आसान नहीं है कर्नाटक की राजनीति को समझना
उमेश चतुर्वेदी
टीवी चैनलों के दौर इस में बौद्धिकों की नजर में हर विधानसभा चुनाव सेमीफाइनल बन गया है। विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित होते ही विशेषकर राजधानी केंद्रित बौद्धिक घोषित करने लगते हैं कि आने वाले चुनावों पर इस चुनाव विशेष के नतीजों का बड़ा असर होगा। कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर भी ऐसी ही स्थापित धारणाएं लगातार प्रसारित हो रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उभार के बाद ऐसी धारणाएं कई बार ध्वस्त हुई हैं। फिर भी इन्हीं धारणाओं के इर्द-गिर्द कर्नाटक के संभावित नतीजों का आकलन किया जा रहा है।
अतीत के अनुभवकर्नाटक के अतीत के अनुभव भी इन स्थापित धारणाओं को खारिज करते रहे हैं।याद कीजिए 1999 के विधानसभा चुनाव को। तब जनता दल के जेएच पटेल मुख्यमंत्री थे। आम धारणा थी कि येदियुरप्पा की अगुआई में दक्षिण के इस राज्य में अपने दम पर कमल खिल जाएगा। लेकिन कमल खिलने के पहले ही मुरझा गया। वजह ...