
चुनावी लोकतंत्र : बस, पांच कदम चलना होगा..
पार्टिंयां चुनावों की तैयारी करती हैं. पार्टियां ही उम्मीदवार तय करती हैं. पांच साल वे क्या करेंगी; इसका घोषणापत्र भी पार्टियां ही बनाती हैं. चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जायेगा; मीडिया के साथ मिलकर ये भी पार्टियां ही तय कर रही हैं. मतदान की मशीन पर चुनने के लिए छपे हुए निशान भी पार्टियों के ही होते हैं. मतदाता भी अपना मत, उम्मीदवार से ज्यादा, पार्टियों को ध्यान में रखकर ही देता है. यह लोकसभा के लिए लोक-प्रतिनिधि चुनने का चुनाव है कि पार्टिंयां चुनने का ?
लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनना है. क्या चुनाव से पूर्व कभी लोगों से पूछा जाता है, हां भई, आप बताइए कि किस-किस को उम्मीदवार बनाया जाए ?
सोचिए. स्वयं से पूछिए कि इस चुनाव में चुनाव आयोग है, मतदाता है, मतदान की मशीन है; किंतु इसमें लोक कहां है ? लोक-प्रतिनिधियों का चुनाव है, तो उम्मीदवार, चुनावी प्रक्रिया, और तौर-तरीके से लेकर चुनावी एजेण...