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मदरसों का विरोध क्यों?

मदरसों का विरोध क्यों?

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-बलबीर पुंज गत दिनों वाम-उदारवादी और स्वघोषित सेकुलरवादी, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर भड़क उठे। इसका कारण उनका वह हालिया वक्तव्य है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि असम में लगभग 600 मदरसे बंद किए जा चुके है और राज्य सरकार अब सभी मदरसों को बंद करना चाहती है। यूं तो भारतीय संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को अपने अनुरूप शिक्षण संस्था चलाने का अधिकार प्राप्त है। फिर मुख्यमंत्री सरमा ने ऐसा बयान क्यों दिया? आखिर उनके विचारों का निहितार्थ क्या है? क्या विश्व में पहली बार मदरसों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है? वैश्विक समुदाय आज जिस मजहबी कट्टरता से ग्रस्त है— उसे प्रेरित करने वाली मानसिकता को पोषित करने में अधिकांश मदरसों की भी महती भूमिका है। जिस तालिबान की जकड़ में अफगानिस्तान है, जहां उसने अन्य मध्यकालीन प्रतिबंधों के साथ लड़कियों पर प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक कि...
बेमौसम बारिश ने गणित बिगाड़ दिया

बेमौसम बारिश ने गणित बिगाड़ दिया

BREAKING NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, समाचार
भारत में खेती बारिश के भरोसे ही फलती-फूलती है, और उससे जुड़ा चक्र बाज़ार और बाज़ार आम आदमी को प्रभावित करता है । मानसूनी बारिश का इंतजार किसान शिद्दत से करता है, लेकिन यदि यही बारिश बेमौसमी हो तो आफत का सबब बनती है।अगले दिन कैसे बीतेंगे,चिंता का सबब है। पिछले कुछ दिनों से पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली बारिश ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं। दरअसल, खेतों में गेहूं की फसल पक चुकी है। किसान अनाज खलिहानों से निकालकर मंडी ले जाने की तैयारी में है। इसी तरह सरसों की फसल भी पक चुकी है। पिछले दिनों से उत्तर भारत के कई राज्यों में हुई बेमौसमी बरसात से गेहूं-सरसों की फसल को काफी नुकसान हुआ। जहां सरसों में बीज तैयार हो चुका था, ओलावृष्टि से वो बिखरा है। दूसरी ओर जो सरसों मंडियों तक पहुंची थी, वह बारिश से भीग गयी। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग से जो तापमान वृद्धि हुई है,...
हिंदू राष्ट्र विचारक- डॉ. हेडगेवार

हिंदू राष्ट्र विचारक- डॉ. हेडगेवार

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जन्मतिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ( इस वर्ष 22 मार्च) पर विशेष-मृत्युंजय दीक्षितभारत के सबसे विशाल, समाजसेवी व राष्ट्रभक्त संगठन, “राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ” के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म युगाब्द 4991 की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नागपुर के एक गरीब वेदपाठी परिवार में हुआ था। डॉ. हेडगेवार जी के पिता का नाम श्री बलिराम पंत व माता का नाम रेवतीबाई था। हेडगेवार जी का बचपन बहुत ही गरीबी में बीता किन्तु गरीबी के उस वातावरण में भी व्यायाम, कुश्ती, लाठी चलाना आदि में उनकी रूचि रही। बचपन में विभिन्न भवनों पर फहराते हुए यूनियन जैक को देखकर वे सोचते थे कि हमारे भारत वर्ष का हिन्दुओं का झंडा तो भगवा ही है क्योंकि भगवान राम और कृष्ण, शिवाजी, महाराणा प्रताप सभी की जीवन लीलाएं इसी झंडे की छत्रछाया में संपन्न हुई हैं और यहीं से उनके ह्रदय में यूनियन जैक को उतार फेंकने की योजना तैयार होने लगी।केशव...
अगर बचानी ज़िंदगी, करें आज संकल्प।जल का जग में है नहीं, कोई और विकल्प।

अगर बचानी ज़िंदगी, करें आज संकल्प।जल का जग में है नहीं, कोई और विकल्प।

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(22 मार्च जल दिवस विशेष ) हम यह भूल जाते हैं कि पानी के बिना वे सब बेकार हैं। हम अपनी जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते रहते हैं। कम से कम हममें से हर व्यक्ति अपने घरों और कार्यस्थलों में पानी का उचित इस्तेमाल तो कर ही सकता है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि सड़क किनारे लगे हुए नलों से पानी बह रहा है और बेकार जा रहा है, लेकिन हम वहां से गुजर जाते हैं और नल को बंद करने की चिंता नहीं करते। हमें इन विषयों पर सोचना चाहिए और अपने रोज के जीवन में जहां तक संभव हो पानी बचाने की कोशिश करनी चाहिए। इस समय पृथ्वी ग्रह पर जीवन को बचाये रखने के लिए सबसे बड़ी जरूरत पानी को बचाने की है; यह सुनिश्चित करने के लिए जल संसाधनों का प्रबंधन कैसे किया जाएगा कि देश में सभी को समान मात्रा में पानी मिले। --- डॉ सत्यवान 'सौरभ' जैसे-जैसे जनसंख्या और अर्थव्यवस्था बढ़ती है, वैसे-वैसे पानी की मांग भी बढ़ती है। ...
डॉक्टर हेडगेवार जी का हिंदुत्व

डॉक्टर हेडगेवार जी का हिंदुत्व

BREAKING NEWS, TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म
प्रशांत पोळ किसी व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन करना है, या उस व्यक्ति ने किये हुए कार्य का यश - अपयश देखना हैं, तो उस व्यक्ति के पश्चात, उसके कार्य की स्थिती क्या है, यह देखना उचित रहता हैं. उदाहरण हैं - छत्रपती शिवाजी महाराज. मात्र पचास वर्ष का जीवन. लगभग तीस वर्ष उन्होंने राज- काज किया और हिंदवी साम्राज्य खडा किया. किंतु उनके मृत्यु के पश्चात उस हिंदवी स्वराज्य की परिस्थिती क्या थी? हिंदुस्थान का शहंशाह औरंगजेब तीन लाख की चतुरंग सेना लेकर महाराष्ट्र मे आया था, इसी हिंदवी स्वराज्य को मसलने के लिए, सदा के लिए समाप्त करने के लिए. परिणाम? सारी जोड़-तोड़ करने के बाद, वह संभाजी महाराज से मात्र २ – ४ दुर्ग (किले) ही जीत सका. आखिरकार छल कपट कर के, ११ मार्च १६८९ को औरंगजेब ने संभाजी महाराज को तड़पा - तड़पा के, अत्यंत क्रूरता के साथ समाप्त किया. उसे लगा, अब तो हिंदुओं का राज्य, यूं मसल ...
फेक न्यूज और दुष्प्रचार भारतीय समाज में नई चुनौतियाँ

फेक न्यूज और दुष्प्रचार भारतीय समाज में नई चुनौतियाँ

BREAKING NEWS, TOP STORIES, घोटाला, विश्लेषण, सामाजिक
हर किसी की यह जिम्मेदारी है कि वह फेक न्यूज और गलत सूचना के संकट से लड़े। इसमें फेक न्यूज के लिए वित्तीय प्रोत्साहन को कम करने से लेकर आम जनता के बीच डिजिटल साक्षरता में सुधार तक सभी आयाम शामिल हैं। आज देश में कई एजेंसियों ने फेक न्यूज़ का सच लोगों तक लाने के लिए काम कर रही है लेकिन यह काफी नहीं है क्योंकि इनकी पहुँच अभी व्यापक नहीं है जिसके कारण फेक न्यूज़ पर लगाम लग सके या लोगों तक तुरंत सच पहुंचे. वहीँ बढ़ते फेक न्यूज़ के कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी इस पर काम कर रहे हैं क्योंकि कई बार इनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे हैं जिस कारण व्हाट्सएप्प और फेसबुक ने फेक न्यूज़ को रोकने के लिए अपने फीचर में कई बदलाव भी किए हैं लेकिन इस पर अभी और काम करने की जरुरत है ताकि एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण हो सके। -प्रियंका सौरभ फेक न्यूज को झूठी या भ्रामक जानकारी के रूप में प्रस्तुत किया जा...
नवसंवत्सर के शुभ अवसर पर सिंध को भारत के साथ जोड़ने की लें प्रतिज्ञा

नवसंवत्सर के शुभ अवसर पर सिंध को भारत के साथ जोड़ने की लें प्रतिज्ञा

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अखंड भारत के पश्चिम में एक मजबूत, सम्पन्न एवं आकर्षक प्रांत हुआ करता था, जिसका नाम था सिंध। मजबूत इस दृष्टि से कि अरब देशों से मुस्लिम आक्रांता जब भी भारत पर आक्रमण करते थे तो सिंध प्रांत ही अरब आक्रांताओं का दिलेरी के साथ सामना करता था एवं उन्हें हराकर वापिस अरब लौटने को मजबूर कर देता था। उस समय दरअसल पश्चिम में सिंध प्रांत ही भारत का प्रवेश द्वार हुआ करता था। प्राचीन काल में अखंड भारत का सिंध प्रांत बहुत विकसित प्रदेश की अवस्था हासिल किए हुए था। सिंध प्रांत से अन्य देशों को जमीन और समुद्रीय मार्ग से उत्पादों का निर्यात किया जाता था। सिंध प्रांत प्राचीन काल से ही एक सफल एवं महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है। सिंध प्रांत का व्यापारिक महत्व इतिहास में किसी से छुपा नहीं है। वीर सावरकर जी ने अपने एक उदबोधन में कहा था कि एक खंडकाल में सिंध पर वैदिक धर्माभिमानी, ब्राह...
तो योगी यूपी के रास्ते ही भाजपा को 2024 में सत्ता सौंपेंगे

तो योगी यूपी के रास्ते ही भाजपा को 2024 में सत्ता सौंपेंगे

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आर.के. सिन्हा अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो अगले साल के शुरुआत के तीन महीनों के दौरान देश में लोकसभा चुनावों की हलचल को महसूस किया जाने लगेगा। सभी दल अपने घोषणा पत्र को अंतिम रूप दे रहे होंगे और प्रत्याशियों के नामों पर भी अंतिम विचार चल रहा होगा। फिजाओं में लोकसभा चुनाव का पूरा माहौल बन गया होगा। दरअसल, यह चुनाव आजाद भारत का एक ऐसा चुनाव होगा जब कांग्रेस छोड़ किसी दूसरी विचारधारा की सत्ता की पारी दशकीय सीमा लांघकर एक नई तारीख लकीर खींच सकती है। इस चुनाव के लिहाज से राज्यों की राजनीति भी गरमा रही है। पर बात करें भाजपा की तो देश के सबसे बड़े सूबे में उसकी निश्चिंतता का आलम कुछ और ही है। वैसे भी दिल्ली के सियासी गलियारों में यह बात शुरू से कही और मानी जाती रही है कि देश की सत्ता का रास्ता राम और कृष्ण के जन्म स्थान उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। इस सूबे की सियासी धाक यह है कि उसने देश को...
2024: मोदी सब पर भारी

2024: मोदी सब पर भारी

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26 फरवरी 2023 को कांग्रेस का 85वां अधिवेशन रायपुर में आयोजित हुआ। इस अधिवेशन के अन्तर्गत एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया कि कांग्रेस के सदृश विचारधारा रखने वाली राजनीतिक पार्टियों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया जाए, जो मोदी जी का विकल्प बन सके। वर्ष 2003 में भी कांग्रेस पार्टी ने सोनिया गाँधी के नेतृत्व में आयोजित अपने शिमला अधिवेशन में इसी प्रकार का प्रयास किया था, तत्पश्चात वर्ष 2004 के चुनाव उसी संगठन के द्वारा से लड़े गए थे, जिसमें कांग्रेस को सत्तासुख प्राप्त हुआ था।वर्ष 2004 की राजनीतिक परिस्थिति और वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में अत्यधिक अंतर आ चुका है। वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में मोदी जी नहीं थे, परन्तु आगामी वर्ष 2024 के चुनावी युद्ध में भाजपा के सिरमोर मोदी जी हैं। विपक्षी एकता किस स्तर तक सफल होगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनमें अधिकांश नेता, य...
नवसंवत्सर को भारत में उत्साहपूर्वक मनाने का समय आ गया है

नवसंवत्सर को भारत में उत्साहपूर्वक मनाने का समय आ गया है

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भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति के अनुसार फागुन और चैत्र माह वसंत ऋतु में उत्सव के महीने माने जाते हैं। चैत्र माह के मध्य में प्रकृति अपने श्रृंगार एवं सृजन की प्रक्रिया में लीन रहती है और पेड़ों पर नए नए पत्ते आने के साथ ही सफेद, लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी, नीले रंग के फूल भी खिलने लगते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे पूरी की पूरी सृष्टि ही नई हो गई है, ठीक इसी वक्त भारत में हमारी भौतिक दुनिया में भी एक नए वर्ष का आगमन होता है। पश्चिमी देशों में तो सामान्यतः अंग्रेजी तिथि के अनुसार नव वर्ष प्रत्येक वर्ष की 1 जनवरी को बहुत ही बड़े स्तर पर उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। वैसे तो पूरे विश्व में ही नव वर्ष भरपूर उत्साह के साथ मनाया जाता है। परंतु कई देशों में नव वर्ष की तिथि भिन्न भिन्न रहती है तथा नव वर्ष को मनाने की विभिन्न देशों की अपनी अलग अलग परम्पराएं भी हैं। नव वर्ष प्रत्येक देश में एक उत्सव के रूप...