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संस्कृति और अध्यात्म

अनादिकाल से सूर्य ‘ॐ’ का जाप कर रहा है*

अनादिकाल से सूर्य ‘ॐ’ का जाप कर रहा है*

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सूर्य से ॐ की ध्वनि निकल रही हैसूर्य से निकलने वाली ध्वनि इतनी कम आवृत्ति की है कि हम इसे अपने कानों से नही सुन सकते। NASA ने इस ध्वनि को Record किया है। जब इसकी आवृत्ति को बढाकर सुना गया तो यह ॐ की ध्वनि पाई गई। यह आश्चर्य की बात है। हजारों वर्ष पूर्व वेद लिखने वालों ने इसे कैसे सुना, यह प्रश्न अनसुलझा है लेकिन यह वेदों की महत्ता और महानता को सिद्ध करता है।नासा के वैज्ञानिकों ने अनेक अनुसंधानों के बाद डीप स्पेस में यंत्रों द्वारा सूर्य में हर क्षण होने वाली एक ध्वनि को रिकॉर्ड किया। उस ध्वनि को सुना तो वैज्ञानिक चकित रह गए, क्योंकि यह ध्वनि कुछ और नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की वैदिक ध्वनि 'ॐ' थी। सुनने में बिलकुल वैसी, जैसे हम 'ॐ' बोलते हैं। इस मंत्र का गुणगान वेदों में ही नहीं, हमारे अन्य ग्रंथों में भी किया गया है।आश्चर्य इस बात का था कि जो गहन ध्वनि मनुष्य अपने कानों से नहीं सुन स...
श्रीराम : जनसामान्य में देवत्व का संचार करने वाले भगवान

श्रीराम : जनसामान्य में देवत्व का संचार करने वाले भगवान

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प्रशांत पोळ दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती हैं. भगवान विष्णु के दस अवतारों में, श्रीराम का अवतार ही ऐसा अवतार हैं, जिसमे चमत्कार न के बराबर हैं. किन्तु फिर भी दुनिया प्रभु श्रीराम को ही पूजती हैं. संपूर्ण भारत में, भौगोलिक / भाषिक विभेदों से ऊपर उठकर श्रीराम पूजे जाते हैं. भारत ही क्यों, विश्व की सबसे ज्यादा मुस्लिम लोकसंख्या वाले देश इंडोनेशिया में आज भी प्रभु श्रीराम के जीवन प्रसंग पर आधारित लीलाओं का मंचन होता हैं. थायलैंड के राजा, अपने नाम में ‘राम’ का नाम जोड़ते हैं. उसमे गर्व का अनुभव करते हैं. बैंकॉक के प्रमुख रास्तों के नाम ‘राम-१’, ‘राम-२’ ऐसे हैं. सारा दक्षिण पूर्व एशिया, सूरीनाम, मॉरीशस, फ़िजी.. सभी श्रीराम की आराधना करते हैं. उनका गुणगान गाते हैं. प्रभु श्रीराम ने कोई चमत्कार नहीं दिखाए थे. अहिल्या को शीला रूप से मुक्त किया, ऐसा कहा जाता हैं. किन्तु वह प्रतीकात्मक हैं. ...
नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते है भूल देवी के नवरात्र तब, लगते सभी फिजूल

नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते है भूल देवी के नवरात्र तब, लगते सभी फिजूल

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क्या हमारा समाज देवी की लिंग-संवेदनशील समझ के लिए तैयार है? नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है। पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं। बहुत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपमान किया जाता है। आज भी भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है। ऐसा क्यों? क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे हैं। कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें। इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं। दुनिया में और यौन भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलनों के साथ देवी की अवधारणा में विविधता लाने का समय आ गया है। -प्रियंका सौरभ नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृ...
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा – हृदयनारायण दीक्षित

हिंदू राष्ट्र की अवधारणा – हृदयनारायण दीक्षित

TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म
भारतीय राष्ट्रभाव अतिप्राचीन है। इसका मूल आधार हिन्दू संस्कृति है। सम्प्रति हिन्दू राष्ट्र पर विमर्श है। हिन्दू संस्कृति के कारण यह हिन्दू राष्ट्र है। कुछ लोग भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। उनका मंतव्य स्पष्ट नहीं है। राष्ट्र राजनैतिक इकाई नहीं है। यह सांस्कृतिक अनुभूति है। विश्व विराट यथार्थ है। हिन्दू संस्कृति में यह परिवार है। पृथ्वी ब्रह्माण्ड की एक इकाई है। हिन्दू संस्कृति में यह माता है। आकाश पिता हैं। नदियां जल प्रवाह हैं। लेकिन हिन्दू संस्कृति में माता हैं। हिन्दू संस्कृति में वनस्पतियां अग्नि, वायु जल भी देवता हैं। पूर्वजों में प्रकृति के प्रति आत्मीय भाव था। इसी संस्कृति से हिन्दू राष्ट्र बना। राष्ट्र और राज्य भिन्न भिन्न हैं। पं० दीनदयाल उपाध्याय ने लिखा है, ‘‘संयुक्त राष्ट्र वस्तुतः राष्ट्रों का संगठन नहीं है। राष्ट्रों के प्रतिनिधि के नाते संयुक्त राष्ट...
Festival of the prosperity of life and Akhand Suhag ‘Gangaur’

Festival of the prosperity of life and Akhand Suhag ‘Gangaur’

संस्कृति और अध्यात्म
Gangaur is such a festival, which is associated with the sentiments of the people. It has visions of the realities of village life. These festivals related to deities and religious beliefs introduce us to the realities of life. The festival of Gangaur comes at a time when the crops have been harvested. The farming class is at leisure. Financially also the hand is strong. In such a situation, the atmosphere becomes more cheerful. The religious faith of the people also becomes strong. Life starts going on with double the enthusiasm. New energy is born. One more special thing, through religion, through sweet songs, daughters get proper education to live life. That too without saying anything. This festival is a unique medium to make women powerful and cultured. Keeping personal interests...
गणगौर: अखंड सौभाग्य का पर्व

गणगौर: अखंड सौभाग्य का पर्व

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बेला गर्ग गणगौर का त्यौहार सदियों पुराना हैं। हर युग में कुंआरी कन्याओं एवं नवविवाहिताओं का अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा संबंध इस पर्व से जुड़ा रहा है। यद्यपि इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है किन्तु जीवन मूल्यों की सुरक्षा एवं वैवाहिक जीवन की सुदृढ़ता में यह एक सार्थक प्रेरणा भी बना है।गणगौर शब्द का गौरव अंतहीन पवित्र दाम्पत्य जीवन की खुशहाली से जुड़ा है। कुंआरी कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए और नवविवाहिताएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं, व्रत करती हैं, सज-धज कर सोलह शृंगार के साथ गणगौर की पूजा की शुरुआत करती है। पति और पत्नी के रिश्तें को यह फौलादी सी मजबूती देने वाला त्यौहार है, वहीं कुंआरी कन्याओं के लिए आदर्श वर की इच्छा पूरी करने का मनोकामना पर्व है। यह पर्व आदर्शों की ऊंची मीनार है, सांस्कृतिक परम्पराओं की अद्वितीय...
सांस्कृतिक और संस्कारिक एकता के मूल आधार है हमारे सामाजिक त्यौहार।

सांस्कृतिक और संस्कारिक एकता के मूल आधार है हमारे सामाजिक त्यौहार।

TOP STORIES, राष्ट्रीय, संस्कृति और अध्यात्म
हिंदुस्तान त्योहारों का देश है। त्योहार हमको सामाजिक और संस्कारिक रूप से जोड़ने का काम करते हैं। हमारी सांस्कृतिक और संस्कारिक एकता ही भारत की अखंडता का मूल आधार है। ‘‘व्रत -त्यौहारों के दिन हम देवताओं का स्मरण करते हैं, व्रत, दान तथा कथा श्रवण करते हैं, जिससे व्यक्तिगत उन्नति के साथ सामाजिक समरसता का संदेश भी समाज में पहुंचता है। इसमें ही भारतीय संस्कृति के बीज छिपे हैं। ’’ हमारे सामाजिक जीवन में कुछ ऐसे दिन आते हैं जिनसे मात्र एक व्यक्ति, या परिवार ही नहीं वरन पूरा समाज आनंदित और उल्लासित होता है। भारत को यदि पर्व-त्योहारों का देश कहा जाए तो उचित होगा। यहां भोजपुरी भाषा में एक कहावत है- ‘सात वार नौ त्यौहार’। -डॉo सत्यवान सौरभ कृषि प्रधान होने के कारण प्रत्येक ऋतु - परिवर्तन हंसी - खुशी मनोरंजन के साथ अपना - अपना उपयोग रखता है। इन्हीं अवसरों पर त्योहार का समावेश किया गया है , जो उच...
हिन्दू नववर्ष ; सृष्टि चक्र का शाश्वत सनातन प्रवाह

हिन्दू नववर्ष ; सृष्टि चक्र का शाश्वत सनातन प्रवाह

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटलचैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि भारतीय संस्कृति में अपना विशिष्ट महत्व रखती है। यह तिथि नवसम्वत्सर - हिन्दू नववर्ष के उत्साह पर्व की तिथि है। यह तिथि भारतीय मेधा के शाश्वत वैज्ञानिकीय चिंतन - मंथन के साथ - साथ लोकपर्व के रङ्ग में जीवन के सर्वोच्च आदर्शों से एकात्मकता स्थापित करती है। वैज्ञानिकता पर आधारित प्राचीन श्रेष्ठ कालगणना पध्दति के अनुरूप ऋतु चक्र परिवर्तन एवं सूर्य - चन्द्र की गति के अनुरूप नव सम्वत्सर का प्रारम्भ होता है। भारतीय संस्कृति यानि हिन्दू संस्कृति के माहों ( मासों ) का नामकरण नक्षत्रों के नाम पर हुआ। और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने व्यवस्था दी कि - जिस मास में जिस नक्षत्र में चन्द्रमा पूर्ण होगा , वह मास उसी नक्षत्र के नाम से जाना जाएगा। और इस पध्दति के अनुसार — चैत्र - चित्रा, वैशाख - विशाखा, ज्येष्ठ - ज्येष्ठ, अषाढ़ - अषाढ़ा, श्रावण - श्रवण, भ...
गुड़ी पड़वा : नवसंवत्सर का आरंभ

गुड़ी पड़वा : नवसंवत्सर का आरंभ

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वैज्ञानिक अनुसंधान के सभी पहलू हैं काल गणना आरंभ के इस नववर्ष में रमेश शर्मा आज सृष्टि के विकास आरंभ का दिन है, और संसार के लिये कालगणना के लिये नवसंवत्सर । अर्थात नये संवत् वर्ष का प्रथम दिन है । आज से विक्रम संवत् 2080 और युगाब्द 5125 आरंभ हो रहा है । इस संवत्सर का आरंभिक नाम नल और 24 अप्रैल से पिंगल होगा । वर्ष राजा के बुध और मंत्री का दायित्व शुक्र के पास रहेगा।युगाब्द महाभारत युद्ध के बाद सम्राट युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की और विक्रम संवत् शकों की मुक्ति के बाद महाराज विक्रमादित्य के राज्याभिषेक की तिथि है । भारत में कोई तिथि, त्यौहार, परंपरा, उत्सव और उसका शब्द संबोधन यूँ ही नहीं होता । इसके पीछे सैकड़ो वर्षों का शोध, अनुसंधान का निष्कर्ष होता है । जिसमें प्रकृति से तादात्म्य निहित होता है । यह विशेषता इस नव संवत्सर तिथि की भी है । नवसंवत् आरंभ होने का यह दिन गुड़ी पड़वा दूसरा ...
भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस पर विशेष लेख

भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस पर विशेष लेख

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नव संवत्सर के दिन भगवान झूलेलाल का अवतरण हिंदू धर्म के रक्षार्थ हुआ था भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार वसंत ऋतु का पहला हिस्सा पतझड़ का हुआ करता है अर्थात पेड़ों, झाड़ियों, बेलों और पौधों के पत्ते सूखने लगते हैं, पीले होते हैं और फिर मुरझाकर झड़ जाते हैं। परंतु कुछ समय पश्चात उन्हीं सूखी, वीरान शाखाओं पर नाजुक कोमल कोंपलें आनी शुरू हो जातीं, यहीं से वसंत ऋतु अपने उत्सव के शबाब पर पहुंचती है। इस प्रकार पतझड़ और वसंत साथ-साथ आते हैं मानो यह संदेश देते हुए कि अवसान-आगमन, मिलना-बिछ़ुडना, पुराने का खत्म होना-नए का आना, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसी वसंत ऋतु में फागुन और चैत्र माह के महीने भी आते हैं। चैत्र माह के मध्य में प्रकृति अपने श्रृंगार एवं सृजन की प्रक्रिया में लीन रहती है और पेड़ों पर नए नए पत्ते आने के साथ ही सफेद, लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी, नीले रंग के फूल भी खिलने लगते ...