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मुसलमान कब करेंगे महंगाई, बेरोजगारी पर आंदोलन

मुसलमान कब करेंगे महंगाई, बेरोजगारी पर आंदोलन

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संसद ने जब से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को पारित किया है, देश के मुसलमानों का एक हिस्सा नाराज है। कम से कम जगह-जगह धरने प्रदर्शन कर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि वे खफा हैं ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार भरोसा देने के बाद भी कि इससे देश के मुसलमानों को भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं है, वे शांत नहीं हो रहे हैं। वे सड़कों पर उतरे हुए हैं। अब दिल्ली में ही देख लीजिए किमुसलमान औरतें शाहीन बाग में सड़क को घेर कर बैठी हैं। उन्हें इस बात की रत्तीभर भी चिंता नहीं है कि उनके धरने के कारण राजधानी के लाखों लोग रोज अपने गंतव्य स्थलों पर कई घंटे देर से पहुंच रहे हैं। खैर,धरना देना तो उनका मौलिक अधिकार है। पर याद नहीं आ रहा कि देश के मुसलमानों ने कभी महंगाई, बेरोजगारी या अपने अपने इलाकों में नए-नए स्कूल, कालेज या अस्पताल खुलवाने आदि की मांगों को लेकर कभीसड़कों पर उतर कर कोई धरना-प्रदर...
दङ्गे-फ़साद की मानसिकता बनाता कौन है?

दङ्गे-फ़साद की मानसिकता बनाता कौन है?

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मैं टीवी आमतौर पर नहीं देखता। परसों कई दिनों बाद देखा। दिल्ली के दङ्गों पर सवेरे एनडीटीवी पर रवीश कुमार की एक रिपोर्ट और शाम को जी-न्यूज़ पर सुधीर चौधरी की एक दूसरी रिपोर्ट। ‘आजतक’ भी खोला, पर वहाँ कुछ दूसरी चीज़ चल रही थी, जिसके ज़िक्र का यहाँ सन्दर्भ नहीं बनता। रवीश कुमार की रिपोर्टिङ्ग आमतौर पर मैं पसन्द करता हूँ, उनका समर्थन भी करता रहा हूँ, पर कल निराशा हाथ लगी। मैं सवेरे नौ बजे के बाद वाली रवीश जी की सिर्फ़ एक रिपोर्ट की बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बात को सिर्फ़ वहीं तक सीमित करके देखें, क्योंकि हो सकता है कि उन्होंने दूसरी और तरह की कुछ बढ़िया रिपोर्टिङ्ग भी की हो। फिलहाल, रवीश की इस रिपोर्ट को शातिराना ढङ्ग की बेहूदा रिपोर्टिङ्ग कहूँगा। बॉडी लैङ्ग्वेज तक ईमानदार नहीं लग रही थी। ठीक इसके उलट, सुधीर चौधरी की रिपोर्टिङ्ग बढ़िया थी और यह सच को सच की तरह दिखा रही थी। इन दोनों को देखने ...
देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से हारते दिखे नरेंद्र मोदी

देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से हारते दिखे नरेंद्र मोदी

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कश्मीर से लगायत दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद आदि समूचे देश में पुलिस पर पत्थरबाजी कौन लोग और क्यों करते हैं? यह भी क्या किसी से कुछ पूछने की ज़रूरत है? जुमे की नमाज के बाद शहर दर शहर बवाल समूचे भारत में क्यों होता है? मोहर्रम में दंगे क्यों होते हैं? होली और दुर्गा पूजा के विसर्जन जुलूस पर हमला कौन करता है? कभी किसी मंदिर, किसी चर्च, किसी गुरूद्वारे से किसी ख़ास मौके पर या सामान्य मौके पर किसी ने किसी को बवाल या उपद्रव करते हुए देखा हो तो कृपया बताए भी। अपने भाई को क्या बार-बार बताना होता है कि यह हमारा भाई है? तो यह भाईचारा, सौहार्द्र, गंगा-जमुनी तहजीब का पाखंड क्यों हर बार रचा जाता है। यह तो हद्द है। इस हद की बाड़ को तोड़ डालिए। इकबाल, फैज़ अहमद फ़ैज़, जावेद अख्तर, असग़र वजाहत जैसे तमाम-तमाम नायाब रचनाकार भी अंतत: क्यों लीगी और जेहादी जुबान बोलने और लिखने लगते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मै...
‘काॅनक्लेव’ से नहीं कर्मठ लोगों से हल हांेगी समस्या

‘काॅनक्लेव’ से नहीं कर्मठ लोगों से हल हांेगी समस्या

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अक्सर देश के बडे़ मीडिया समूह, दिल्ली में राष्ट्रीय समस्याओं पर सम्मेलनों का आयोजन करते हैं। जिनमें देश और दुनिया के तमाम बड़े नेता और मशहूर विचारक भाग लेते हैं। देश की राजधानी में ऐसे सम्मेलन करना अब काफी आम बात होती जा रही है। इन सम्मेलनों में ऐसी सभी समस्याओं पर काफी आंसू बहाऐ जाते है और ऐसी भाव भंगिमा से बात रखी जाती है कि सुनने वाले यही समझे कि अगर इस वक्ता को देश चलाने का मौका मिले तो इन समस्याओं का हल जरूर निकल जाएगा। जबकि हकीकत यह है कि इन वक्ताओं में से अनेकों को अनेक बार सत्ता में रहने का मौका मिला और ये समस्यायें इनके सामने तब भी वेसे ही खड़ी थी जैसे आज खड़ी हैं। इन नेताओं ने अपने शासन काल में ऐसे कोई क्रान्तिकारी कदम नहीं उठाये जिनसे देशवासियों को लगता कि वो ईमानदारी से इन समस्याओं का हल चाहते है। अगर उनके कार्यकाल के निर्णयों कोे बिना राग-द्वेष के मूल्यांकन किया जाए तो यह स्पष्ट ...
मुसलमान भाइयों-बहनों को झूठ और अफवाहों से बचाने के लिए आगे आएं हिन्दू भाई-बहन

मुसलमान भाइयों-बहनों को झूठ और अफवाहों से बचाने के लिए आगे आएं हिन्दू भाई-बहन

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दिल्ली में दंगों की आग बुझ चुकी है, लेकिन चिंता की बात यह है कि देश के अनेक हिस्सों में मुसलमान भाइयों-बहनों के बीच अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि दिल्ली में गुजरात दंगों जैसा कोई मॉडल आजमाया गया है। मकसद साफ है कि अन्य जगहों पर भी उन्हें दंगे करने के लिए उकसाया जा सके। देखा जाए तो यह उनकी पूरी की पूरी कम्युनिटी को दंगाई बनाने की साज़िश है, जिससे उन्हें सावधान रहना होगा। जहां तक दिल्ली दंगों का सवाल है, मुसलमान भाइयों-बहनों को यह समझना होगा कि शातिर सियासतदानों ने उनके कंधों पर बन्दूकें रखकर 40 से ज़्यादा बेगुनाह लोगों को मरवा दिया, जिनमें दोनों समुदायों के अभागे लोग शामिल हैं। इन दंगों की तैयारी शाहीन बाग की स्थापना के साथ ही शुरू हो गई थी और मास्टरमाइंड सियासी दलों ने इसके लिए रेडिकल इस्लामिक एलिमेंट्स को इस्तेमाल किया। आइए, कुछ तथ्यों से आप समझ जाएंगे कि इन दंगों के पीछे रेडिकल हिं...
किसने भूमिका तैयार की दिल्ली के दॅंगों की?

किसने भूमिका तैयार की दिल्ली के दॅंगों की?

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अब तो आग की लपटों से बाहर निकल आई है दिल्ली। अब मासूमों को मारने के लिए सड़कों पर उतरे मौत के सौदागर अपना सुनियोजित काम करके पतली गली से निकल चुके हैं। लेकिन, तीन-चार दिनों तक दिल्ली में मानवता बार-बार मरती रही। दर्जनों लोग मार डाले गए और सैकड़ों घायल हुए। हजारों दूकानें और घर राख में तब्दील कर दिए गए। इतना सब कुछ होने के बावजूद अब भी यहां पर ‘मेरा-तुम्हारा’ करने वाले सक्रिय हैं। वे अब भी दुखी हैं इस बात से हैं कि किछ उनके मजहब वाले  भी दंगों में शिकार हुए। उन्हें दूसरे मजहब के मानने वाले मृतकों या घायलों को लेकर किसी तरह का सहानुभूति का भाव ही नहीं है। तो इतना पत्थर दिल बन गये हैं हमारे  समाज के कुछ नकाबपोश। गंगा-जमुनी तहजीब की बातें मानों बेमानी सी ही लगती है।  बहरहाल, दिल्ली के दंगों के लिए एक खास समूह कपिल मिश्र की गिरप्तारी की मांग कर रहा है। उन्हें इन दंगों के लिए दोष दे र...
सरकार और प्रशासन की नाकामी है दिल्ली दंगे

सरकार और प्रशासन की नाकामी है दिल्ली दंगे

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शाहीनबाग़ संयोग या प्रयोग हो सकता है लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान देश की राजधानी में होने वाले दंगे संयोग कतई नहीं हो सकते। अब तक इन दंगों में एक पुलिसकर्मी और एक इंटेलीजेंस कर्मी समेत लगभग 42 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। नागरिकता कानून बनने के बाद 15 दिसंबर से दिल्ली समेत पूरे देश में होने वाला इसका विरोध इस कदर हिंसक रूप भी ले सकता है इसे भांपने में निश्चित ही सरकार और प्रशासन दोनों ही नाकाम रहे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि सांप्रदायिक हिंसा की इन संवेदनशील परिस्थितियों में भी भारत ही नहीं विश्व भर के मीडिया में इसकेपक्षपातपूर्ण विश्लेषणात्मक विवरण की  भरमार है जबकि इस समय सख्त जरूरत निष्पक्षता और संयम की होती है। देश में अराजकता की ऐसी किसी घटना के बाद सरकार की नाकामी, पुलिस की निष्क्रियता, सत्ता पक्ष का विपक्ष को या विपक्ष का सरकार को दोष देने की राजनीति इस द...
मुसलमान भाई-बहन समझें कि मानवता के नाते अनाथ बच्चों को गोद लिया जाता है, मां-बाप वाले बच्चों को नहीं

मुसलमान भाई-बहन समझें कि मानवता के नाते अनाथ बच्चों को गोद लिया जाता है, मां-बाप वाले बच्चों को नहीं

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जब भी कोई दंगा होता है। मानवता कराहती है और समाज नंगा होता है। मैं भी चाहता तो हूँ कि दिल्ली दंगों के दौरान अनेक हिंदुओं ने जिस तरह से जान पर खेलकर अनेक मुसलमानों को बचाया, और अनेक मुसलमानों ने जिस तरह से जान पर खेलकर अनेक हिंदुओं को बचाया, उससे राहत की सांस लूं और तसल्ली रखूं कि इंसानियत अभी ज़िंदा है, लेकिन कुछ सियासी दलों ने जिस तरह से खेल खेला है और बिना किसी बात के हमारे मुसलमान भाइयों-बहनों को युद्ध के मैदान में खड़ा कर दिया है, वह चिंताजनक है। इस सियासी खेल का अंजाम यह होगा कि मुसलमान भाई-बहन दिन-ब-दिन मुख्य धारा से और कटते जाएंगे और हिंदुओं में भी मुसलमानों के प्रति शंकाएं बढ़ती ही जाएंगी, जो अंततः इस टकराव को और बढ़ाएगा। फिर,40 लोगों की मौत के बाद मेरे जैसे लोग इस बात पर गर्व नहीं कर सकते कि मारने वाले थे, तो बचाने वाले भी थे। मैं समस्या को उसकी जड़ से खत्म होते हुए दे...
दंगा करने वाले और कराने वाले अब इस देश को ब्लैकमेल नहीं कर सकते!

दंगा करने वाले और कराने वाले अब इस देश को ब्लैकमेल नहीं कर सकते!

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जब भी कोई दंगा होता है, मानवता कराहती है, समाज नंगा होता है। लेकिन ये दंगा होता क्यों है? क्योंकि दंगे के कारणों की हम कभी भी निष्पक्षता से समीक्षा नहीं करते। सबकी अपनी-अपनी राजनीति है और लोगों को इंसानी लाशों पर भी राजनीति की रोटियां सेंकने से गुरेज नहीं है। दिल्ली का यह दंगा अवश्यम्भावी था- इस आशंका से मेरा मन लगातार कांप रहा था, लेकिन मुंह से यह अशुभ निकालने से बचता रहा। परंतु अन्य सभी तरीकों से लिखकर लोगों को आगाह करने की कोशिश की। कभी प्यार से समझाकर, कभी नाराज़गी प्रकट करके। लोगों ने नहीं समझा, तो तीखा भी बोलना पड़ा। अब अंततः दंगा हो चुका है तो कुछ लोगों के कलेजे को ठंडक पड़ गई होगी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल, डी राजा, असदुद्दीन ओवैसी और देश भर में इनके तमाम सहयोगी दलों और उनके तमाम नेताओं को बधाई, क्योंकि इनके मकसद का पहला चरण पूरा हुआ। ...
अपरिहार्य ‘हिंदुत्व

अपरिहार्य ‘हिंदुत्व

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  संघ प्रमुख मोहन भागवत का कथन कि 'राष्ट्रवाद’ जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब नाज़ी या हिटलर से निकाला जा सकता है, ऐसे में राष्ट्र या राष्ट्रीय जैसे शब्दों को ही प्रमुखता से इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया के सामने इस वक्त इस्लामी आतंकवाद, कट्टरपंथ और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे बड़ी चुनौती हैं। दुनिया के सामने जो बड़ी समस्याएं हैं, उनसे सिर्फ भारत ही निजात दिलवा सकता है। हिंदू ही एक ऐसा शब्द है जो भारत को दुनिया के सामने सही तरीके से पेश करता है। भले ही देश में कई धर्म हों, लेकिन हर व्यक्ति एक शब्द से जुड़ा है जो हिंदू है। ये शब्द ही देश की संस्कृति को दुनिया के सामने दर्शाता है। वास्तव में यही भारत, भारतीयता और हिंदुत्व का सही परिचय है- शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, मानवतावादी दृष्टिकोण, प्रकृति केंद्रित विकास व सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की अवधारणा। ...