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वैज्ञानिकों ने उजागर की शीथ ब्लाइट के रोगजनक फफूंद की अनुवांशिक विविधता

वैज्ञानिकों ने उजागर की शीथ ब्लाइट के रोगजनक फफूंद की अनुवांशिक विविधता

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भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की फसल के एक प्रमुख रोगजनक फफूंद राइजोक्टोनिया सोलानी की आक्रामकता से जुड़ी अनुवांशिक विविधता को उजागर किया है। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में कई जीन्स की पहचान की गई है जो राइजोक्टोनिया सोलानी के उपभेदों में रोगजनक विविधता के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अनुवांशिक जानकारी शीथ ब्लाइट रोग प्रतिरोधी चावल की किस्में विकसित करने में मददगार हो सकती है। इस शोध में राइजोक्टोनिया सोलानी के दो भारतीय रूपों बीआरएस11 और बीआरएस13 की अनुवांशिक संरचना का अध्ययन किया गया है और इनके जीन्स की तुलना एजी1-आईए समूह के राइजोक्टोनिया सोलानी फफूंद के जीनोम से की गई है। एजी1-आईए को पौधों के रोगजनक के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिकों ने इन दोनों फफूंदों की अनुवांशिक संरचना में कई एकल-...
This invisible nano-ink may help combat counterfeiting

This invisible nano-ink may help combat counterfeiting

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Duplicating or counterfeiting of products is a major problem globally. Standard measures like printing barcodes or holograms used to prevent duplicating of products are usually not fool proof as they too can be forged. Nanotechnology may offer a hope to address this menace. It relies on certain methods based on natural physical or optical changes that occur in nanoparticles when subjected to specific conditions. These changes can be easily identified, but the technology is difficult to duplicate. Researchers at the Advanced Polymer and Nanomaterial Laboratory (APNL) of Tezpur University have developed a novel, light-emitting nanocomposite-based ink that is barely detectable under visible light but glows when kept under ultra violet light. The ink has shown potential to be used as an...
स्वामित्व मानसिकता

स्वामित्व मानसिकता

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इस विषय को मैं दो आर्मी कर्नल, कर्नल राठौड़ और कर्नल शर्मा की कहानी से शुरू करता हूं। ये दोनों एनडीए के दिनों से बैच मेट थे। जैसा कि सेना में पदोन्नति के लिए पिरामिड बहुत संकीर्ण है, दोनों की ही लगभग 23 वर्षों की उत्कृष्ट सेवा के बावजूद ब्रिगेडियर रैंक तक पदोन्नति नहीं हो पाई। इसलिए उन्होंने 'प्री-मेच्योर रिटायरमेंट’ का विकल्प चुना और सिविल जगत में अपने कौशल को आजमाना चाहा। दोनों को निजी क्षेत्र में नौकरी मिली। लेकिन कर्नल राठौड़ को प्रबंधन के साथ कुछ अनबन के कारण लगभग छह महीनों बाद ही अपनी नौकरी छोडऩी पड़ी। उन्होंने 3 या 4 महीने के बाद दूसरी नौकरी की, लेकिन वह भी सिर्फ डेढ़ साल के लिए ही कर पाए। इसके बाद, वह ज्यादातर समय घर पर ही बैठे रहते थे और कभी-कभी कुछ अस्थायी कार्य कर लेते थे। दूसरी ओर, कर्नल शर्मा ने जो नौकरी प्राप्त की उस कंपनी में एक साल बाद ही वीपी के रूप में अपनी पहली पदो...
सूरत हादसे के सबक

सूरत हादसे के सबक

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सूरत में हुए हादसे के बहाने जानिए सीरत अपनी 21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना...   कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनपर लिखना खुद की आत्मा पर कुफ्र तोडऩे जैसा है, सूरत की बिल्डिंग में आग...21 बच्चों की मौत...आग और घुटन से घबराए बच्चों को इससे भयावह वीडियो आज तक नहीं देखा....इससे ज्यादा छलनी मन और आत्मा आज तक नहीं हुई....फिर भी लिखूंगी...क्योंकि हम सब गलत हैं, सारे कुएं में भांग पड़ी हुई है। हमने किताबी ज्ञान में ठूंस दिया बच्चों को नहीं सिखा पाए लाइफ स्किल। नहीं सिखा पाए डर पर काबू रख शांत मन से काम करना।" मम्मा डर लग रहा है...एग्जाम के लिए सब याद किया था लेकिन एग्जाम हॉल में जाकर भूल गया...कुछ याद ही नहीं आ रहा था। पांव नम थे...हाथों में पसीना था...आप दो मिनिट उसे दुलारते हैं...बहलाने की नाकाम कोशिश करते हैं फिर पढ़ लो- पढ़ लो- पढ़ लो की रट लगाते हैं। सुबह...
बदलो या नकार के लिए तैयार रहो

बदलो या नकार के लिए तैयार रहो

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सत्रहवीं लोकसभा चुनावों का विपक्ष को संकेत सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव नतीजों के बाद भारतीय राजनीति की अपनी-अपनी तरह से व्याख्या की जा रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के उभरने की संभावना अब और क्षीण हो गई है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल सेक्युलर और इंडियन नेशनल लोकदल जैसे पारिवारिक प्राइवेट लिमिटेड पार्टियों के दिन बीत रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि भारतीय राजनीतिक क्षितिज से वामपंथ की विदाई हो चुकी है। जब भी किसी खास विचारधारा और राजनीतिक दल की चुनावों में जीत होती है तो उसके बरक्स हारने वाली पार्टियों की ऐसी ही व्याख्याएं होती हैं। ऐसे विश्लेषणों का फौरी राजनीतिक संदर्भों का ज्यादा प्रभाव होता है। ऐसी व्याख्याएं करने वाले राजनीतिक पंडित भूल जाते हैं कि लोकतांत्रिक समाज में राजनीति सतत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण होता है ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है  विश्व की समस्याओं का समाधान

भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है विश्व की समस्याओं का समाधान

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31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख     (1) भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। देश-विदेश में इस महान नारी की जयन्ती प्रतिवर्ष बड़े ही उल्लासपूर्ण तथा प्रेरणादायी वातावरण में मनायी जाती है। इस महान नारी की जयन्ती पर हमें उन्हीं की तरह अपने हृदय को विशाल करके उदारतापूर्वक सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का संकल्प लेना चाहिए। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर ‘वसुधैव कुटुम...
मोदी सरकार में हिन्दी को प्राथमिकता मिले

मोदी सरकार में हिन्दी को प्राथमिकता मिले

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देश के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे चमत्कारी एवं ऐतिहासिक जीत के साथ भारतीय जनता पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रही हैं। संभावना की जा रही है कि मोदी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय प्रतीकों मजबूती प्रदान करेंगी। जैसे राष्ट्रभाषा हिन्दी, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय पक्षी आदि को सम्मानजनक स्थान प्रदत्त किया जायेगा। मूल प्रश्न राष्ट्रभाषा हिन्दी को सशक्त बनाने का है। चुनाव में प्रचार का सशक्त माध्यम हिन्दी ही बनी, लेकिन जिस हिन्दी का उपयोग करके प्रत्याशी संसद में पहुंचते हैं, वहां पहुंचते ही हिन्दी को भूल जाते हैं, विदेशी भाषा अंग्रेजी के अंधभक्त बन जाते है, यह लोकतंत्र की एक बड़ी विसंगति है, राष्ट्रभाषा का अपमान है। हिन्दी की दुर्दशा एवं उपेक्षा आहत करने वाली है। इस दुर्दशा के लिये हिन्दी वालों का जितना हाथ है, उतना किसी अन्य का ...
हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से जुड़े खतरे

हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से जुड़े खतरे

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वर्तमान समय में पर्यावरण के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियां गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों एवं महानगरों के डूबने का खतरा मंडराने लगा है। हिमालय में ग्लेशियर का पिघलना कोई नई बात नहीं है। सदियों से ग्लेशियर पिघलकर नदियों के रूप में लोगों को जीवन देते रहे हैं। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में पर्यावरण के बढ़ रहे दुष्परिणामों के कारण इनके पिघलने की गति में जो तेजी आई है, वह चिंताजनक है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरनाक प्रभाव अब साफतौर पर दिखने लगा है। देखा जा सकता है कि गर्मियां आग उगलने लगी हैं और सर्दियों में गर्मी का अहसास होने लगा है। इसकी वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। ऐसे में मुंबई समेत दुनिया के कई हिस्सों एवं महानगरों-नगरों के ड...
लुप्त हो सकते हैं 2050 तक सतलज घाटी के आधे ग्लेशियर

लुप्त हो सकते हैं 2050 तक सतलज घाटी के आधे ग्लेशियर

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जलवायु परिवर्तन का हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। एक नए अध्ययन ने चेताया है कि चरम जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में सतलज नदी घाटी के ग्लेशियरों में से 55 प्रतिशत  2050 तक और 97 प्रतिशत 2090 तक तक लुप्त हो सकते हैं। इससे भाखड़ा बांध सहित सिंचाई और बिजली की कई परियोजनाओं के लिए पानी की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सतलज नदी घाटी में 1426 वर्ग किलोमीटर में फैले क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 2026 ग्लेशियर हैं। जलवायु परिवर्तन का सबसे पहले प्रभाव छोटे ग्लेशियरों पर पड़ेगा, वे तेज़ी से पिघलेंगे। इस नए अध्ययन से यह निकलकर आया है कि एक वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाले ग्लेशियर वर्ष 2050 तक 62 प्रतिशत तक लुप्त हो जायेंगे। सतलज नदी घाटी हिमालय क्षेत्र की दर्जनों घाटियों में से एक है जिसमें हजारों ग्लेशियर हैं । कुछ ग्लेशियर धीरे-धीरे सिकुड़ रहे हैं जबकि कुछ अब तक अप्...
जैव विविधता पर मंडराता खतरा

जैव विविधता पर मंडराता खतरा

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हमारी पृथ्वी काफी बेहतरीन व सुन्दर है जिसमें सभी जीव-जंतुओं का अपना-अपना अहम योगदान व महत्ता है। हरे-भरे पेड़-पौधे, विभिन्न प्रकार के जव-जंतु, मिट्टी, हवा,पानी, पठार, नदियां, समुद्र, महासागर,आदि सब प्रकृति की देन है, जो हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए आवश्यक है। पृथ्वी हमें भोजन ही नहीं वरन् जिंदगी जीने के लिए हर जरूरी चीजें मुहैया कराती है। असल में सभी जीवों व पारिस्थतिकी तंत्रों की विभिन्नता एवं असमानता ही जैव विविधता कहलाती है। इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जैव विविधता का मानव जीवन के अस्तित्व में अहम योगदान है। जैव विविधता से जहां सजीवों के लिए भोजन तथा औषधियां तो वहीं उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। पिछले वर्ष ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने आंकड़े जारी कर कहा था कि दुनियाभर में हर साल जितना भोजन तैयार होता है उसका लगभग एक-तिहाई बर्बाद हो जाता है। आलम तो यह है कि बर्बाद...