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Initiatives taken for Increasing Domestic Production of Oil and Gas

Initiatives taken for Increasing Domestic Production of Oil and Gas

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The policy initiatives taken by the Government to increase domestic production of oil and gas include:- Policy for Relaxations, Extensions and Clarifications under Production Sharing Contract (PSC) regime for early monetization of hydrocarbon discoveries Discovered Small Field Policy Hydrocarbon Exploration and Licensing Policy Policy for Extension of Production Sharing Contracts Policy for early monetization of Coal Bed Methane Setting up of National Data Repository Appraisal of Unappraised areas in Sedimentary Basins. Re-assessment of Hydrocarbon Resources. Policy framework to streamline the working of Production Sharing Contracts in Pre-NELP and NELP Blocks Policy to Promote and Incentivize Enhanced Recovery Methods for Oil and Gas Policy framework f...
Better education links to good heart health

Better education links to good heart health

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A new study has emphasized the role of better education than wealth in tackling cardiovascular diseases. The study explored the association between education and wealth, on the one hand, and cardiovascular diseases and mortality due to them, on the other,to assess which marker was the stronger predictor of outcomes and examined whether any difference in socioeconomic status influenced the levels of risk factors and how the diseases are managed. "How much money you have tends to be a strong predictor of health outcomes, but education seems to be a far more robust measure to use across countries," says Dr Scott Lear, Simon Fraser University, Canada. In this cohort study, the researchers looked at 367 urban and 302 rural communities in 20 countries –India, Pakistan, Bangladesh, China,...
वैज्ञानिकों ने उजागर की शीथ ब्लाइट के रोगजनक फफूंद की अनुवांशिक विविधता

वैज्ञानिकों ने उजागर की शीथ ब्लाइट के रोगजनक फफूंद की अनुवांशिक विविधता

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भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की फसल के एक प्रमुख रोगजनक फफूंद राइजोक्टोनिया सोलानी की आक्रामकता से जुड़ी अनुवांशिक विविधता को उजागर किया है। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में कई जीन्स की पहचान की गई है जो राइजोक्टोनिया सोलानी के उपभेदों में रोगजनक विविधता के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अनुवांशिक जानकारी शीथ ब्लाइट रोग प्रतिरोधी चावल की किस्में विकसित करने में मददगार हो सकती है। इस शोध में राइजोक्टोनिया सोलानी के दो भारतीय रूपों बीआरएस11 और बीआरएस13 की अनुवांशिक संरचना का अध्ययन किया गया है और इनके जीन्स की तुलना एजी1-आईए समूह के राइजोक्टोनिया सोलानी फफूंद के जीनोम से की गई है। एजी1-आईए को पौधों के रोगजनक के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिकों ने इन दोनों फफूंदों की अनुवांशिक संरचना में कई एकल-...
This invisible nano-ink may help combat counterfeiting

This invisible nano-ink may help combat counterfeiting

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Duplicating or counterfeiting of products is a major problem globally. Standard measures like printing barcodes or holograms used to prevent duplicating of products are usually not fool proof as they too can be forged. Nanotechnology may offer a hope to address this menace. It relies on certain methods based on natural physical or optical changes that occur in nanoparticles when subjected to specific conditions. These changes can be easily identified, but the technology is difficult to duplicate. Researchers at the Advanced Polymer and Nanomaterial Laboratory (APNL) of Tezpur University have developed a novel, light-emitting nanocomposite-based ink that is barely detectable under visible light but glows when kept under ultra violet light. The ink has shown potential to be used as an...
स्वामित्व मानसिकता

स्वामित्व मानसिकता

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इस विषय को मैं दो आर्मी कर्नल, कर्नल राठौड़ और कर्नल शर्मा की कहानी से शुरू करता हूं। ये दोनों एनडीए के दिनों से बैच मेट थे। जैसा कि सेना में पदोन्नति के लिए पिरामिड बहुत संकीर्ण है, दोनों की ही लगभग 23 वर्षों की उत्कृष्ट सेवा के बावजूद ब्रिगेडियर रैंक तक पदोन्नति नहीं हो पाई। इसलिए उन्होंने 'प्री-मेच्योर रिटायरमेंट’ का विकल्प चुना और सिविल जगत में अपने कौशल को आजमाना चाहा। दोनों को निजी क्षेत्र में नौकरी मिली। लेकिन कर्नल राठौड़ को प्रबंधन के साथ कुछ अनबन के कारण लगभग छह महीनों बाद ही अपनी नौकरी छोडऩी पड़ी। उन्होंने 3 या 4 महीने के बाद दूसरी नौकरी की, लेकिन वह भी सिर्फ डेढ़ साल के लिए ही कर पाए। इसके बाद, वह ज्यादातर समय घर पर ही बैठे रहते थे और कभी-कभी कुछ अस्थायी कार्य कर लेते थे। दूसरी ओर, कर्नल शर्मा ने जो नौकरी प्राप्त की उस कंपनी में एक साल बाद ही वीपी के रूप में अपनी पहली पदो...
सूरत हादसे के सबक

सूरत हादसे के सबक

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सूरत में हुए हादसे के बहाने जानिए सीरत अपनी 21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना...   कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनपर लिखना खुद की आत्मा पर कुफ्र तोडऩे जैसा है, सूरत की बिल्डिंग में आग...21 बच्चों की मौत...आग और घुटन से घबराए बच्चों को इससे भयावह वीडियो आज तक नहीं देखा....इससे ज्यादा छलनी मन और आत्मा आज तक नहीं हुई....फिर भी लिखूंगी...क्योंकि हम सब गलत हैं, सारे कुएं में भांग पड़ी हुई है। हमने किताबी ज्ञान में ठूंस दिया बच्चों को नहीं सिखा पाए लाइफ स्किल। नहीं सिखा पाए डर पर काबू रख शांत मन से काम करना।" मम्मा डर लग रहा है...एग्जाम के लिए सब याद किया था लेकिन एग्जाम हॉल में जाकर भूल गया...कुछ याद ही नहीं आ रहा था। पांव नम थे...हाथों में पसीना था...आप दो मिनिट उसे दुलारते हैं...बहलाने की नाकाम कोशिश करते हैं फिर पढ़ लो- पढ़ लो- पढ़ लो की रट लगाते हैं। सुबह...
बदलो या नकार के लिए तैयार रहो

बदलो या नकार के लिए तैयार रहो

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सत्रहवीं लोकसभा चुनावों का विपक्ष को संकेत सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव नतीजों के बाद भारतीय राजनीति की अपनी-अपनी तरह से व्याख्या की जा रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के उभरने की संभावना अब और क्षीण हो गई है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल सेक्युलर और इंडियन नेशनल लोकदल जैसे पारिवारिक प्राइवेट लिमिटेड पार्टियों के दिन बीत रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि भारतीय राजनीतिक क्षितिज से वामपंथ की विदाई हो चुकी है। जब भी किसी खास विचारधारा और राजनीतिक दल की चुनावों में जीत होती है तो उसके बरक्स हारने वाली पार्टियों की ऐसी ही व्याख्याएं होती हैं। ऐसे विश्लेषणों का फौरी राजनीतिक संदर्भों का ज्यादा प्रभाव होता है। ऐसी व्याख्याएं करने वाले राजनीतिक पंडित भूल जाते हैं कि लोकतांत्रिक समाज में राजनीति सतत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण होता है ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है  विश्व की समस्याओं का समाधान

भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है विश्व की समस्याओं का समाधान

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31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख     (1) भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। देश-विदेश में इस महान नारी की जयन्ती प्रतिवर्ष बड़े ही उल्लासपूर्ण तथा प्रेरणादायी वातावरण में मनायी जाती है। इस महान नारी की जयन्ती पर हमें उन्हीं की तरह अपने हृदय को विशाल करके उदारतापूर्वक सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने का संकल्प लेना चाहिए। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर ‘वसुधैव कुटुम...
मोदी सरकार में हिन्दी को प्राथमिकता मिले

मोदी सरकार में हिन्दी को प्राथमिकता मिले

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देश के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे चमत्कारी एवं ऐतिहासिक जीत के साथ भारतीय जनता पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रही हैं। संभावना की जा रही है कि मोदी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय प्रतीकों मजबूती प्रदान करेंगी। जैसे राष्ट्रभाषा हिन्दी, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय पक्षी आदि को सम्मानजनक स्थान प्रदत्त किया जायेगा। मूल प्रश्न राष्ट्रभाषा हिन्दी को सशक्त बनाने का है। चुनाव में प्रचार का सशक्त माध्यम हिन्दी ही बनी, लेकिन जिस हिन्दी का उपयोग करके प्रत्याशी संसद में पहुंचते हैं, वहां पहुंचते ही हिन्दी को भूल जाते हैं, विदेशी भाषा अंग्रेजी के अंधभक्त बन जाते है, यह लोकतंत्र की एक बड़ी विसंगति है, राष्ट्रभाषा का अपमान है। हिन्दी की दुर्दशा एवं उपेक्षा आहत करने वाली है। इस दुर्दशा के लिये हिन्दी वालों का जितना हाथ है, उतना किसी अन्य का ...
हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से जुड़े खतरे

हिमालय में ग्लेशियर के पिघलने से जुड़े खतरे

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वर्तमान समय में पर्यावरण के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियां गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों एवं महानगरों के डूबने का खतरा मंडराने लगा है। हिमालय में ग्लेशियर का पिघलना कोई नई बात नहीं है। सदियों से ग्लेशियर पिघलकर नदियों के रूप में लोगों को जीवन देते रहे हैं। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में पर्यावरण के बढ़ रहे दुष्परिणामों के कारण इनके पिघलने की गति में जो तेजी आई है, वह चिंताजनक है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरनाक प्रभाव अब साफतौर पर दिखने लगा है। देखा जा सकता है कि गर्मियां आग उगलने लगी हैं और सर्दियों में गर्मी का अहसास होने लगा है। इसकी वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। ऐसे में मुंबई समेत दुनिया के कई हिस्सों एवं महानगरों-नगरों के ड...