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सामाजिक

Human Management

सामाजिक
मानवीय प्रबंधन की समझ इस कहानी को कई प्रबंधन गुरु सुना चुके हैं। मैं बस इसे भारतीय नामों के साथ दोहरा रहा हूँ रामू शिमला के आसपास एक ईमानदार लकड़हारा था। वह पिछले 20 वर्षोंं से लाला अमृतलाल के लिए काम कर रहा था। एक दिन, एक और युवा कटर किशोरी को रामू को मिलने वाले आधे वेतन पर रखा। दोनों ही अपने मालिक के लिए मिलकर काम कर रहे थे कुछ दिनों के भीतर, लाला जी ने देखा कि किशोरी का उत्पादन रामू की तुलना में बहुत अधिक था। मगर उसे पिछले बीस सालों से वफादार रहे रामू से आधा ही वेतन मिल रहा था। लेकिन लाला जी किशोरी के आउटपुट के से बहुत खुश हुए और उसके दो ही महीनों में किशोरी का वेतन बढ़ा दिया। किशोरी खुश था और जोश (उत्साह) के साथ उसने काम करना शुरू कर दिया लेकिन रामू खुश नहीं था। एक और दो महीने बीत गए और किशोरी का वेतन रामू के बराबर हो गया, रामू को बहुत बुरा महसूस हुआ और उसने लाल...
क्यों नहीं रुक रही भ्रूण हत्या और लिंगभेद ?

क्यों नहीं रुक रही भ्रूण हत्या और लिंगभेद ?

सामाजिक
लेखक : अरुण तिवारी क़ानूनी तौर पर अभी लिंग परीक्षण, एक प्रतिबंधित कर्म है। ''इसकी आज़ादी ही नहीं, बल्कि अनिवार्यता होनी चाहिए।'' - श्रीमती मेनका गांधी ने बतौर महिला एवम् बाल विकास मंत्री कभी यह बयान देकर, भ्रूण हत्या रोक के उपायों को लेकर एक नई बहस छेङ दी थी। उनका तर्क था कि अनिवार्यता के कारण, हर जन्मना पर कानून की प्रशासन की नज़र रहेगी। उनका यह तर्क सही हो सकता है, किंतु भ्रष्टाचार के वर्तमान आलम के मद्देनज़र क्या यह गारंटी देना संभव है कि प्रशासन की नज़र इस अनिवार्यता के कारण कमाई पर नहीं रहेगी ? प्रश्न यह भी है कि क्या क़ानून बनाकर, भ्रूण हत्या या लिंग भेद को रोका जा सकता है ? क्या लिंग परीक्षण को प्रतिबंधित कर यह संभव हुआ है ? आइये, जानें कि भ्रूण हत्या और इस पर रोक के प्रयासों की हक़ीकत क्या है ? कानून के बावजूद लिंगानुपात में घटती बेटियां : एक ओर बेटे के सानिध्य, संपर्क और संबल ...
फरिश्ते आसमान से नहीं उतरते

फरिश्ते आसमान से नहीं उतरते

सामाजिक
-विनीत नारायण ये किस्सा सुनकर शायद आप यकीन न करें। पर है सच। मुंबई के एक मशहूर उद्योगपति अपने मित्रों के सहित स्वीट्जरलैंड के शहर जेनेवा के पांच सितारा होटल से चैक आउट कर चुके थे। सीधे एयरर्पोट जाने की तैयारी थी। तीन घंटे बाद मुंबई की फ्लाइट से लौटना था। तभी उनके निजी सचिव का मुंबई दफ्तर से फोन आया। जिसे सुनकर ये सज्जन अचानक अपनी पत्नी और मित्रों की ओर मुड़े और बोले, ‘आप सब लोग जाईए। मैं देर रात की फ्लाइट से आउंगा’। इस तरह अचानक उनका ये फैसला सुनकर सब चैंक गये। उनसे इसकी वजह पूछी, तो उन्होंने बताया कि, ‘अभी मेरे दफ्तर में कोई महिला आई है, जिसका पति कैंसर से पीड़ित है। उसे एक मंहगे इंजैक्शन की जरूरत है। जो यहीं जेनेवा में मिलता है। मैं वो इंजैक्शन लेकर कल सुबह तक मुबई आ जाउंगा। परिवार और साथी असमंजस्य में पड़ गये, बोले इंजेक्शन कोरियर से आ जायेगा, आप तो साथ चलिए। उनका जबाव था, ‘उस आदमी...
मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 22,23 एवं 24 जनवरी, 2018 के उपलक्ष्य में  मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व

मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 22,23 एवं 24 जनवरी, 2018 के उपलक्ष्य में मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व

संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
ललित गर्ग  आज धर्म एवं धर्मगुरु जिस तरह मर्यादाहीन होते जा रहे हैं, वह एक गंभीर स्थिति है। जबकि किसी भी धर्मगुरु, संगठन, संस्था या संघ की मजबूती का प्रमुख आधार है-मर्यादा। यह उसकी दीर्घजीविता एवं विश्वसनीयता का मूल रहस्य है। विश्व क्षितिज पर अनेक संघ, संप्रदाय, संस्थान उदय में आते हैं और काल की परतों तले दब जाते हैं। वही संगठन अपनी तेजस्विता निखार पाते हैं, जिनमें कुछ प्राणवत्ता हो, समाज के लिए कुछ कर पाने की क्षमता हो। बिना मर्यादा और अनुशासन के प्राणवत्ता टिक नहीं पाती, क्षमताएं चुक जाती हैं। मर्यादा धर्म संगठनों का त्राण है, प्राण है, जीवन रस है। अंधियारी निशा में उज्ज्वल दीपशिखा है। समंदर के अथाह प्रवाह में बहते जहाज के लिए रोशनी की मीनार है। मैंने देखा है कि तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान संगठन है और उसमें मर्यादाओं का सर्वाधिक महत्व है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन सम...
bachpan

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सामाजिक
बच्चों और बुजुर्गों के साझे और संवाद को प्रेरित करता एक प्रसंग सांझ सकारे सूर्योदय लेखक: अरुण तिवारी राजनाथ शर्मा, वैसे तो काफी गंभीर आदमी थे। लेकिन जब से पचपन के हुए, उन पर अचानक जैसे बचपन का भूत सवार हो गया। जब देखो, तब बचपन की बातें और यादें। रास्ते चलते बच्चों को अक्सर छेड़ देते। रोता हो, तो हंसा देते। हंसता हो, तो चिढ़ा देते। 'हैलो दोस्त' कहकर किसी भी बच्चे के आगे अपना हाथ बढ़ा देते। उनकी जेबें टाॅफी, लाॅलीपाॅप, खट्टी-मिट्ठी गोलियों जैसी बच्चों को प्रिय चीजों से भरी रहतीं। कभी पतंग, तो कभी गुब्बारे खरीद लेते और बच्चों में बांट देते। तुतलाकर बोलते। कभी किसी के कान में अचानक से 'हू' से कर देते। बच्चों जैसी हरकते करने में उन्हे मज़ा आने लगा। अब वह जेब में एक सीटी भी रखने लगे थे। उसे बजाकर बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते। यहां तक कि उनके कदम पार्क में भी जाकर बच्चों के बीच ही टिकते। बच्...
Living Life On The Surface

Living Life On The Surface

सामाजिक
In an ideal situation, the thoughts that run in my mind, should be exactly those that I would like and I want. We do exert this control, that we possess, over our thoughts, but it is not complete and it is only sometimes. The more we become completely engrossed in our daily routine, the more our thoughts tend to become ‘reactions’ to what goes on outside us. That’s when they go out of control and our lives move in an unfocused way. As a result things don't work out as we might have desired. Then we develop a habit of blaming other people and circumstances, or we justify our pain by telling ourselves we are not very worthy or powerful enough. Often, these two inner strategies go together. The trouble is, both are cover ups, preventing us from going for a long-term solution. In this ...
संस्कृत – अब बाजार की बनती मजबूरी सिविल और राज्य सर्विस में लोकप्रिय होती संस्कृत

संस्कृत – अब बाजार की बनती मजबूरी सिविल और राज्य सर्विस में लोकप्रिय होती संस्कृत

सामाजिक
भाषा किसी भी देश की अस्मिता और उसके अस्तित्व की सबसे बड़ी पहचान होती है, भाषा और बोलियों के समाप्त होने से न केवल भाषा बल्कि वह राष्ट्र समाप्त हो जाता है। और उस पर यदि संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा हो, जिसमें शताब्दियों पूर्व न जाने कितने शास्त्र आदि की रचना हो चुकी हो, जिस भाषा के द्वारा प्रदत्त ज्ञान पर आज भी कई रहस्य अनसुलझे हैं, और जिस संस्कृत भाषा को नासा आज सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा मानता है, क्या वह वाकई में ही लुप्त प्राय भाषा बन गयी है? क्या वह वाकई ऐसी भाषा बन गयी है जिसका कोई अस्तित्व नहीं या फिर ऐसी भाषा जो एक दिन विलुप्त हो जाएगी? कई ऐसा सोचते हैं, मगर पिछले कुछ वर्ष के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में संस्कृत भाषा न केवल सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में उभरी है बल्कि यह प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले बच्चों के लिए भी एक माध्यम के रूप में उभरी है। नई दिल्ली में प...
केवल आकाओं को सन्मति दे भगवान

केवल आकाओं को सन्मति दे भगवान

सामाजिक
ललित गर्ग: भारतीय लोकतंत्र एक बार फिर शर्मसार हुआ, सांसदों के अमर्यादित व्यवहार ने संसद की गरिमा को धुंधलाया है। कांग्रेस के छह सांसदों ने लोकसभा में जैसी अराजकता एवं अभद्रता का परिचय दिया और जिसके चलते उन्हें पांच दिनों के लिए निलंबित किया गया, यह भारतीय लोकतंत्र की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। लोकसभा में हंगामा होना आम बात हो गयी है। पुरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा के सांसदों के हंगामे और सदन में की जा रही अभद्रता एवं अशालीनता से क्या सन्देश जाता है ये तो हम सब जानते ही है लेकिन इसे शायद हमारे माननीय गण समझ नहीं पाते हंै। इस अशोभनीय घटना के ठीक एक दिन पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नसीहत दी कि हंगामे के कारण सत्तापक्ष से ज्यादा नुकसान विपक्ष का होता है। शायद कांग्रेसी सांसदों ने इस पर गौर नहीं किया। कांग्रेसी सदस्यों के लिए इस तरह के बेवजह हंगामें का कहीं कोई औचित्य नहीं बन...
सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए जीना इसी का नाम है

सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए जीना इसी का नाम है

सामाजिक
- मार्लन पीटरसन, सामाजिक कार्यकर्ता कैरेबियाई सागर का एक छोटा सा देश है त्रिनिदाद और टोबैगो। द्वीपों पर बसे इस मुल्क को 1962 में आजादी मिली। मार्लन के माता-पिता इसी मुल्क के मूल निवासी थे। उन दिनों देश की माली हालत अच्छी नहीं थी। परिवार गरीब था। लिहाजा काम की तलाश में वे अमेरिका चले गए। मार्लन का जन्म बर्कले में हुआ। तीन भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे। अश्वेत होने की वजह से परिवार को अमेरिकी समाज में ढलने में काफी मुश्किलें झेलनी पड़ीं। सांस्कृतिक और सामाजिक दुश्वारियों के बीच जिंदगी की जद्दोजहद जारी रही। शुरूआत में मार्लन का पढ़ाई में खूब मन लगता था, पर बाद में मन उचटने लगा। उनकी दोस्ती कुछ शरारती लड़कों से हो गई। माता-पिता को भनक भी नहीं लग पाई कि कब बेटा गलत रास्ते चल पड़ा? अब उनका ज्यादातर वक्त दोस्तों के संग मौज-मस्ती में गुजरने लगा। पापा की डांट-फटकार भी उन पर कोई असर नहीं होता था।...
Distribution of commemorative coins for general public and coin-collectors

Distribution of commemorative coins for general public and coin-collectors

सामाजिक
Presently there is no provision whereby coin-collectors can get newly issued commemorative coins as per their specific choice. System is that Reserve Bank of India RBI issues coin-bags of 2000 or 2500 pieces of commemorative to currency-chests of banks in place of normally-circulated coins according to normal need and requirement of currency-chests. Central government and RBI should ensure smaller packs of 100 commemorative coins to be packed by India Government Mints, where these coin-packs can be arranged to be issued right from date of issue at counters of selected banks, public and private, across the country where coin-collectors and other desiring persons easily get these small pack of coins. These selected bank-counters should also sell coin-sets issued at time of is...