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शौहर, बेगम और दूसरी पत्नी

शौहर, बेगम और दूसरी पत्नी

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  रांची राजमार्ग से तीन किलोमीटर अंदर की तरफ जाने पर इटकी प्रखंड आता है। मुख्य सड़क से अंदर जाने का रास्ता कच्चा-पक्का है। जब आप इटकी में दाखिल होते हैं, बायीं तरफ लड़कियों का एक मदरसा है। इस मदरसे को देखकर आप अनुमान करते हैं कि यह प्रखंड स्त्रियों के अधिकार को लेकर जागरूक प्रखंड होगा। इसी प्रखंड में एक घर है परवेज आलम (काल्पनिक नाम) का। परवेज शादी शुदा पुरुष हैं लेकिन शादी इन्होंने एक बार नहीं तीन बार की है। इनके घर में पत्नी के तौर पर तीन औरतें रहती हैं। पहली शकीना खातून (काल्पनिक नाम) और बाकि दो औरतें आदिवासी हैं। दूसरी रंजना टोप्पो (काल्पनिक नाम) और तीसरी मीनाक्षी लाकड़ा (काल्पनिक नाम)। इटकी के आस-पास के लोगों से बातचीत करते हुए यह अनुमान लगाना आसान था कि परवेज का मामला अकेला नहीं है, इटकी प्रखंड में। इस तरह के कई दर्जन मामले हैं, जिसमें एक से अधिक शादी हुई है और गैर आदिवासी सम...
सरकारी स्कूल, शिक्षा और गुणवत्ता

सरकारी स्कूल, शिक्षा और गुणवत्ता

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ऐसा प्रतीत होता है कि आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी सरकारें यह नहीं समझ सकी हैं कि देश के नौनिहालों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए बच्चों को केवल स्कूल तक पहुंचा देने भर से ही काम नहीं बनेगा। तमाम सरकारी एवं गैरसरकारी आंकड़ें यह सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि शिक्षा का अधिकार कानून, मिड डे मिल योजना, निशुल्क पुस्तकें, यूनिफॉर्म आदि योजनाओं के परिणामस्वरूप स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या तो बढ़ी हैं लेकिन छात्रों के सीखने का स्तर बेहद ही खराब रहा है। देश में भारी तादात में छात्र गणित, अंग्रेजी जैसे विषय ही नहीं, बल्कि सामान्य पाठ पढऩे में भी समर्थ नहीं हैं। यहां तक कि 5वीं कक्षा के छात्र पहली कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ पाते। यूं तो यह ट्रेंड पूरे देश का है लेकिन लैपटॉप और स्मार्ट फोन बांटने वाला उत्तर प्रदेश शिक्षा की गुणवत्ता की गिरावट के मामले में नए प्रतिमान स्थापि...
मणिपुर का लोकतान्त्रिक उत्तर दिल्ली से जुड़ता पूर्वोत्तर

मणिपुर का लोकतान्त्रिक उत्तर दिल्ली से जुड़ता पूर्वोत्तर

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मणिपुर में पिछले 15 सालों से कांग्रेस के ओकराम इबोबी मुख्यमंत्री थे। लगातार इतने सालों से मुख्यमंत्री रहने के कारण उनके विरोध में एक सत्ता विरोधी लहर तो उनके पिछले कार्यकालों के दौरान भी साफ तौर पर थी किन्तु किसी मजबूत विकल्प न होने के कारण सत्ता का बदलाव मुश्किल था। असम की जीत के बाद भाजपा की मजबूती मणिपुर में भी बढ़ी। वहां पैदा हुये आत्मविश्वास ने इस बार मणिपुर में भाजपा को एक विकल्प के रूप में खुद ब खुद पेश कर दिया। गोवा और मणिपुर में हालांकि भाजपा दूसरे नंबर पर थी किन्तु भाजपा के शीर्ष रणनीतिकारों के बेहतर रणनीतिक कौशल के कारण मणिपुर में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही। मणिपुर पर अमित त्यागी का एक लेख। भारत में लोकतन्त्र मजबूत होता दिखने लगा है। जनता जागरूक होने लगी है। इसकी वजह यह है कि जनता अब उन विषयों पर जागरूक होने लगी है जो राष्ट्रनिर्माण से सरोकार रखते हैं। जिनसे देश की आंतर...
केसरिया हुयी देवभूमि

केसरिया हुयी देवभूमि

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उत्तराखंड में भाजपा के जीतने में किसी को कोई शक शुबा नहीं था। पिछले पांच सालों में जिस तरह कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने उत्तराखंड में लूट खसोट और भ्रष्टाचार किया था उसके बाद जनता ने मन तो साल भर पहले ही बना लिया था। वह तो सिर्फ चुनाव का इंतज़ार कर रही थी कि कैसे हरीश रावत सरकार से छुटकारा मिले। हरीश रावत को अपने मुख्यमंत्री रहते इस बात का आभास था इसलिए उन्होंने इस बार दो विधानसभा से चुनाव लड़ा। अपेक्षित रूप से दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों से उनकी हार हुयी। बसपा तो इस बार खाता भी नहीं खोल सकी। 2017 के चुनाव परिणामों में सबसे बड़ी विजय के साथ जीती भाजपा की रणनीति एवं राष्ट्रपति चुनावों पर इसके प्रभावों पर अमित त्यागी प्रकाश डाल रहे हैं। देवभूमि देवताओं का निवास मानी जाती है। इस बार देवभूमि ने एक नहीं दो मुख्यमंत्री दिये। एक उत्तराखंड को, दूसरा उत्तर प्रदेश को। पांचों राज्यों के चुनावों में ...
यूपी चुनाव परिणाम :  भगवा सुनामी के बाद

यूपी चुनाव परिणाम : भगवा सुनामी के बाद

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  यूपी में भाजपा की अप्रत्याशित जीत ने सभी को चकित कर दिया है व  देश की राजनीति को एक नयी दिशा दी है और वो है विकास की राजनीति। अर्थात जो दल जनता को काम करके दिखाएगा जनता उसी को अपना समर्थन देगी। हालिया चुनावों में भाजपा को इतनी बड़ी जीत नरेन्द्र मोदी जी की सबका साथ सबका विकास की छवि को लेकर मिले हैं। किन्तु भाजपा की राह अब आगे और मुश्किल होने जा रही है क्योंकि उसके समक्ष जनता के इस विश्वास को बनाए रखने की चुनौति है और 2 वर्ष के भीतर कुछ करके दिखाना है जिससे 2019 का लक्ष्य साधा जा सके। प्रस्तुत है एक आलेख   उत्तरप्रदेश के विस्मयकारी, अप्रत्याशित और राजनैतिक भूकंप लाने वाले परिणाम आए। खुद भाजपा के कट्टर समर्थकों को भी यह उम्मीद नहीं थी कि भाजपा को यूपी में तीन सौ से अधिक सीटें मिलेंगी। यहां तक कि अंतिम चरण का प्रचार आते-आते खुद मोदीजी भी एक-दो सभाओं में गठबंधन की बातें कर...
भगवा सुनामी

भगवा सुनामी

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उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत ने पूरे देश में संदेश दिया है कि अब धर्म निरपेक्षता के नाम पर देश को ठगने वाले राजनैतिक दलों का काला चेहरा जनता के सामने आ चुका है। अब न तो कोरे दिखावे चलने वाले हैं और न सेकुलर छवि के नाम पर बहुसंख्यकों का शोषण। अब न राजकुमार और राजकुमारी की खुमारी जनता पर चढऩे वाली है और न ही समाजवादी विरासत की परंपरा। न खुद को देवी कहलाने वाली धन-पशु से युवा को लगाव है न ही जाटों के स्वयंभू नेता दिखाने वाले सत्ता लालची की। अब आरोप-प्रत्यारोप का ज़माना जा चुका है। स्पष्टवादी और दो टूक को जनता पसंद करती है। जाति की राजनीति तो उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों ने खत्म कर दी है। धर्म की राजनीति खत्म होगी या नहीं यह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सरकार की नीतियां तय करेंगी। अब यह देखना रोचक होगा कि भाजपा सबका साथ सबका विकास भगवे रंग के अंतर्गत करेगी या अल्पसंख्यकों के भीतर से ...
उत्तर प्रदेश में अमर-कथा हो सकते हैं योगी

उत्तर प्रदेश में अमर-कथा हो सकते हैं योगी

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आदित्यनाथ की सरकार फिलहाल संभावनाओं और उम्मीदों की सरकार-सी लग रही है. समाज में शासन की साख और प्रशासन की चुस्ती का जो भयानक संकट लंबे समय से चल रहा था, उसकी बहाली की आहट-सी है. यह ठीक है कि अभी कुछ भी कहना बीज देखकर पैदावार का अनुमान लगाना है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक संस्कार को बदलने की कोशिशों से आनेवाले दिनों में हालात के बदलने की उम्मीद की जा सकती है. जो खतरे और चिंता है उनकी भी बात होनी चाहिए मगर अभी जो दिख रहा है उसको समझने के बाद. आदित्यनाथ को 19 मार्च को जब मुख्यमंत्री बनाने का एलान किया गया तो मैंने इस बात का यह कहते हुए विरोध किया कि उनकी छवि और मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दोनों एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं. आदित्यनाथ के चेहरे के जरिए बीजेपी ने देश में राजनीति की नीति और नीयत- दोनों के संकेत दिए हैं. योगी को कमान का मतलब ये है कि संघ और प्रधानमंत्री मोदी दोनों यह मान रहे हैं कि उत्...
Finance Bill loaded with 40 amendments to different laws passed by Lok Sabha

Finance Bill loaded with 40 amendments to different laws passed by Lok Sabha

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The Lok Sabha on 22-3-2017 passed the Finance Bill 2017. Earlier, the Finance Minister Shri Arun Jaitley moved 40 amendments to the Finance Bill proposing amendments in different laws including funding of political parties, use of Aadhar for filing Income Tax returns, cap of Rs.2 lakh on cash financial transactions and rationalisation of Tribunals and Appellate Tribunals. The following are the main features of the amendments moved in the Finance Bill 2017 : (a)  Aadhar made mandatory for PAN and Income Tax (b)  Removal of Cap of 7.5% of average net profit of the last three years for companies making political donations so as to allow higher corporate donations while curbing black money and unknown source of political donations. (c)  Limit on cash transactions has been reduced to Rs. 2 l...
गुजरात चुनाव एक बड़ी चुनौती है

गुजरात चुनाव एक बड़ी चुनौती है

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पांच राज्यों के विधानसभाओं में भारतीय जनता पार्टी की प्रभावी, ऐतिहासिक एवं शानदार जीत के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य निशाना गुजरात है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार खत्म होते ही वे गुजरात के सोमनाथ मन्दिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की। इस दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह एवं मंदिर के ट्रस्टी केशुभाई पटेल भी मौजूद रहे। इसके बाद से भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। क्योंकि उसके लिये वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है गुजरात के विधानसभा चुनाव। यह सर्वविदित है कि प्रभावी नेतृत्व के अभाव में गुजरात में भाजपा का धरातल कमजोर हुआ है। वहां पर सभी दलों की दौड़ ‘येन-केन-प्रकारेण’ भाजपा को हराना एवं सत्ता हासिल करना है। यह मोदी के लिये एक बड़ी चुनौती बन चुका है और नाक का सवाल भी है। आगामी विधानसभा चुनाव जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं वहीं ...
परिवार को पतन की पराकाष्ठा न बनने दे

परिवार को पतन की पराकाष्ठा न बनने दे

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वर्तमान दौर की एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि पारिवारिक परिवेश पतन की चरम पराकाष्ठा को छू रहा है। अब तक अनेक नववधुएँ सास की प्रताड़ना एवं हिंसा से तंग आकर भाग जाती थी या आत्महत्याएँ कर बैठती थी वहीं अब नववधुओं की प्रताड़ना एवं हिंसा से सास उत्पीड़ित है, परेशान है। वे भी अब आत्महत्या का सहारा ले रही हंै, जो कि न केवल समाज के असभ्य एवं त्रासद होने का सूचक है बल्कि नयी बनी रही पारिवारिक संरचना की एक चिन्तनीय स्थिति है। आखिर ऐसे क्या कारण रहे हैं जो सास जिन्हें सासू मां भी कहा जाता है, आत्महत्या को विवश हो रही है। इसका कारण है हमारी आधुनिक सोच और स्वार्थपूर्ण जीवन शैली। हम खुलेपन और आज़ादी की एक ऐसी सीमा लांघ रहे हैं, जिसके आगे गहरी ढलान है। ऐसा लग रहा है कि व्यक्ति केवल अपनी सोच रहा है, परिवार नाम का शब्द उसने शब्दकोश में वापिस डाल दिया। तने के बिना शाखाओं का और शाखाओं के बिना फूल-पत्तों का अस्तित्व ...