करार दे दिया जाए और उन्हें गंजा करनेवाले को दस लाख रु. का इनाम देने की घोषणा कर दी जाए। क्या लाउडिस्पीकर पर जोर-जोर से चिल्लाना इस्लाम है? इस्लाम का जन्म हुआ तब कौनसे लाउडस्पीकर चल रहे थे? सच्ची प्रार्थना तो वही है, जो मन ही मन की जाती है। ईश्वर या अल्लाह बहरा नहीं है कि उसे कानफोड़ू आवाज़ में सुनाया जाए। शायद इसीलिए कबीर ने कहा है:
कांकर-पाथर जोडि़ के मस्जिद लई चुनाय।
ता चढि़ मुल्ला बांग दे, बहरा हुआ खुदाय।।
माना कि अज़ान अल्लाह के लिए नहीं, उसके बंदों के लिए होती है याने ज़ोर-ज़ोर से आवाज इसीलिए लगाई जाती है कि सोते ह...