अरविन्द केजरीवाल – सपनों का मर जाना
नवम्बर 2013 था, हम लोग पुरी की तरफ निकल रहे थे. मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और छत्तीसगढ़ के चुनाव हो चुके थे और AAP की संभावित जीत के चर्चे साहिबाबाद लोकल स्टेशन पर भी थे. हम लोगों को साहिबाबाद से लोकल पकड़ कर निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन जाना था. तो जैसा मेरी आदत है, लोगों के विचार सुनती रही. साहिबाबाद स्टेशन पर कई युवा ऐसे थे, जिनकी आँखों में एक अजीब सा सपना था. वे सभी ऐसे लोग थे, जिन्होनें AAP के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य किया था. बहुत बातें कर रहे थे. हम लोग जब निजामुद्दीन पहुंचे तब तक AAP के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद हो चुकी थी. ट्रेन में हमारे सामने की सीट पर एक लड़का था. वह समय एक परिवर्तन का समय था और इन्टरनेट के समय में चर्चा केवल और केवल अरविन्द और मोदी के करिश्मे पर टिक जाती थी. वह लड़का इंजीनियर था और उसने बहुत ही जल्दी अपने दिल की बात करनी शुरू कर दी. उसने कहा "madam, It is clear tha...