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संस्कृति और अध्यात्म

पर्वतों के विकास पर हो पुनः विचार

पर्वतों के विकास पर हो पुनः विचार

BREAKING NEWS, TOP STORIES, धर्म, राष्ट्रीय, संस्कृति और अध्यात्म
भारत देश के पर्वत अन्य देशों के पर्वतों की भांति साधारण नहीं है, वरन् इन पर्वतों पर विभिन्न देवी-देवताओं का वास है। उनमें भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं माँ दुर्गा आदि अन्य देवी-देवता अनेकों रूपों में विराजमान हैं। अतीतकाल में अंग्रेजों ने इन्हीं पर्वत श्रृंखला के सौन्दर्य से परिपूर्ण शहरों यथा - शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जीलिंग, रानीखेत आदि को अपनी मौज-मस्ती हेतु विकसित किया। उनकों विकसित करने में उनका यह प्रमुख उद्देशय था कि वे अपनी मित्र मंडली के साथ भारतीय महिलाओं पर अत्याचार व दुराचार कर सकें। अंग्रेजो ने भारत छोड़ने से पूर्व अपने समस्त बंगलें अपने चापलूसों और दासों को कम धनराशि में बेच दिए थे। वे देशद्रोही बंगले के मालिक इन भारतीय धरोहरों का संरक्षण करने में असमर्थ थे, अतः उन्होंने उनका विक्रय करना प्रारम्भ कर दिया और कुछ समय पश्चात ही वे बंगले होटलों में परिवर्तित होने लगे और वहा...
सरस्वती पूजन और बसंतागमन

सरस्वती पूजन और बसंतागमन

संस्कृति और अध्यात्म
[आज सुबह मन में उठ रहा एक प्रश्न यहाँ मित्रों के बीच रखा था। जिन सुधी महानुभावों ने अपनी सुविचारित टिप्पणियों से उसे और अधिक विचारास्पद बनाया उन सभी का सकृतज्ञता साधुवाद।...उसी विषय पर अब थोड़ा विस्तार से]""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""सर्वविदित है कि बसंतपंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। दो कारणों से इसका विशेष महत्व है। पहला, यह सरस्वती पूजन का पर्व है और दूसरा, इसे बसंत ऋतु का प्रवेश द्वार माना जाता है। सरस्वती विद्या, ज्ञान और समस्त कलाओं की अधिष्ठात्री देवी है तथा बसंत ऋतु नव सृजन और नए संवत्सर की प्रथम ऋतु होने के कारण दोनों ही अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रसंग हैं। प्रश्न है कि बसंतपंचमी से जुड़े इन दोनों प्रसंगों में क्या कोई पारस्परिक संबंध है?एक और विचारणीय प्रश्न हमारे सामने आता है कि भारतीय कालगणना की दृष्टि से चैत्र एवं व...
बड़वा का प्राचीन झांग-आश्रम जहां बादशाह जहांगीर ने डाला था डेरा

बड़वा का प्राचीन झांग-आश्रम जहां बादशाह जहांगीर ने डाला था डेरा

संस्कृति और अध्यात्म
1620 ईसवी के आस -पास मुग़ल बादशाह (सलीम) जहांगीर (उत्तरी पूर्वी पंजाब की पहाड़ियों पर स्थित कांगड़ा के दुर्ग) काँगड़ा जाने के लिए इसी रस्ते से गुजरे थे। इस दौरान उनकी सेना ने आराम करने के लिए इस क्षेत्र में पड़ाव डाला था। तभी इनकी मुलाकात संत पुरुष लोह लंगर जी महारज से हुई। पीने के पानी की समस्या से त्रस्त बादशाह जहांगीर की सेना ने यहाँ तालाब की खुदाई कर डाली। जो आज जहांगीर तालाब के नाम से मशहूर है। -डॉ सत्यवान सौरभ  भिवानी उपमंडल सिवानी के आखरी छोर पर स्थित गाँव बड़वा हिसार जिले को छूता है। हरियाणा के सबसे प्राचीन गाँवों में से एक, बड़वा पहले बड़-बड़वा के नाम से जाना जाता था। बड़वा गाँव कई  इतिहासिक साक्ष्यों का गाँव है। इसकी तुलना हवेलियों के वैभवशाली गाँव से की गई है। यह गाँव प्राचीन समय से स्थापत्यकला, मूर्तिकला, साहित्य, चित्रकला, व्यवसाय, धर्म  एवं  शिक्षा ...
स्वामी विवेकानंद ने अध्यात्म के बल पर भारत को विश्व गुरु बनाने के किए थे प्रयास 

स्वामी विवेकानंद ने अध्यात्म के बल पर भारत को विश्व गुरु बनाने के किए थे प्रयास 

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकत्ता में हुआ था। आपका बचपन का नाम श्री नरेंद्र नाथ दत्त था। बचपन से ही आपका झुकाव आध्यात्म की ओर था। आपने श्री रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी एवं अपने गुरु जी से बहुत अधिक प्रभावित थे। आपने बचपन में ही अपने गुरु जी से यह सीख लिया था कि सारे जीवों में स्वयं परमात्मा का अस्तित्व है अतः जरूरतमंदों की मदद एवं जन सेवा द्वारा भी परमात्मा की सेवा की जा सकती है। अपने गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात स्वामी विवेकानंद जी ने  भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में विचरण, यह ज्ञान हासिल करने के उद्देश्य से, किया था कि ब्रिटिश शासनकाल में इन देशों में निवास कर रहे लोगों की स्थिति कैसी है। कालांतर में वे स्वयं वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। आपको वर्ष 1893 में शिकागो, अमेरिका में आयोजित की जा रही विश...
गंगा जल

गंगा जल

संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है ? सर्दी के मौसम में कई बार खांसी हो जाती है। जब डॉक्टर से खांसी ठीक नही हुई तो किसी ने बताया कि डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तब गंगाजल पिलाना चाहिए। गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है ; तो डॉक्टर साहिब बोले- नहीं ! कई रोगों का इलाज भी है। दिन में तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिया और तीन दिन में खांसी ठीक हो गई। यह अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं। कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करता ही था, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाता था। इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे ...
आध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत के भक्त एवं भजन सम्राट

आध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत के भक्त एवं भजन सम्राट

संस्कृति और अध्यात्म
नरसी मेहता की जन्म जयन्ती- 19 दिसम्बर, 2022 के लिये विशेषसंत शिरोमणि नरसी मेहताआध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत के भक्त एवं भजन सम्राट-ः ललित गर्ग:-भगवान श्रीकृष्ण भक्ति में सराबोर भक्तों की लम्बी शृंखला में नरसी मेहता का नाम सर्वोपरि है। उनकी निश्छल और चरम भक्ति इतनी प्रभावी रही है कि श्रीकृष्ण से सीधे सम्पर्क में रहे, उनका उनके साथ सीधा संवाद होता था। उनके भक्ति रस से आप्लावित भजन आज भी जनमानस को ढांढस बंधाते हैं, धर्म का पाठ पढ़ाते हैं और जीवन को पवित्र बनाने की प्रेरणा देते हैं। उनके भजनों में जीवंत सत्यों का दर्शन होता है। जिस प्रकार किसी फूल की महक को शब्दों में बयां करना कठिन है, उसी प्रकार गुजराती के इस शिखर संतकवि और श्रीकृृष्ण-भक्त का वर्णन करना भी मुश्किल है। उनकी भक्ति इतनी सशक्त, सरल एवं पवित्र थी कि श्रीकृष्ण को अनेक बार साक्षात प्रकट होकर अपने इस प्रिय भक्त की सहायता करन...
ऋषि राजपोपट और पाणिनि

ऋषि राजपोपट और पाणिनि

BREAKING NEWS, TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर चुके 27 वर्षीय ऋषि राजपोपट द्वारा पाणिनि कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर चुके 27 वर्षीय ऋषि राजपोपट द्वारा पाणिनि व्याकरण की सदियों से उलझी गुत्थी सुलझाने की खबर आपको भी मिली होगी। ऋषि ने बहुत सुन्दर बात कही है कि समाधान सदियों से विद्वानों की नजर के सामने था लेकिन उनके अक्ल से परे था। उनके द्वारा प्रस्तुत समाधान पढ़कर ऐसा ही लगा कि इतनी जरा सी बात विद्वान सदियों से नहीं समझ पा रहे थे!  भाषा के क्षेत्र में पूरी दुनिया में पाणिनि की प्रतिभा अतुलनीय हैं। भारतीयों के लिए राहत की बात इतनी ही है कि एक भारतीय ने ही यह गुत्थी सुलझायी है। गुत्थी यह थी कि पाणिनि व्याकरण के अनुसार जब संस्कृत में दो शब्दों को मिलाकर कोई नया शब्द बनाया जाता है तो दोनों शब्दों पर दो अलग-अलग नियम लागू हो सकते हैं और दोनों नियमों से दो अलग-अलग शब्द बनेंगे। समस्या यह थी कि जब...

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगश्रीराम की अँगूठी का रहस्य

संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
श्रीरामचरितमानस में श्रीराम की अँगूठी का प्रसंगश्रीराम को १४ वर्ष तक तापस वेष में तथा वन (दण्डकारण्य) में रहने का वरदान कैकेयी ने राजा दशरथ से माँगा था तथा भरत का राज्याभिषेक। श्रीराम तपस्वी के वेष में होने के उपरान्त भी अपने साथ धनुष, बाण, तलवार आदि शस्त्र लेकर वन को गए थे। श्रीराम क्षत्रिय थे अतएव उन्होंने शस्त्र धारण किए। उनके अवतार लेने का उद्देश्य हनुमानजी ने रावण को बताया है। इससे उनके शस्त्र धारण का कारण स्पष्ट हो जाता है।गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।।जन रंजन-भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।।श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड ३९ (क) 2हनुमानजी रावण को कहते हैं कि उन कृपा के समुद्र भगवान (श्रीराम) ने पृथ्वी, ब्राह्मण गौ और देवताओं का हित करने के लिए ही मनुष्य शरीर धारण किया है। हे भाई! सुनिए, वे सबको आनन्द देने वाले, दुष्टों के समूह का नाश करने वाले और वेद त...
बंगला कृत्तिवास रामायण में हनुमानजी द्वारा रावण का गुप्त मृत्युबाण हरण

बंगला कृत्तिवास रामायण में हनुमानजी द्वारा रावण का गुप्त मृत्युबाण हरण

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगबंगला कृत्तिवास रामायण में हनुमानजी द्वारा रावण का गुप्त मृत्युबाण हरण श्रीराम, लक्ष्मण, सुग्रीव और धार्मिक गुणों से सम्पन्न विभीषण, चारों बैठ कर परामर्श करने लगे कि रावण कहाँ है? रावण का कोई पता नहीं चला पा रहे हैं। इधर रावण सोचने लगा कि राम युद्ध नहीं कर पा रहे हैं। सम्भवत: सीता को छोड़कर पलायन भी कर जाएं। ऐसा सोचकर रावण अपने को समझा रहा था। अब भी सीता मिल जाएं तो दु:ख के बाद सुख प्राप्त होगा। इन्द्रजीत (मेघनाद) और महीरावण दोनों की मृत्यु हो गई है फिर भी यदि सीता मिल जाए तो सारे दु:खों का अन्त हो जाएगा।विभीषण ने श्रीराम से कहा- हे प्रभु एक पुरानी बात याद आ गई। जब हम तीनों भाईयों ने मिलकर तपस्या की और जब पद्मयोनि (ब्रह्माजी) हम लोगों को वर देने के लिए आए तो राजा दशानन ने अमर होने का वर माँगा। ब्रह्माजी ने कहा कि हे निशाचर सुनो, अमरता का वर मत माँगो...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगक्षत्रिय विश्वामित्र राजर्षि से ब्रह्मर्षि कैसे बने का वृत्तांत

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगक्षत्रिय विश्वामित्र राजर्षि से ब्रह्मर्षि कैसे बने का वृत्तांत

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
श्रीरामकथा में विश्वामित्रजी के जीवनचक्र को जानना अत्यन्त आवश्यक है। वाल्मीकि रामायण ही नहीं प्राय: सभी श्रीरामकथाओं में उनका अपना एक विशेष स्थान है। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के बालकाण्ड में उनके चरित्र का वर्णन शतानन्दजी के द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण को जनकपुर पहुँचने पर सुनाया गया। यह वृत्तांत लगभग पन्द्रह सर्गों में वर्णित हैं। विश्वामित्रजी का जीवन वृत्तांत शतानंदजी ने बहुत विस्तारपूर्वक श्रीराम से कहा है। अधिकांश पाठक इस रामायण की भाषा संस्कृत होने से कठिन समझकर इसका अध्ययन करने से वंचित हो जाते हैं। अत: ऐसे सुधी पाठकों एवं युवा पीढ़ी महर्षि विश्वामित्र ही नहीं उनके साथ-साथ ब्रह्मर्षि वसिष्ठजी के बारे में जान सकेंगे यह विचार कर प्रस्तुत प्रसंग का रोचकतापूर्ण वर्णन किया जा रहा है।महर्षि विश्वामित्र उनके सिद्धाश्रम से राक्षसों के वध उपरान्त तथा अहल्या उद्धार श्रीराम से करवाकर महाराज जनक...