करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार
हर आँख नम है हर शख्स शर्मिंदा है क्योंकि
आज मानवता शर्मसार है इंसानियत लहूलुहान है।
एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने इंसान होने का गुरूर था लेकिन आज का मानव तो खुद से ही शर्मिंदा है। क्योंकि आज उस पिशाच के लिए न उम्र की सीमा है न शर्म का कोई बंधन। ढाई साल की बच्ची हो या आठ माह की क्या फर्क पड़ता है। मासूमियत पर हैवानियत हावी हो जाती है। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि ऐसी घटनाएं आज हमारे समाज का हिस्सा बन चुकी हैं। और खेद का विषय यह है कि ऐसी घटनाएं केवल एक खबर के रूप में अखबारों की सुर्खियां बनकर रह जाती हैं समाज में आत्ममंथन का कारण नहीं बन पातीं। नहीं...