
ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं
चुनाव के तीन दिन पहले संकल्प-पत्र और सप्ताह भर पहले घोषणा-पत्र जारी करने का अर्थ क्या है? देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने यही किया है। दूसरी छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों ने भी कोई आदर्श उदाहरण उपस्थित नहीं किया है। इन पार्टियों के नेताओं से पूछिए कि आपके 50-50 पृष्ठों के इन घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ेगा? क्या देश के 70-80 करोड़ मतदाता उसे पढ़कर मतदान करेंगे? इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी उन्हें पढ़ेंगे, इसमें संदेह है। चुनाव अभियान तो पिछले डेढ़-दो माह से चला हुआ है। उसमें जनहित के कौनसे मुद्दों पर सार्थक बहस हो रही है, यह सबको पता है।
फिर भी इन संकल्प-पत्रों और घोषणा-पत्रों का महत्व है। जो भी पार्टी जीतती है, उसकी खिंचाई उसके विरोधी घोषणा-पत्रों के आधार पर करते हैं। उसका कुछ न कुछ असर भी जरुर दिखाई पड़ता है। 2019 के जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण छपे हैं, उनके आधार पर यह कहना...