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विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर

विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर

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मजदूर दिवस/मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है जिसके कंधों पर सही मायने में विश्व की उन्नति का दारोमदार होता है। कर्म को पूजा समझने वाले श्रमिक वर्ग के लगन से ही कोई काम संभव हो पाता है चाहे वह कलात्मक हो या फिर संरचनात्मक या अन्य लेकिन विश्व का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जहां मजदूरोें का शोषण न होता हो। बंधुआ मजदूरों खासकर महिला और बाल मजदूरों की हालत और भी दयनीय होती है जिन्हें अपनी मर्जी से न अपना जीवन जीने का अधिकार होता है और न ही सोचने का। ऐसे में मजदूरों की स्थिति में सुधार आवश्यक भी है और उसका अधिकार भी। दुनियाभर के मजदूरों को कई श्रेणियों में बांटा जाता रहा है जैसे कि संगठित-असंगठित क्षेत्र के मजदूर, कुशल-अकुशल आदि। समय-दर-समय मजदूरों की स्थिति में कुछ सुधार आया तो कुछ मामलों में स्थिति और भी बदतर हुई है। सुधारवाद की बात करें तो मजदूरों का पारिश्रमिक तय किया जाने लगा, उसके अधिकारों क...
ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

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चुनाव के तीन दिन पहले संकल्प-पत्र और सप्ताह भर पहले घोषणा-पत्र जारी करने का अर्थ क्या है? देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने यही किया है। दूसरी छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों ने भी कोई आदर्श उदाहरण उपस्थित नहीं किया है। इन पार्टियों के नेताओं से पूछिए कि आपके 50-50 पृष्ठों के इन घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ेगा? क्या देश के 70-80 करोड़ मतदाता उसे पढ़कर मतदान करेंगे? इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी उन्हें पढ़ेंगे, इसमें संदेह है। चुनाव अभियान तो पिछले डेढ़-दो माह से चला हुआ है। उसमें जनहित के कौनसे मुद्दों पर सार्थक बहस हो रही है, यह सबको पता है। फिर भी इन संकल्प-पत्रों और घोषणा-पत्रों का महत्व है। जो भी पार्टी जीतती है, उसकी खिंचाई उसके विरोधी घोषणा-पत्रों के आधार पर करते हैं। उसका कुछ न कुछ असर भी जरुर दिखाई पड़ता है। 2019 के जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण छपे हैं, उनके आधार पर यह कहना...
क्या लोकसभा चुनाव गहलोत के भविष्य को निर्धारित करेंगे?

क्या लोकसभा चुनाव गहलोत के भविष्य को निर्धारित करेंगे?

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राजस्थान में लोकसभा चुनाव ज्यों ज्यों नजदीक आते जा रहे हैं उसी प्रकार भाजपा और कांग्रेस के सियासी बयानों में तल्खी भी बढ़ती जा रही है। भाजपा विधानसभा चुनाव हारने का बदला लोकसभा चुनावों में पूरा करना चाहती है। स्थानीय मुद्दे जिन्हें लेकर कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया था, वे आज भी यथावत हैं। कांग्रेस शासन के पांच माह बीत जाने के बाद भी उनमें कोई जमीनी परिर्वतन नहीं आया है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के साथ राष्ट्रवाद के मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि कांग्रेस भाजपा को रोजगार, मंहगाई, नोटबंदी एवं जीएसटी को मुद्दा बना कर घेरना चाहती है। राजनैतिक पण्डितों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मुख्यधारा से अलग करने के बाद भाजपा संगठन बिखरा हुआ सा लग रहा है। विधानसभा चुनाव में हुई भाजपा की हार के पीछे के कुछ कारण अब भी परेशान कर रहे हैं उन...
बेरोजगारी है सबसे बड़ी चिन्ता 

बेरोजगारी है सबसे बड़ी चिन्ता 

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दुनिया भर के शासक एवं सत्ताएं अपनी उपलब्धियों का चाहे जितना बखान करें, सच यह है कि आम आदमी की मुसीबतें एवं तकलीफें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसके बजाय रोज नई-नई समस्याएं उसके सामने खड़ी होती जा रही हैं, जीवन एक जटिल पहेली बनता जा रहा है। विकसित एवं विकासशील देशों में महंगाई बढ़ती है, मुद्रास्फीति बढ़ती है, यह अर्थशास्त्रियों की मान्यता है। पर बेरोजगारी क्यों बढ़ती है? एक और प्रश्न आम आदमी के दिमाग को झकझोरता है कि तब फिर विकास से कौन-सी समस्या घटती है? बहुराष्ट्रीय मार्केट रिसर्च कंपनी इप्सॉस के द्वारा इसी माह कराया गया सर्वेक्षण 'वॉट वरीज दि वल्र्ड ग्लोबल सर्वे’ के निष्कर्ष विभिन्न देशों की जनता की अलग-अलग चिंताओं को उजागर करते हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है तो यहां बीते मार्च में किए गए सर्वे में ज्यादातर लोगों ने यह तो माना कि सरकार की नीतियां सही दिशा में हैं, लेकिन आतंकवाद की...
राजनीति एक व्यवसाय

राजनीति एक व्यवसाय

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आज राजनीति सेवा का पर्याय नहीं, एक व्यवसाय बन गयी है। राजनीति ने पूरी तरह से व्यवसायीकरण का रूप ले लिया है। आज राजनीति जगत में अपराधी भ्रष्टाचारी शिरोमणि ही आसन जमाये दिखते हैं। कहीं कोई भुला भटका साफ सुथरी छवि का व्यक्ति नजर भी आता है तो गहराई में जाने पर हम पाते हैं कि वह भी इनकी गिरफ्त में है। लेकिन व्यक्ति सत्य के मार्ग से क्यों भटक जाता है, यदि हम इसके मूल को खोजने का प्रयास करें तो निष्कर्ष निकलेगा कि जीवन में सबसे घातक अहम को पालना और उसका पोषण करना है। उच्य से उच्य पदों पर आसीन व्यक्ति जब अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरी करना चाहता है तो अपने सिद्धांतों और आदर्शों को एक किनारे रख देता है। धर्म, राजनीति, साहित्य सभी क्षेत्रों के शिखर पुरुष यश की भूख की चपेट में है। आज के नेता हो या धर्मात्मा सबका हाल एक ही है। मौका मिले तो वे अपनी आगे आने वाली छह पीढिय़ों के लिए भी सम्पत्ति इक_ी कर ले। ...
प्रियंका के गुनहगारों को माफ कर कांग्रेस ने गुनाह किया

प्रियंका के गुनहगारों को माफ कर कांग्रेस ने गुनाह किया

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श्रीमती प्रियंका चतुर्वेदी अब कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नहीं रहेंगी।  अब वे शिवसेना का वह चेहरा हैं, जो अब तक टीवी चैनलों की डिबेट में कांग्रेस पर लगने वाले आरोपों से अपनी पार्टी का बचाव करती रही हैं। उन्होंने कांग्रेस से अपनी उपेक्षा और बदतमीजी करने वालों को माफ़ करने के लिए पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया। पार्टी के नेताओं की सही-गलत हर तरह की बयानबाजी पर कांग्रेस का बचाव करने वाली प्रियंका चतुर्वेदी इस समय खुद कांग्रेस में अकेली पड़ गई थी। नेताओं द्वारा दूसरी पार्टियों की महिलाओं पर तो लांछन लगाने की घटनाएं चुनावी माहौल में आप खूब देख रहे होंगे, लेकिन प्रियंका चतुर्वेदी से तो कांग्रेस के ही नेताओं ने बदतमीजी की और उन्हें माफी भी मिल गई। हैरानी तो इस बात की है कि माफी देने वाला शख्स कोई और है। नाम है ज्योतिरादित्य सिंधिया। जैसा नाम, वैसा काम। भले ही अब देश में लोकतंत्र हो, पर ज...
Probe those getting agriculture-loans in multi-croes at subsidized interest-rate of four-percent per annum

Probe those getting agriculture-loans in multi-croes at subsidized interest-rate of four-percent per annum

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Former Central Information Commissioner Shailesh Gandhi in his facebook-post has made shocking revelation said to have been obtained under RTI Act and published in a social media that every year from 2010 to 2016 about 700 people were given total agricultural-loans of about 60000 crores every year with an average of about rupees 90 crores per individual every year on a highly subsidised nominal rate of just four-percent per annum. This is just a mockery of economy where ultra-rich are getting tax-exemptions in name income from agriculture, and such heavy loans at highly subsidised rate of just four-percent per annum. It may not be surprising if some of these might have availed loan-waivers granted in name of agricultural loans. There must be a limit of loans sanctioned by banks in name ...
Relevance of Rotary’s ‘Four Way Test’

Relevance of Rotary’s ‘Four Way Test’

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Rotary International is ideally known for being a service-club with motto ‘Service above Self’ having a four-way test ritually read at start of meeting in Rotary Clubs world-wide. But it seems that with change of times, this four-way test is losing its shine when many Rotarians are themselves a failure when put to this four-way test. Many Rotarians especially from ultra-rich elite category are crossing all limits of decency in Rotary events overlooking difference between entertainment and vulgarity. Rotary clubs in India have become societies to exhibit and compete in richness. There are Rotary Clubs in India which have even turned intellectual regular meetings into whisky-parties to ensure adequate attendance in front of gust-speakers. Sensible Rotarians are mute spectators to all such...
200 American companies shift their factories from China to India

200 American companies shift their factories from China to India

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It refers to welcome news about 200 American companies shifting their manufacturing-units from China to India. It may be recalled that earlier on 09.7.2018 Prime Minister of India and President of South Korea jointly inaugurated largest manufacturing-unit in the world in a big 35-acre plant with capacity to produce 120 million mobile-phones set up by South Korean company Samsung in Noida (India) in tune with ‘Make in India’ concept. Earlier also way back in 2015, leading aircraft-manufacturer Airbus Industry (France) had announced investing $ two-billions in India for manufacture of aircraft-parts. India is largest consumer-base after China and can devise ways so that global manufacturing-giants may be forced to set up manufacturing-units in India if they desire their brand-names being ...
Study flags problems in availability and prices of anti-cancer drugs

Study flags problems in availability and prices of anti-cancer drugs

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A new study has shown that availability of essential drugs for treatment of childhood cancers was well below the World Health Organisation (WHO)-prescribed standards in both public and private sector pharmacies even in the national capital, Delhi. The survey looked into availability of 33 essential anti-cancer medicines in four public and three private hospitals as well as 32 private retail pharmacies. It was found that their mean availability was a mere 70 per cent as against the WHO’s norm of at least 80 per cent. The situation was, however, somewhat better in private hospitals over public hospitals and private retail pharmacies. Private hospitals recorded availability of 71 per cent, while public hospitals reported 43 per cent and retail pharmacies 38 per cent.   The study has...