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अशोक गहलोत की ताजपोशी का अर्थ

अशोक गहलोत की ताजपोशी का अर्थ

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अशोक गहलोत ने तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने हैं। गहलोत ने मुख्यमंत्री एवं उनके सहयोगी सचिन पायलट ने उप-मुख्यमंत्री के रूप में जयपुर के अल्बर्ट हॉल में शपथ ली। गहलोत 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने और 2008 में दूसरी बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। उन्होंने इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी तथा पी.वी.नरसिम्हा राव के मंत्रिमण्डल में केन्द्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया। वे तीन बार केन्द्रीय मंत्री बने। भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे बीच कांग्रेस की दिनोंदिन जनमत पर ढ़ीली होती पकड़ एवं पार्टी के भीतर भी निराशा के कोहरे को हटाने के लिये गहलोत के जादूई व्यक्तित्व ने अहम भूमिका निभाई है और उसी का परिणाम राजस्थान में कांग्रेस की जीत है। देश में राजनीतिक सोच में बड़े परिवर्तनों की आवश्यकता है। एक सशक्त लोकतंत्र के लिये भी यह जरूरी है। परिवर्तन के बारे मंे एक आश्चर्यजन...
फिरकापरस्तों से बचें हिंदुस्तानी

फिरकापरस्तों से बचें हिंदुस्तानी

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तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सोशल मीडिया पर दो बड़े खतरनाक संदेश आये। एक में हरा झंडा लेकर कुछ नौजवान जुलूस निकाल रहे थे कि ‘बाबरी मस्ज़िद’ वहीं बनाऐंगे। दूसरे संदेश में केसरिया झंडा लेकर एक जुलूस निकल रहा था, जिसमें नारे लग रहे थे, ‘एक धक्का और दो, ज़ामा मस्ज़िद तोड़ दो’’। ये बहुत खतरनाक बात है। इससे हिंदू और मुसलमान दोनों बर्बाद हो जाऐंगे और मौज मारेंगे वो सियासतदान जो इस तरह का माहौल बना रहे हैं। 1980 के पहले मुरादाबाद का पीतल उद्योग निर्यात के मामले में आसमान छू रहा था। यूरोप और अमरीका से खूब विदेशी मुद्रा आ रही थी।लोगों की तेजी से आर्थिक उन्नति हो रही थी। तभी किसी सियासतदान ने ईदगाह में सूअर छुड़वाकर ईद की नमाज में विघ्न डाल दिया। उसके बाद जो हिंदू-मुसलमानों के दंगे हुए, तो उसमें सैंकड़ों जाने गईं। महीनों तक कर्फ्यू लगा और पीतल उद्योग से जुड़े हजारों परिवार तबाह हो गऐ। कितने...
राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

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कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी – यह एक बहुत ही प्रचलित लोकोक्ति है. बताया जाता है कि कुत्ते की दुम को बारह साल तक पाइप में रखने पर भी सीधी नहीं होती है. पाइप से निकालते ही वो टेढ़ी हो जाती है. इस लोकोक्ति का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जो लाख कोशिशों के बावजूद सुधरने का नाम नहीं लेता. ऐसे व्यक्ति को 'कुत्ते की दुम' कहा जाता है. राफेल विवाद के मामले में राहुल गांधी और मोदी से घृणा करने वाले लॉबी की हालत कुत्ते की दुम की तरह हो गई है. ये हर बार बिना सबूत.. बिना तथ्य.. बिना किसी वजह के मोदी पर आरोप तो लगाते हैं लेकिन कुछ साबित नहीं कर पाते हैं. कोर्ट से लताड़ पड़ती है तो फिर कोई दूसरा मुद्दा उठा लेते हैं. राहुल गांधी को तो केजरीवाल की बीमारी लग गई है – बिना सबूत के आरोप लगाना फिर माफी मांगना. केजरीवाल तो एक शहर का नेता है लेकिन कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष जब सड़कछाप रा...
कौन भेजता भारत में अरबों डॉलर

कौन भेजता भारत में अरबों डॉलर

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भारत वर्ष के विभिन्न कोनों में चालू  वर्ष के दौरान विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों ने दिल खोलकर रकम भेजी। इन्होंने 80 बिलियन ड़ॉलर यानी करीब 80 अरब रुपये अपने देश में भेजा। वर्ल्ड बैंक की एक ताजा रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है। पिछले साल यह रकम 69 बिलियन डॉलर ही थी। मतलब दुनिया के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीय अपनी मातृभूमि पर दोनों हाथों से धन की वर्षा कर रहे हैं। आप कह सकते हैं कि देश से बाहर अपनी जिंदगी को संवारने गए ये लाखों भारतीय अब देश की किस्मत को भी बदलने में लग गये हैं। सबसे गौर करने लायक तथ्य ये है कि इनसे ज्यादा रकम किसी भी अन्य देश के विदेशों में रहने वाले नागरिकों ने अपने देश में नहीं भेजी। हालांकि पड़ोसी चीन के विदेशों में बसे नागरिकों की संख्या हमारे प्रवासी नागरिकों से कहीं अधिक हैं, पर हमने बाहर से प्राप्त रकम के मामले में उसे पछाड़ दिया। चीन को 2017 में 64 बिलियन ड...
NOTA be converted in Right-To-Reject

NOTA be converted in Right-To-Reject

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NOTA be converted in Right-To-Reject and Chief Ministers be elected in state-assemblies through secret and compulsory vote of all MLAs Winning of many party-rebels in recently held elections to five state-assemblies, ever-increasing vote-share of NOTA, strong factionalism in winning party in Hindi-heartland and necessity of costly by-elections because of candidates winning from dual constituencies call for urgent poll-reforms to be implemented before 2019-elections to Lok Sabha. A candidate must not be allowed to contest for more than one seat. Rather a sitting MP or MLA must first resign from earlier seat before filing nomination for the other. NOTA should be converted into Right-To-Reject where all candidates getting votes less than NOTA may be barred for life-time from contesting...
कब होगा एड्स उन्मूलन?

कब होगा एड्स उन्मूलन?

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जैसे कि चेन की सबसे कमज़ोर कड़ी ही उसकी ताकत का मापक होती है, वैसे ही, जन स्वास्थ्य का मापक भी उसके सबसे कमज़ोर अंश होते हैं. स्वास्थ्य सुरक्षा का सपना तभी पूरा होगा जब सबसे पिछड़े और समाज के हाशिये पर रह रहे लोग स्वस्थ रहेंगे. यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) दिवस पर यह सत्य दोहराना ज़रूरी है क्योंकि हर इंसान के लिए यूएचसी की सुरक्षा देने का वादा पूरा करने के लिए अब सिर्फ 12 साल शेष हैं. भारत सरकार समेत 193 देशों की सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा किया है जिनमें यूएचसी शामिल है. यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) दिवस पर एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया ने भारत सरकार से अपील की कि स्वास्थ्य कार्यक्रम में रोगों की जांच और इलाज पर ध्यान देना जितना ज़रूरी है उतना ही महत्वपूर्ण है रोग नियंत्रण. एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा, जो हाल ही में इंटरनेशनल एड्स सोसाइटी की संचाल...
स्वस्थ भारत के तीन आयामः जनऔषधि पोषण और आयुष्मान विषय पर हुआ राष्ट्रीय परिसंवाद

स्वस्थ भारत के तीन आयामः जनऔषधि पोषण और आयुष्मान विषय पर हुआ राष्ट्रीय परिसंवाद

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जिस समय दिल्ली के रामलीला मैदान में राम मंदिर की चर्चा जोर-शोर से चल रही थी, ठीक उसी समय दिल्ली के गांधी-शांति प्रतिष्ठान में स्वस्थ भारत की अगुवाई में स्वास्थ्य पत्रकारों की एक टोली स्वस्थ भारत की चर्चा में कर रही थी। स्वस्थ भारत एवं प्रधानमंत्री जनऔषधि परियोजना के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस परिसंवाद का मुख्य विषय था 'स्वस्थ भारत के तीन आयामः जनऔषधि पोषण और आयुष्मान'। स्वास्थ्य कार्यकर्ता एवं स्वस्थ भारत के चेयरमैन एवं सीनीयर स्वास्थ्य पत्रकार आशुतोष कुमार सिंह की पुस्तक 'जेनरिकोनॉमिक्स' का लोकार्पण किया जा रहा था तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी के माध्यम से आम लोगों को जागरूक कर रहे स्वास्थ्य पत्रकारों एवं मीडियाकर्मियों को सम्मानित जा रहा था। जनऔषधि परियोजना के सीइओ सचिन कुमार सिंह, नेशनल हेल्थ एजेंसी के इडी अरूण गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी,प्रसिद्ध गांधीव...
हमें इसलिए चाहिए अविरल गंगा

हमें इसलिए चाहिए अविरल गंगा

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गंगा की अविरलता की मांग को पूरा कराने के लिए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपने प्राण तक दांव पर लगा दिए। इसी मांग की पूर्ति के लिए युवा साधु गोपालदास आगे आये और अब इस लेख को लिखे जाने के वक्त तक मातृ सदन, हरिद्वार के सन्यासी आत्मबोधानन्द और पुण्यानंद उपवास पर डटे हैं। आखिर क्यों? गंगा के संबंध में आखिर ऐसा क्या लक्ष्य है कि जो अविरलता के बगैर हासिल नहीं किया जा सकता? किसी भी नदी की अविरलता के मायने क्या है? नदी के अविरल होने का लाभ क्या हैं, ख़ासकर गंगा के संदर्भ में? अविरलता का मायने अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के सूक्त-13 के प्रथम मंत्रानुसार, सदैव भली प्रकार से गतिशील रहने तथा बादलों के ताडि़त होने व बरसने के बाद प्रवाह द्वारा उत्पन्न कल-कल ध्वनि नाद के कारण ही सरिताओं को नदी कहा जाता है- 'एदद: संप्रयती रहावनदता हते। तस्मादा नद्यो3नाम स्थ ता वो नामानि सिन्धव:।।’’ स्पष्ट है कि यदि प्...
वैदिक विज्ञान से बहुत पीछे है आधुनिक विज्ञान- वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर

वैदिक विज्ञान से बहुत पीछे है आधुनिक विज्ञान- वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर

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  भारत मे तेल गैस का धीमा उत्खनन एक साजिश  - वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर   वैदिक वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर वेदों, उपनिषदों, गीता व अन्य भारतीय शास्त्रों का विशद व गहन अध्ययन करते रहे हैं। समय समय पर पृथ्वी के भौगोलिक रहस्यों को उन्होंने अपने वैदिक ज्ञान की मदद से समाज के सामने रखा जिसने दुनिया और भारत में बहुत हलचल मचाई। कपूर जी का दावा है कि ब्रह्मांड व भूगर्भ के रहस्यों व गुत्थियों को भारतीय वैदिक ग्रंथों ने हजारों वर्ष पूर्व ही सुलझा लिया था किंतु आधुनिक विज्ञान संस्कृत की समझ न होने व अपने वर्चस्व के टूटने के भय से इन ग्रन्थों को पढऩे व समझने की कोशिश ही नहीं करता। अगर पूर्ण रूप से यह ज्ञान दुनिया तक पहुंच जाए तो देश व दुनिया से गरीबी, काहिली व भुखमरी पूर्णत: मिट जाएगी और सब लोग सुखी व समृद्ध हो सकेंगे। डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल से विस्तृत बातचीत में उन्होंने पृथ्...
मानवाधिकार दिवस समय है आत्ममंथन करने का

मानवाधिकार दिवस समय है आत्ममंथन करने का

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हम आज 21 वीं सदी में लोकतांत्रिक सरकारों और मानवाधिकार आयोग जैसे वैश्विक संगठनों के होते हुए भी असफल हैं तो समय आत्ममंथन करने का है। अपनी गलतियों से सीखने का है, उन्हें सुधारने का है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सम्पूर्ण विश्व में मानव समाज एक बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा था। यह वो समय था जब मानव सभ्यता और  मानवता दोनों ही शर्मसार हो रही थीं। क्योंकि युद्ध समाप्त होने के बाद भी गरीब और असहायों पर अत्याचार, जुल्म, हिंसा और भेदभाव जारी थे। यही वो परिस्थितियाँ थीं जब संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक मानव के मनुष्य होने के उसके मूलभूत अधिकारों की जरूरत को समझा और यूनीवर्सल मानव अधिकारों की रूपरेखा को ड्राफ्ट किया जिसे 10 दिसम्बर  1948 को अपनाया गया। इसमें मानव समुदाय के लिए राष्ट्रीयता, लिंग,धर्म, भाषा और अन्य किसी आधार पर बिना भेदभाव किए उनके बुनियादी अधिकार सुनिश्चित किए गए। इस ड्राफ्ट को औपचारि...