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चीन भारत से युद्ध क्यों चाहता है?

चीन भारत से युद्ध क्यों चाहता है?

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चीन पर अमरिका सहित कई देशों का दबाव है। उधर दूसरे पड़ोसी देशों से उसके संबंध पहले से ही खराब चल रहे हैं। कोरोना को लेकर चीन की नकारात्मक इमेज पूरी दुनिया में बन चुकी है। चीन की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा रही है। फिर वह भारत से युद्ध क्यों चाहता है? जबकि भारत उसके व्यापार के लिए बड़ा केंद्र है?? विदेशी कम्पनियां चीन छोड़कर जा रही हैं। कई कम्पनियों ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग की बात की है। सालाना 30 लाख फुटवेयर बनाने वाली कम्पनी वॉन वेल्क्स चीन छोड़ रही है। वह भारत में 110 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश करने जा रही है। यही नहीं मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स, लेदर, ऑटो पार्ट्स और सिंथेटिक फैब्रिक्स बनाने वाली लगभग 300 कम्पनियां चीन छोड़ सकती हैं। इनमें से बहुत सी कम्पनियां भारत का रुख कर सकती हैं। राजनीतिक परिदृश्य से चीन की स्थिति इस समय 1962 जैसे ही है। चीन की ज...
चीन छेड़ेगा तो भारत इसबार छोड़ेगा नहीं

चीन छेड़ेगा तो भारत इसबार छोड़ेगा नहीं

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भारत-चीन के बीच गलवान घाटी में हुई तीखी खूनी झड़प के बाद चीन को अब समझ में आ गया है कि अब उसका पाला 2020 के नये भारत से पड़ा है। भारत अपनी एक-एक इंच भूमि के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार है। भारत के 20 शूरवीर शहीद अवश्य हुए पर चीनी सैनिकों के हमले के बाद तत्काल जवाबी कारवाई में उन्होंने चीन को भारी क्षति पहुंचाई। 43 से अधिक चीनी जवान उनके कमांडिंग ऑफिसर समेत मारे गए। झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया को ध्यान से देखने और समझने की जरूरत है । बड़े ठंढे दिमाग से नपे-तुले शब्दों में उन्होंने कहा कि भारतीय सैनिकों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। भारतीय सैनिक मारते हुए मरे हैं। यानी प्रधानमंत्री का कहना था कि केवल भारतीय सैनिकों का ही नुक़सान नहीं हुआ है। उनके वक्तव्य को समझने की जरूरत है। संदेश साफ दे दिया गया है कि अब भारत किसी हालत में 1962 की तरह पीछे नहीं हटेगा। चीन की द...
तीसरा विश्वयुद्ध : प्रत्यक्ष युद्ध का तीसरा चरण

तीसरा विश्वयुद्ध : प्रत्यक्ष युद्ध का तीसरा चरण

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प्रथम चरण में जैविक युद्ध के रूप में प्रारंभ हुआ अमेरिका व चीन के गुटों के बीच का विश्व युद्ध अब तीसरे चरण में प्रवेश करने जा रहा है। पहले चरण में ही चीन ने जो ब्रह्मास्त्र चला उससे दुनिया के थाने का एसएचओ अमेरिका अपने ही मातहत सब इंस्पेक्टर चीन के हाथों चारों खाने चित्त हो गया। अमेरिका सहित पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण से फैली महामारी के कारण एक ओर जहाँ अपने अपने नागरिकों की लाशें गिन रही है वहीं लॉकडॉउन के कारण बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था से बिगड़ते हालातों को देख रही है। पिछले कुछ बर्षों में चीन ने कब अमेरिकी व अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के शेयर भारी मात्रा में खरीदे व उन पर नियंत्रण स्थापित करता गया यह किसी को भी न पता और अभी भी पूरी दुनिया में उसका यह खेल जारी है। चीन ने पूरी दुनिया को कर्ज बांटकर भी उनको अपने नियंत्रण में ले रखा है तो दुनिया की उत्पाद फेक्ट्री होने के कारण भी दुनि...
महामारी के बीच तूफानी ख़तरे

महामारी के बीच तूफानी ख़तरे

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देश अभी कोरोना वायरस से लड़ ही रहा है कि एक और नई चुनौती सामने आकर खड़ी हो गई है, यह है चक्रवात अम्फान। ऐसे में इन दोहरी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एनडीआरएफ की टीमों ने अपनी कमर कस ली है। चक्रवाती तूफान 'अम्फान' सुपर साइक्लोन में बदल गया है. जानकारी के मुताबिक यह चक्रवात भीषण तबाही मचा सकता है. भारतीय मौसम विभाग ने बंगाल की खाड़ी के ऊपर चक्रवाती तूफान अम्फान की तेज रफ्तार को देखते हुए पश्चिम बंगाल, ओडिशा समेत कई राज्यों में अलर्ट जारी किया है.चक्रवात अम्फान अब बंगाल और ओडिशा तट की ओर तेजी से बढ़ रहा है. चक्रवात की वर्तमान गति 160 किमी/घंटा है. वर्तमान में, यह दीघा से करीब 1000 किलोमीटर दूर है. आइये जाने चक्रवातों के बारे में,भारत मौसम विज्ञान विभाग ने हाल ही में भविष्य के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के 169 नामों की सूची जारी की है जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उभरेंगे। दुनिया भर मे...
तनातनी के माहौल में भारत की भूमिका

तनातनी के माहौल में भारत की भूमिका

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महामारी को लेकर अमेरिका, चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच चल रही जुबानी जंग में हर रोज कुछ न कुछ नया शामिल जो जाता है. इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख को एक चेतावनी भरा पत्र लिखा, लेकिन इसका जवाब उन्हें चीन की तरफ से मिला. चीनी विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के पत्र को ‘संकेतों, शायद, किंतु-परंतु’ से भरा हुआ बताया और यह भी कहा कि अमेरिका जनता को गुमराह करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने डोनाल्ड ट्रंप के पत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘अमेरिका अपनी जिम्मेदारी को सीमित करने और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों पर सौदेबाजी के लिए चीन को मुद्दा बना रहा है. लेकिन अमेरिका ने गलत लक्ष्य चुना है’. कोरोना महामारी ने अमेरिका में काफी कहर बरपाया है. 90,000 से अधिक...
असली चुनौती अब राज्यों को झेलनी है

असली चुनौती अब राज्यों को झेलनी है

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तमाम विपरीत परिस्थितियों, आशंकाओं और आपत्तियों के बीच भारत में लागू हुआ लॉकडाउन का चैथा चरण अब अधिक चुनौतीभरा एवं गंभीर है। देश में कोरोना संक्रमितों और इससे मरने वालों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, वह बहुत चिन्ताजनक एवं भयावह तस्वीर प्रस्तुत कर रही है। इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में इस महामारी का कहर थमने वाला नहीं है। तीन चरणों के लाॅकडाउन पीरियड़ में इस महामारी को फैलने से रोकने में जो सफलताएं मिली, वे अब धराशायी हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। कोरोना मुक्ति की सीढ़ियों पर चढ़ते कदमों को नीचे खींचना हमारी ऐसी विवशता बन रही है, जो जीवन के उजाले से अधिक मौत का अंधेरा अपने साथ लिये है। लेकिन यह भी बड़ा सत्य है कि जीने के लिये गतिशीलता जरूरी है, रुक जाना अच्छा नहीं, क्योंकि वहां विकास की सारी संभावनाएं खत्म हो जाती है। केंद्र सरकार ने विकास को गति देने की दृष्टि से...
तब्लीगियों और मजदूरों को लेकर राजनीति होती रही, पर सरकार का इकबाल कहीं दिखा ही नहीं, अब कोरोना झेलिए!

तब्लीगियों और मजदूरों को लेकर राजनीति होती रही, पर सरकार का इकबाल कहीं दिखा ही नहीं, अब कोरोना झेलिए!

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  आज कोरोना संक्रमण के एक्टिव केस की संख्या 58,802 है और अब तक कुल 3,163 लोगों की दुखद मृत्यु हो चुकी है। अब तक संक्रमण के कुल 1,01,139 मामले कन्फर्म हो चुके हैं। एक्टिव केस के मामले में भारत अभी दुनिया में 7वें स्थान पर आ चुका है। अब भारत से आगे केवल अमेरिका, रूस, ब्राज़ील, फ्रांस, इटली और पेरू हैं। इन देशों में भी फ्रांस और इटली ने अपने यहाँ स्थिति पर काबू पा लिया है और वहाँ हालात बेहतर हुए हैं। अमेरिका में जो होना है, हो चुका है। रूस, ब्राज़ील और पेरू इन तीनों देशों को मिलाकर भी 38 करोड़ की ही आबादी है, यानी अकेले भारत की आबादी इन तीनों देशों को मिलाकर भी चार गुना ज़्यादा है। यानी दुनिया में कोरोना का अगला कहर भारत में ही बरपने वाला है। फिर भी ऐसा लगता है कि अब किसी भी सरकार के पास कोरोना से निपटने की कोई ठोस नीति नहीं है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के नाम पर सरकारें क्र...
धर्म स्थलों का धन क्या विकास में लगे?

धर्म स्थलों का धन क्या विकास में लगे?

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जब से कोरोना का लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से अपनी जान बचाने के अलावा दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चर्चा का विषय वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर है। हर आदमी खासकर व्यापारी, कारखानेदार और मजदूर अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अर्थव्यवस्था के इस तेजी से पिछड़ जाने के कारण प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्रीगण तक सार्वजनिक रूप से आर्थिक तंगी, वेतन में कटौती, सरकारी खर्च में फिजूल खर्च रोकना और जनता से दान देने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में सबका ध्यान भारत के धर्म स्थलों में जमा अकूत दौलत की तरफ भी गया है। बार-बार यह बात उठाई जा रही है कि इस धन को धर्म स्थलों से वसूल कर समाज कल्याण के या विकास कार्यों में लगाया जाए। आरोप लगाया जा रहा है कि भारी मात्रा में जमा यह धन, निष्क्रिय पड़ा है। या इसका दुरुपयोग हो रहा है। कुछ सीमा तक उपरोक्त आरोप में दम हो सकता है। पर इस धन को सरकारी तंत्र के हाथ में दिए जाने के बहुतसे लोग श...
चुनौती को अवसर में बदलें पूर्वी राज्य

चुनौती को अवसर में बदलें पूर्वी राज्य

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आर.के.सिन्हा कोरोना वायरस के बहाने देश दीन-हीन प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक हालात से रू ब रू हो गया है। कोराना वायरस की चेन को ध्वस्त करने के लिए शुरू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद पैदा हुए हालातों से समझ आ गया कि हमारे यहां बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उडीसा, छतीसगढ़ और असम आदि राज्यों के मजदूरों को लेकर कई राज्य सरकारों और नौकरशाही का रवैया कितना निर्ममतापूर्ण रहा है। गुजरात में भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूरों पर लाठियां बरसाई जाती हैं। पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडू में भी इन्हें इंसान तक नहीं समझा गया। अब कहीं जाकर इन्हें घर भेजने की व्यवस्था शुरू हुई है। यह पहले भी हो सकती थी । इसके कार्यान्वयन में देरी ने सशक्त मजदूरों का दयनीय और मजबूर दृश्य देश के सामने प्रस्तुत किया है जिससे बचा जा एकता था । इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की लचर आपदा प्रबंधन, लापरवाह कार्य यो...
मौतों के दौर में सोनिया की सियासत

मौतों के दौर में सोनिया की सियासत

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अफसोस कि जब देश को कोरोना वायरस के संक्रमण की राष्ट्रीय आपदा और उससे पैदा हुई समस्याओं से एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए था, तब भी हमारे देश में ओछी राजनीति हो रहीहै। लगता है कि मौतों और लाशों की खबरें देख सुनकर भी कुछ नेताओं में मनुष्यता अबतक जागी नहीं है। उनके दिल तो अभी भी पत्थर के समान कठोर हैं। उन्हें तो सस्ती सियासत हीकरनी है। चाहे देश और जनता जाये चूल्हें में उनकी अपनी रोटी सिंकना जरूरी है, चिता की आग हो या दंगों की आगजनी। उन्हें कहाँ कोई फर्क पड़ता है। अब जरा देख लें कि देश की सबसे पुरानी और बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस लॉकडाउन के कारण फंसे रहे मजदूरों को उनके अपने गृह राज्यों में रेल से भेजने के प्रश्न पर अकारण राजनीतिकरने लगीं। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी विगत 4 मई को कहने लगी कि कांग्रेस पार्टी प्रवासी मजदूरों का रेल किराया देने के लिए तैयार है। बाकायदा लिखित बयान जारी कर झूठेआरो...