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चुनाव के समय मतदाता को जागरूक करने में लगे राजनैतिक दल

चुनाव के समय मतदाता को जागरूक करने में लगे राजनैतिक दल

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देश में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग हर राजनैतिक दल मतदाताओं को "जागरूक" करने में लगा है। लेकिन इस चुनाव में खास बात यह है कि इस बार ना तो कोई लहर है और ना ही कोई ठोस मुद्दे यानी  ना सत्ताविरोधी लहर ना विपक्ष के पक्ष में हवा। बल्कि अगर यह कहा जाए कि समूचे विपक्ष की हवा ही निकली हुई है तो भी गलत नहीं होगा।  क्योंकि जो भ्रष्टाचार का मुद्दा  अब तक के लगभग हर चुनाव में विपक्षी दलों का एक महत्वपूर्ण हथियार होता था इस बार उसकी धार भी फीकी है। इस बात का एहसास देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष  को भी हो गया है शायद इसलिए कल तक जिस रॉफेल विमान की सवारी करके वो सत्ता तक पहुंचने की लगातार कोशिश कर रहे थे आज वो उनके चुनावी भाषणों से ही फुर्र हो चुका है । हाँ लेकिन चौकीदार पर नारे वो अपनी हर चुनावी रैली में लगवा ही लेते हैं। लेकिन उनके चौकीदार चोर है के नारे की हवा "मैं भी चौकी...
AN OPEN LETTER TO ELECTION COMMISSION AND POLITICAL PARTIES

AN OPEN LETTER TO ELECTION COMMISSION AND POLITICAL PARTIES

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We, the National Alliance of women, are writing this to express our deep dissatisfaction with the meager allotment of tickets to women candidates by major political parties in the lists put out by them. It is our contention that political parties that don’t have an adequate representation of women within their organization are not truly representative of our democracy. Moreover, it is incumbent on all who are in a position of responsibility to create a just social order. These precedents of unfairness in ticket allotment serve to perpetuate the gender imbalance in opportunities available to men and women in India. National Alliance for Women’s Reservation Bill (a platform with members from many women’s organizations), has met with the previous election commissioners. We have, on several...
क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती शिक्षा?

क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती शिक्षा?

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लोकसभा चुनावों का प्रचार अब तो सारे देश में जोर पकड़ चुका है। चुनावी सभाएं, रैलियां, भाषण वगैरह हो रहे हैं। पहले चरण का चुनाव तो मंगलवार को थम भी जायेगा। हर पक्ष दूसरे पर जनता को छलने और गुमराह करने के आरोप लगा रहे हैं। ये अपनी तरफ से सत्तासीन होने पर आसमान से सितारे तोड़ कर लाने के अलावा तमाम अन्य संभव-असंभव वादे भी कर रहे हैं। पर इन सबके बीच एक मुद्दा लगभग अछूता सा बना हुआ है। वह है शिक्षा का। इतने महत्वपूर्ण बिन्दु पर अभी तक कोई सारगर्भित बहस सुनने को ही नहीं मिल रही है। देश में शिक्षा का स्तर नहीं सुधरेगा तो देश बुलंदियों को कैसे छू सकेगा। क्या ये किसी को बताने की जरूरत  है? बेशक, यह अपने आप में आश्चर्य का ही विषय है कि लोकसभा या विधान सभा चुनावों के दौरान शिक्षा के मसले पर कभी पर्याप्त बहस नहीं हो पाती। दरअसल देखा जाए तो शिक्षा को राम भरोसे छोड़ दिया गया है हमने। हमने अपने यहां स्कूल...
कलात्मक मृत्यु का इतिहास रचने वाला साधक

कलात्मक मृत्यु का इतिहास रचने वाला साधक

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जैन धर्म के छोटे-से आम्नाय तेरापंथ धर्मसंघ के सुश्रावक श्री विष्णुभगवान जैन का इनदिनों अलखपुरा तहसील तोशाम जिला भिवानी (हरियाणा) में संथारा यानी समाधिमरण का आध्यात्मिक अनुष्ठान असंख्य लोगों के लिये कोतुहल का विषय बना हुआ है। दिनांक 9 नवम्बर, 2018 भैयादूज के प्रारंभ यह सर्वाधिक लम्बा संथारा आज 146 वें दिवस पर भी अनवरत जारी है। मृत्यु के इस महामहोत्सव के साक्षात्कार के लिये असंख्य श्रद्धालुजन देश के विभिन्न भागों से दर्शनार्थ पहुंच कर अमरत्व की इस अनूठी एवं विलक्षण यात्रा से लाभान्वित हो रहे हैं। यह संथारा इसलिये भी अनूठा एवं आश्चर्यकारी है क्योंकि एक कृषिजीवी जाट परिवार में जन्मे एवं सनातन धर्म के संस्कारों में पले एवं बाद में जैन बने श्री विष्णु भगवान आज के इस भौतिकवादी एवं सुविधावादी युग में सुख-सुविधा, मोहमाया के त्याग का इतिहास रच रहे हैं। जैसाकि सर्वविदित है कि जैन धर्म में अनगिनत सदि...
सांसद की भूमिका क्या होती है?

सांसद की भूमिका क्या होती है?

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इस देश की राजनीति की यह दुर्दशा हो गई है कि एक सांसद से ग्राम प्रधान की भूमिका की अपेक्षा की जाती है। आजकल चुनाव का माहौल है। हर प्रत्याशी गांव-गांव जाकर मतदाताओं को लुभाने में लगा है। उनकी हर मांग स्वीकार कर रहा है। चाहे उस पर वह अमल कर पाए या न कर पाए। 2014 के चुनाव में मथुरा में भाजपा उम्मीदवार हेमा मालिनी ने जब गांवों के दौरे किए, तो ग्रामवासियों ने उनसे मांग की कि वे हर गांव में आर.ओ. का प्लांट लगवा दें। चूंकि वे सिनेतारिका हैं और एक मशहूर आर.ओ. कंपनी के विज्ञापन में हर दिन टीवी पर दिखाई देती है। इसीलिए ग्रामीण जनता ने उनके सामने ये मांग रखी। इसका मूल कारण ये है कि मथुरा में 85 फीसदी भूजल खारा है और खारापन जल की ऊपरी सतह से ही प्रारंभ हो जाता है। ग्रामवासियों का कहना है कि हेमा जी ने ये आश्वासन उन्हें दिया था, जो आजतक पूरा नहीं हुआ। सही बात क्या है, ये तो हेमा जी ही जानती होंगी। यह...
उत्तराखंड की ठंडी और शांत वादियों में चुनावी शोर

उत्तराखंड की ठंडी और शांत वादियों में चुनावी शोर

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देश में लोकसभा चुनाव का शंख बजने के बाद उत्तराखंड की ठंडी और शांत वादियों में चुनावी शोर ने भले ही अभी गति न पकड़ी हो पर प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टी बीजेपी और कांग्रेस में अंतरकलह की गर्माहट ने राजनीतिक माहौल को खासा गरमा रखा है। प्रदेश के 76.28 लाख मतदाता 11 अप्रैल को अपना मतदान कर सूबे की 5 लोकसभा सीटों पर किस दल को काबिज करने जा रहे हैं यह तो अभी नहीं कहा जा सकता पर राजनीति के रणनीतिककारों का मानना है कि इस बार सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस दोनों की हालत चिकन सूप की तरह पतली बनी हुई है। एक ओर प्रदेश में कांग्रेस का अंतर्कलह का बीज फूट फूटकर आपसी कलह की नई पौध को जन्म देने पर तुला हुआ है तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी के सिरमौर माने जाने वाले बड़े नेता वनवास की ओर रुख किये बैठे हैं जिसके चलते देश के इस सबसे बड़े उत्सव का रंग सूबे की जनता पर अभी तक नहीं चढ़ पाया है। उत्तराखंड की पांचों लोकसभ...
राजनीतिक दलदल में फंसी ममता के हाथ से फिसल रहा है बंगाल

राजनीतिक दलदल में फंसी ममता के हाथ से फिसल रहा है बंगाल

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लोग अक्सर कहते हैं कि राजनीति में सबकुछ बदल जाने के लिए एक सप्ताह काफी है। लेकिन जिस तरह से बंगाल की राजनीति की दिशा और दशा पिछले कुछ दिनों में बदली है वो हैरान करने वाला है। जो ममता बनर्जी एक महीने पहले देश की प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रही थी वो आज अपने ही घर में घिर गई है। बंगाल में बीजेपी के पक्ष में एक अंडरकरेंट चल रहा है। बीजेपी मजबूत होती जा रही है और ममता की पार्टी का ग्राफ धरातल की ओर जा रहा है। ये अंडरकरेंट कहां थमेगा और कब थमेगा ये कहना तो मुश्किल है लेकिन हकीकत ये है कि भारतीज जनता पार्टी की नजर अब बंगाल से 15-20 सीटें जीतने पर टिक गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह तृणमूल कांग्रेस के एक एमएलए अर्जुन सिंह हैं जिन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है। इससे बंगाल का पूरा परिदृश्य बदल गया है। ये बीजेपी का एक गेम-चेंजर दांव साबित होने वाला है क्योंकि ममता बनर्जी ने अपनी सेना का अर्जुन खो दिय...
सर्वे को  झुठलाने की जुगत में प्रदेश कांग्रेस

सर्वे को  झुठलाने की जुगत में प्रदेश कांग्रेस

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राजस्थान में विधान सभा की जीत के बाद कांग्रेस में इस बात का भी भारी उत्साह था कि अब तो लोकसभा चुनावों में जनता उन्हें बाग बाग कर देगी। जैसे प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन हुआ है वैसे ही लोक सभा चुनावों में 25 का मिशन पूरा होगा। इस मिशन को पूरा करने के लिये गहलोत ने सरकार बनने के बाद जनहित के कितने काम किये या जनहित में कितने निर्णय लिये, इसका तो कोई मालूम नहीं चला, लेकिन आईएएस से लेकर अन्तिम स्तर तक के लगभग सभी विभागों के कर्मचारियों के तबादले कर दिये। बताया जा रहा है कि सरकार ने सुशासन के लिये पूरी मशीनरी को ही बदल दिया है। वह भी इस उम्मीद के साथ कि जनता में सकारात्मक संदेश जायेगा। लेकिन जिस प्रकार के सर्वे सामने आ रहे हैं उससे तो नहीं लगता कि कांग्रेस अपने मिशन को पूरा करने में सफल होगी। कांग्रेस ने भले ही लोकसभा चुनावों को लेकर मिशन 25 का टारगेट रखा हो, लेकिन आधा दर्जन से अधिक सीटों पर का...
लोकसभा चुनाव 2019 : जीत हार के अधर में अमेठी

लोकसभा चुनाव 2019 : जीत हार के अधर में अमेठी

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अमेठी संसदीय क्षेत्र की यूं तो देश ही नहीं विदेशों में भी अच्छी खासी धमक रही है। कारण कि गांधी परिवार के लिए हमेशा से महफूज रही अमेठी ने वक्त बेवक्त कांग्रेस को झटके भी देकर अपनी पृष्ठभूमि का अहसास कराया है। अमेठी संसदीय क्षेत्र में पांच विधान सभा क्षेत्र क्रमश: अमेठी, गौरीगंज, जगदीशपुर, तिलोई व सलोन शामिल हैं। भौगोलिक लिहाज से भी तीन जिलों के भूभाग मिलाकर बने इस संसदीय क्षेत्र के चुनाव में पूर्व की तरह इस बार भी काफी रोचक व दिलचस्प मुकाबले देखने को मिलेंगे। अमेठी लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि पिछले लोकसभा चुनाव की भांति भाजपा यहां से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुकाबला करने के लिए केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य स्मृति ईरानी को एक बार फिर से उतारकर राहुल को उनकी ही कर्मभूमि पर कड़ी चुनौती देने के मूड में नजर आ रही है। ...
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और न्याय

गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और न्याय

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कांग्रेस अध्यक्ष की बेसिक इनकम गारंटी प्रस्ताव के सम्बन्ध में। इसके बारे में तात्विक चर्चा का बहुत विस्तार है। संकेत भर के लिए कुछ तात्विक प्रश्न इस प्रकार हैं- गरीबी, भुखमरी, लाचारी, बेरोजगारी क्या ये समानार्थक हैं या इनमें कोई भेद है? इस दृष्टि से कोई विचार प्रकट नहीं किया गया। विगत वर्षों में बीपीएल की सीमा और बीपीएल की पहचान करके उनको कार्ड देना जमीनी स्तर पर बहुत विवाद का मुद्दा रहा है। इसकी ओर कोई संकेत नहीं। बीपीएल क्या एक व्यक्ति इकाई है या परिवार इकाई है या समाज इकाई है? ये मुद्दा विशेष उभर कर आया है बीपीएल की पहचान करने के नए एसेट्स बेस्ड मेथोडोलॉजी से। क्या टार्गेटेड सब्सिडी कार्यक्रम चलाना एक अच्छी नीति है? क्या इससे अपेक्षित परिणाम निकल पाते हैं? क्या इस प्रकार की बहुविध स्कीम्स का कोई निश्चित लाभ लाभार्थियों को पहुंचा है? क्या वे गरीबी रेखा से बाहर आ पाए हैं?...