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मुस्लिम वृद्धि दर बनाम अल्पसंख्यक हिन्दू

मुस्लिम वृद्धि दर बनाम अल्पसंख्यक हिन्दू

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भारत में एक सेकुलर जमात है जो सेकुलर के नाम पर सिर्फ अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती है। अल्पसंख्यकों को वोट बैंक मानकर राष्ट्रवाद की भावना पर प्रहार करती है। इस जमात को न तो भारत की एकता और अखंडता से कोई मतलब होता है और न ही नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों से। यह जमात अल्पसंख्यकों की राजनीति तो करती है किन्तु अल्पसंख्यक शब्द को ठीक से पारिभाषित करने की मांग नहीं करती। जिन प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उनके लिए यह जमात किसी अधिकार की मांग नहीं करती। यह जमात बांग्लादेशी घुसपैठियों के मानवाधिकार हनन पर तो आवाज़ बुलंद करती है किन्तु हिन्दू अल्पसंख्यक इनके मानवाधिकार के दायरे से पीछे छूट जाते हैं। और शिकायत सिर्फ इस जमात से ही क्यों की जाये। पांच साल सत्ता में रही राष्ट्रवादी सरकार ने भी हिन्दू अल्पसंख्यक विषय पर खामोशी रखी। हालांकि, चालीस साल से रह रहे बांग्लादेशियों पर सरकार द्वारा निशान...
इस्लाम बनाम ईसाई

इस्लाम बनाम ईसाई

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जुम्मे की नमाज़ पढ़ी जा रही थी और न्यूज़ीलैंड में एक ईसाई आतंकवादी ने मस्जिदों को निशाना बनाया। बात लगभग एक महीने पहले की है। उसके बाद इंग्लैंड के बर्मिंघम इलाके की कुछ मस्जिदों पर कुछ लोगों ने हथौड़े चला दिए। बयान आया कि मुसलमान जनता डर कर जी रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में कुल 80,393 हेट क्राइम, यानी घृणाजन्य अपराध के मामले सामने आए जो कि 2015-16 में 62,518 थे। न्यूज़ीलैंड के ईसाई आतंकी ने साफ शब्दों में लिखा था, ''मुस्लिम शरणार्थी हमारी भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं। यह भूमि श्वेतों की है।’’ उसने यह चिंता जताई थी कि बाहर से आए मुस्लिम अधिक प्रजनन करके पश्चिमी देशों की धार्मिक जनसांख्यिकी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं और पश्चिमी देशों की संस्कृति व शांति भंग कर रहे हैं। उसने इस्लामी आतंक द्वारा यूरोप में मची तबाही का भी जि़क्र किया था। जब मार्च में यह हमला हुआ और 50 लो...
डिस्लेक्सिया से लड़ने के लिए शिक्षकों को किया जाएगा प्रशिक्षित

डिस्लेक्सिया से लड़ने के लिए शिक्षकों को किया जाएगा प्रशिक्षित

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‘तारे जमीं पर’ फिल्म में डिस्लेक्सिया से ग्रस्त ईशान को उसके शिक्षक आमिर खान ने इस समस्या से उबरने में मदद की थी। इस तरह के शिक्षकों की फौज तैयार करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास ने एक नई पहल की है। डिस्लेक्सिया तंत्रिका के विकार से संबंधित एक ऐसी स्थिति है जिसके कोई शारीरिक लक्षण नहीं होते। लेकिन, ऐसे बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में खुद को व्यक्त नहीं कर पाते। हालांकि, ऐसे बच्चों की बौद्धिक क्षमता कम नहीं होती। ऐसे बच्चों की पहचान का ज्ञान हो तो डिस्लेक्सिया का पता लगाने में शिक्षकों की बड़ी भूमिका हो सकती है। डिस्लेक्सिया की समय रहते पहचान न हो पाने के कारण बच्चे पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं और अक्सर स्कूल छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। डिस्लेक्सिया से ग्रस्त बच्चों में पढ़ने-लिखने और सीखने में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (...
सूचना क्रांति के फायदे

सूचना क्रांति के फायदे

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जहां एक तरफ भारत के समाचार टीवी चैनल सतही, ऊबाऊ, भड़काऊ, तथ्यहीन व सनसनीखेज समाचारों और कार्यक्रमों से देश की जनता कासमय बर्बाद कर रहे हैं, उनका ध्यान असली मुद्दों से हटाकर फालतू की बहसों में उलझा रहे हैं। वहीं सूचना क्रांति का एक लाभ भी हुआ है। भारतऔर विदेश के अनेक टीवी चैनलों ने अनेक तथ्यात्मक और ऐतिहासिक सीरियल बनाकर दुनियाभर के दर्शकों को प्रभावित किया है। इन सीरियलों सेहर पीढ़ी के दर्शक का खूब ज्ञानबर्द्धन हो रहा है। मनोरंजन तो होता ही है। यहां मैं कुछ उन सीरियलों का जिक्र करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझ जैसेगंभीर दर्शक को भी आकर्षित किया है। वह भी तब जबकि मैं सबसे कम टीवी देखने वालों में हूं। इस श्रृंखला में एक महत्वपूर्णं सीरियल है, जिसने मेरे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला, वो है ‘बुद्ध’। भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी परआधारित इस सीरियल को हर आयु का व्यक्ति पसंद करेगा और उसे भारत की उस दिव...
क्या है सुन्दरता का मापदण्ड?

क्या है सुन्दरता का मापदण्ड?

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हाल ही में आइआइटी में पढने वाली एक लड़की के आत्महत्या करने की खबर आई कारण कि वो मोटी थी उसे अपने मोटा होना इतना शर्मिंदा करता था की वो अवसाद में चली गयी उसका अपनी परीक्षाओं में अव्वल आना भी उसे इस दुःख से बहार नहीं कर पाया यानी उसकी बौधिक क्षमता शारीरक आकर्षण से हार गयी दरअसल। आज हम जिस युग में जी रहे हैं वो एक ऐसा वैज्ञानिक और औद्योगिक युग है जहाँ भौतिकवाद अपने चरम पर है। इस युग में हर चीज का कृत्रिम उत्पादन हो रहा है। ये वो दौर है जिसमें ईश्वर की बनाई दुनिया से इतर मनुष्य ने एक नई दुनिया का ही अविष्कार कर लिया है यानी कि वर्चुअल वर्ल्ड। इतना ही नहीं बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशल इनटेलीजेंस ने भी इस युग में अपनी क्रांतिकारी आमद दर्ज कर दी है। ऐसे दौर में सौंदर्य कैसे अछूता रह सकता था। इसलिए आज सुंदरता एक नैसर्गिक गुण नहीं रह गया है अपितु यह करोड़ों के कॉस्मेटिक उद्योग के बाज़रवाद ...
भारतीयों के भोजन में कम हो रही है जिंक की मात्रा

भारतीयों के भोजन में कम हो रही है जिंक की मात्रा

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जिंक सूक्ष्म पोषक तत्वों में शामिल एक प्रमुख घटक है जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन, कुपोषण दूर करने के प्रयासों के बावजूद भारतीय आबादी के भोजन में जिंक की मात्रा लगातार कम हो रही है। भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है। वर्ष 1983 में भारतीय लोगों के आहार में अपर्याप्त जिंक के सेवन की दर 17 प्रतिशत थी जो वर्ष 2012 में बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई। इसका अर्थ है कि 1983 की तुलना में वर्ष 2012 में 8.2 करोड़ लोग जिंक की कमी का शिकार हुए हैं। जिंक के अपर्याप्त सेवन की दर चावल का ज्यादा उपभोग करने वाले दक्षिण भारतीय और पूर्वोत्तर राज्यों, जैसे- केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में अधिक देखी गई है। इसके पीछे चावल में जिंक की कम मात्रा को जिम्मेदार बताया जा रहा है। जिंक शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका...
वैज्ञानिकों ने खोजे भारतीय पुरुषों में बांझपन के आनुवांशिक कारण

वैज्ञानिकों ने खोजे भारतीय पुरुषों में बांझपन के आनुवांशिक कारण

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वैज्ञानिकों के एक समूह ने भारतीय पुरुषों में बांझपन के लिए  जिम्मेदार आनुवंशिक कारकों का पता लगाया है जो पुरुष बांझपन से जुड़ी परीक्षण विधि विकसित करने में मददगार हो सकते हैं। पुरुषों में पाए जाने वाले वाई क्रोमोसोम (गुणसूत्र) में कई जीन होते हैं जो शुक्राणुओं के उत्पादन और उनकी गुणवत्ता में भूमिका निभाते हैं। वाई गुणसूत्रों में ये जीन्स किसी वजह से विलुप्त या नष्ट होने लगते हैं तो वृषण संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता हैं। ऐसे में शुक्राणु उत्पादन में कमी होने लगती है जो अंततः पुरुषों में बांझपन को जन्म दे सकती है। यूरोप और अन्य देशों के जनसंख्या समूहों में वाई गुणसूत्रों पर जीन्स विलुप्ति के सटीक स्थानों की जानकारी पहले से है। अब, हैदराबाद स्थित कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने भारतीय आबादी में वाई गुणसूत्रों में जीन्स के विलुप्ति से जुड़े क्षेत्रों का...
कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को कम कर सकता है नया जैल

कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को कम कर सकता है नया जैल

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भारतीय शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजेल-आधारित कैंसर उपचार की नई पद्धति विकसित की है जो कैंसर रोगियों में कीमोथेरेपी उपचार के दौरान स्वस्थ कोशिकाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोकने में मददगार हो सकती है। इस नई उपचार पद्धति में साइक्लोडेक्स्ट्रिन और पॉलियूरेथेन नामक पॉलिमर्स के उपयोग से एक जटिल संरचना का निर्माण किया है जो ड्रग डिपो की तरह काम करती है। पॉलिमर्स से बनी यह संरचना कैंसर रोगियो के शरीर में दवा को नियंत्रित तरीके से धीरे-धीरे फैलाने में मदद करती है जिसके कारण दवा का प्रभाव बढ़ जाता है। कीमोथेरेपी में एक या अधिक दवाओं का मिश्रण दिया जाता है। ये दवाएं कैंसर कोशिकाओं को विभाजित होने और बढ़ने से रोकती हैं। पर, स्वस्थ कोशिकाओं को ये दवाएं नष्ट भी कर सकती हैं। कीमोथेरेपी के दौरान दी जाने वाली दवाएं शरीर में अनियंत्रित रूप से तेजी से फैलने लगती हैं। इस तरह अचानक दवा के फैलने से आसपा...
बच्चों को कुपोषण से बचा सकती है शिक्षित मां

बच्चों को कुपोषण से बचा सकती है शिक्षित मां

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कुपोषण को दूर करने के लिए भोजन की गुणवत्ता और आहार की मात्रा पर ध्यान देना जरूरी माना जाता है। लेकिन, एक नए अध्ययन में पता चला है कि बच्चों को पर्याप्त पोषण और विविधतापूर्ण आहार देने में शिक्षित मां की भूमिका परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पारिवारिक आय और मां के शैक्षणिक स्तर का सीधा असर बच्चों को दिए जाने वाले पोषण की मात्रा और आहार विविधता पर पड़ता है। बच्चों को दिए जाने वाले आहार में विविधता बहुत कम पायी गई है। जबकि, आहार की अपर्याप्त मात्रा का प्रतिशत अधिक देखा गया है। शिशु आहार में कद्दू, गाजर, हरे पत्ते वाली सब्जियां, मांस, मछली, फलियां और मेवे जैसे अधिक पोषण युक्त आहार पर्याप्त मात्रा में शामिल करने में मां के शैक्षणिक स्तर का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जबकि, घरेलू आर्थिक स्थिति का संबंध दुग्ध उत्पादों के उपभोग पर अधिक देखा ग...
क्यूं दूर होते जा रहे हैं ‘किताबों’ से

क्यूं दूर होते जा रहे हैं ‘किताबों’ से

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(विश्व पुस्तक तथा कापीराइट दिवस-23 अप्रैल विशेष) विलियम स्टायरान ने कभी कहा था कि ‘एक अच्छी किताब के कुछ पन्ने आपको बिना पढ़े ही छोड़ देना चाहिए ताकि जब आप दुखी हों तो उसे पढ़ कर आपको सुकुन प्राप्त हो सके’। यह बातें उनके दौर में और आज से 4-5 वर्ष पूर्व तक काफी सटीक था लेकिन आज के दौर में यदि आपने किसी पुस्तक को पढ़ कर छोड़ दिया है तो छूटा ही रह जाता है। क्यूंकि हम किताबों से परहेज करने लगे हैं लेकिन मोबाइल को रिचार्ज और चार्ज करना नहीं भूलते। कहने का यथार्थ यह कि इन्टरनेट के इस क्रांति युग में किताबों को हम भूलते जा रहे हैं। अब पढ़ना मोबाइल तक सिमटकर रह गया है। आज जहां जायें घर हो या बाहर सभी जगह चौबीसों घंटे हाथ में मोबाइल लिए इन्टरनेट पर चैट करते या वीडियो देखते मिल जाएंगे। उन्हें यदि पुस्तक मेले में कह दिया जाए कि जाओ वहां से घुमकर आ जाओ तो पुस्तक मेले तो नहीं जाएंगे लेकिन वे किसी अच्छे...