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चुनौती  चौतरफा

चुनौती चौतरफा

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मा विवाद, सीमा पर गोलीबारी, आतंकियों की घुसपैठ, रोज आतंकी हमले पाकिस्तान की आदत में शुमार हो गया है। रक्षा विशेषज्ञ ओर कुटनीति के जानकारों के अनुसार कश्मीर में चीन पीछे से पाकिस्तान को शह दे रहा है उधर सिक्किम, बंगाल और उत्तर पूर्व में में चीन खुलकर ही सामने आ गया है। चीन द्वारा भारत का खुला विरोध अपने आप में एक बड़ी घटना है। मोदी सरकार द्वारा खुलकर अमेरिका और नाटो देशों के खेमे में आ जाना चीन को अखर रहा है। अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना वापसी के बाद से दक्षिण एशिया में बड़ी भूमिका की तलाश में है। पाकिस्तान को मिल रही अमेरिकी आर्थिक मदद भी उत्तरोत्तर कम होती जा रही है ओर वो चीन की गोदी में पूरी तरह जा बैठा है। चीन 61 देशो के साथ मिलकर सिल्क रूट बनाने जा रहा है और भारत को चारों ओर से घेर रहा है। दक्षिण चीन सागर पर कब्जे की उसकी कोशिश ओर आक्रामकता से पूरा विश्व सकते में है। चीन सोवियत स...
Nehru Vs The Armed Forces – How Nehru destroyed his own Army

Nehru Vs The Armed Forces – How Nehru destroyed his own Army

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We don’t need a defence plan. Our policy is non-violence. We foresee no military threats. You can scrap the army. The police are good enough to meet our security needs. These were the words of India’s first Prime Minister in a response to Indian Armed Forces First Commander-in-Chief Gen Sir Robert Lockhart in 1946, on being briefed about the Paper on phased growth of the Armed Forces. Of what followed was downsizing the Army from its strength of over 2, 80,000 to about 1, 50,000. Pandit Nehru was not only of the opinion that the Armed Forces were not required in a peace loving country, but also reeled under the paranoia of a coup being transpired by the Army top Brass, as had happened in Pakistan a little later after independence. Him being pricky on the coup d’état issue was a nubb...
How to bring down a nation — Colonel Dan (2001)  Importance of proper Education

How to bring down a nation — Colonel Dan (2001) Importance of proper Education

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Colonel Dan, SASS #24025, Life/Regulator If you were intent on bringing down a powerful rival whose philosophy, as originally founded, was strong, independent and entirely opposite from your own—a country that you would not want to confront militarily—how would you go about it? The answer is simple; orchestrate the society’s destruction from within. Although possibly taking longer than a military victory and requiring great patience, the damage would be just as effective if not more so. When you destroy from within, you do it by using that country’s own people, no blood is spilled in combat and the physical infrastructure is left intact. In any country, there are but a few key areas that determine how the citizens mature, live, and develop their be...
DECOLONISING OUR Education: TIME FOR CHANGE of Education for Bhaaratiyakaran  समय की आवश्यकता है-शहरों के नामों का भारतीयकरण

DECOLONISING OUR Education: TIME FOR CHANGE of Education for Bhaaratiyakaran समय की आवश्यकता है-शहरों के नामों का भारतीयकरण

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(The education that we Bhaaratvaasi are receiving is all wrong, rather we are being told only information that also wrong. In Democracy this is in hands of Rulers i.e. the politicians whom we have given votes and elected as our representatives.) As is understood, the education system that we follow in Bhaarat now, was given by British Government in 1835 as per the recommendations of the Education Secretary Lord McCauley. Till that time for nearly 1000 years, there was hardly any education system in existent as a public system. Some Gurukuls were running at important Dharmsthal like Kashi, Paithan, Rishikesh etc. and imparting Vaidik education to willing students. But the students coming out of them were very few and far between. British initiated this education system with...
रेलवे को संवेदनशील बनाना होगा

रेलवे को संवेदनशील बनाना होगा

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ललित गर्ग भारतीय जन-जीवन की आर्थिकी से लेकर सांस्कृतिक परिदृश्य तक भारतीय रेल एक सतत महत्वपूर्ण आधार और सशक्त माध्यम है, इसीलिए उसकी अव्यवस्था और बदहाली राष्ट्रीय चिंता का बड़ा कारण मानी जाती है। तरह-तरह की उपलब्धियों के बावजूद रेल यात्रियों को सफर में हर कदम पर कठिनाइयों से जूझना पड़ता है। लेकिन सबसे शोचनीय पहलू यह है कि मुसाफिरों के लिए जो चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है, वह है रेल्वे का खाना। लम्बे समय से रेल्वे के घटिया, नुकसानदायी एवं बीमार बनाने वाले खाने को लेकर विभिन्न मंचों पर चर्चाएं होती रही हैं। भारतीय रेलवे के खाने की घटिया क्वालिटी पर यात्रियों के हवाले से मीडिया ने कई बार सवाल उठाए हैं, लेकिन अब तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में बाकायदा इस पर घटियापने की मोहर लगा दी है। जो न केवल रेलवे प्रशासन पर बल्कि भारत सरकार की नीतियों एवं व्यवस्थाओं पर एक द...
कोविंदजी! अब देश आश्वस्त होना चाहता

कोविंदजी! अब देश आश्वस्त होना चाहता

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ललित गर्ग:- श्री रामनाथ कोविन्द देश के चैहदवें नए राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। वह एक दलित के बेटे हैं जो सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने की दूसरी घटना है, जिससे भारत के लोकतंत्र नयी ताकत मिलेगी, दुनिया के साथ-साथ भारत भी तेजी से बदल रहा है। सर्वव्यापी उथल-पुथल में नयी राजनीतिक दृष्टि, नया राजनीतिक परिवेश आकार ले रहा है, इस दौर में श्री कोविन्द के राष्ट्रपति बनने से न केवल इस सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को नया कीर्तिमान प्राप्त होगा, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व एवं अस्मिता भी मजबूत होगी। क्योंकि उनकी छवि एक सुलझे हुए कानूनविद, लोकतांत्रिक परंपराओं के जानकार और मृदुभाषी राजनेता की रही है। उम्मीद है कि देश के संवैधानिक प्रमुख के रूप में उनकी मौजूदगी हर भारतवासी को उसके शांत और सुरक्षित जीवन के लिए आश्वस्त करेगी। दलित का दर्द दलित ही महसूस कर सकता है- यानी भोग हुए यथार्थ का दर्द। मेरी दृष्टि...
मोदी की एतिहासिक इस्राइल-यात्रा

मोदी की एतिहासिक इस्राइल-यात्रा

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह इस्राइल-यात्रा एतिहासिक है। एतिहासिक इसलिए कि जिस देश के साथ पिछले 70 साल से हमारे खुले और गोपनीय संबंध रहे हैं, वहां जाने की हिम्मत पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने की है तो वह मोदी ने की है। मोदी के पहले पी.वी. नरसिंहराव ने भी इस्राइल-यात्रा का विचार किया था लेकिन 25 साल पहले के भारत और दक्षिण एशियाई राजनीति का चरित्र कुछ ऐसा था कि राव साहब इस्राइल न जा सके लेकिन उन्होंने इस्राइल को राजनयिक मान्यता देकर भारतीय विदेश नीति के इतिहास में नया अध्याय लिखा। मोदी के इस साहस की सराहना करनी होगी कि उन्होंने सारी झिझक छोड़कर इस्राइल-यात्रा का निर्णय किया। मोदी का यह कदम नरसिंहरावजी की नीतियों को तो शिखर पर पहुंचा ही रहा है, उसके साथ-साथ संघ और जनसंघ की इस्राइल-नीति को भी अमली जामा पहना रहा है। इस्राइल से संकोच करने के पीछे दो तर्क काम कर रहे थे। ए...
अध्यात्म का राजनीति पर प्रभाव जरूरी: कोविंद

अध्यात्म का राजनीति पर प्रभाव जरूरी: कोविंद

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नई दिल्ली, 1 जुलाई 2017 देश के अगले राष्ट्रपति के लिए एनडीए के उम्मीदवार श्री रामनाथ कोविंद ने गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् नित्यानंद सूरीश्वरजी के दीक्षा के 50 वर्ष की संपन्नता पर आयोज्य संयम तप अर्धशताब्दी महोत्सव के लिए अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि जैन समाज का राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। देश के संतुलित विकास के लिए अध्यात्म का राजनीति पर प्रभाव जरूरी है। श्री कोविंद ने सुखी परिवार अभियान के प्रणेता गणि राजेन्द्र विजय के सान्निध्य में जैन समाज के शीर्ष प्रतिनिधिमंडल से चर्चा करते हुए उक्त उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने आचार्य नित्यानंदजी के अवदानों की चर्चा करते हुए संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंतता प्रदान करने में आचार्यजी के द्वारा किये गये प्रयासों को उल्लेखनीय बताया। इस अवसर पर प्रतिनिधिमंडल मंे संसद सदस्य श्री रामसिंह राठवा, अखिल भारतीय संयम तप अर्द्धशता...
The Dark Rule: Why Congress Went After India’s Institutions

The Dark Rule: Why Congress Went After India’s Institutions

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Congress criticism of the Army Chief comes as no surprise. Its 10-year rule between 2004 and 2014 explains why. Congress leaders have been showing their blatant disapproval of Indian Army Chief General Bipin Rawat’s stand with statements such as these: “Our Army Chief gives out statements like a sadak ka gunda (street thug)” says Sandeep Dixit, son of three-time chief minister of Delhi Sheila Dixit, a close confidant of Rahul Gandhi and a senior Congress leader, himself. Just a few days ago, Jairam Ramesh, a former minister in the previous Congress government and another Congress leader considered very close to Rahul Gandhi, defended an obscure writer who, in an extremist left publication, had compared General Rawat to the notorious British General Dyer. This sudden public opprobrium di...
एनडीटीवी पर सीबीआई का छापा

एनडीटीवी पर सीबीआई का छापा

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जिस दिन एनडीटीवी पर सीबीआई का छापा पड़ा, उसके अगले दिन एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान भाजपा के प्रवक्ता का दावा था कि सीबीआई स्वायत्त है। जो करती है, अपने विवेक से करती है। मैं भी उस पैनल पर था, मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। सीबीआई कभी स्वायत्त नही रही या उसे रहने नहीं दिया गया। 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसे अपने अधीन ले लिया था, तब से हर सरकार इसका इस्तेमाल करती आई है। रही बात एनडीटीवी के मालिक के यहां छापे की तो मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि डा. प्रणय रॉय एक अच्छे इंसान हैं। मेरा उनका 1986 से साथ है, जब वे दूरदर्शन पर 'वल्र्ड दिस वीकÓ एंकर करते थे और मैं 'सच की परछाईÓ। तब देश में निजी चैनल नहीं थे। जैसा मैंने उस शो में बेबाकी से कहा कि 1989 में कालचक्र वीडियो मैग्जीऩ के माध्यम से देश में पहली बार स्वतंत्र हिंदी टीवी पत्रकारिता की स्थापना करने के बावजूद, आज मेरा टीवी चैनल नहीं...