विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर
मजदूर दिवस/मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है जिसके कंधों पर सही मायने में विश्व की उन्नति का दारोमदार होता है। कर्म को पूजा समझने वाले श्रमिक वर्ग के लगन से ही कोई काम संभव हो पाता है चाहे वह कलात्मक हो या फिर संरचनात्मक या अन्य लेकिन विश्व का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जहां मजदूरोें का शोषण न होता हो। बंधुआ मजदूरों खासकर महिला और बाल मजदूरों की हालत और भी दयनीय होती है जिन्हें अपनी मर्जी से न अपना जीवन जीने का अधिकार होता है और न ही सोचने का। ऐसे में मजदूरों की स्थिति में सुधार आवश्यक भी है और उसका अधिकार भी। दुनियाभर के मजदूरों को कई श्रेणियों में बांटा जाता रहा है जैसे कि संगठित-असंगठित क्षेत्र के मजदूर, कुशल-अकुशल आदि। समय-दर-समय मजदूरों की स्थिति में कुछ सुधार आया तो कुछ मामलों में स्थिति और भी बदतर हुई है। सुधारवाद की बात करें तो मजदूरों का पारिश्रमिक तय किया जाने लगा, उसके अधिकारों क...