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Public being looted in name of notarization of documents

Public being looted in name of notarization of documents

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System allows a fixed fees for getting any document duly attested and notarized by persons authorized as Notary-Public, by recording complete details in the registers required to be maintained by persons authorized as Notary-Public. Similar may be system for Oath-Commissioners. But it is common practice in Delhi that many persons charge fees as Notary-Public by simply putting a round rubber-stamp on documents without even having a register where complete details about documents are to be recorded and numbered to be endorsed on notarized documents also. There is no provision to check authenticity of such persons acting as Notary Public. It is a common practice that many authorized Notary Public maintaining proper registers for keeping record of notarized documents charge heavily in tunes of...
Computerisation in medical profession should be compulsory

Computerisation in medical profession should be compulsory

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It should be made mandatory for new-age medical practitioners to issue prescriptions direct from the computer after storing medical history of patients in their computers. Many medical practitioners especially in lower-income localities give their own-prepared medicinal syrups and powder-capsules without letting patients know about the medicines being administered to them. In emergency-era of 1975-1977, such unhealthy practice was effectively checked by making all medical practitioners to compulsorily maintain record of each patient visiting them and also binding every medical practitioner to compulsorily give a copy of prescription of administered or prescribed medicines even though given by the medical practitioner. Such medical discipline should be restored in larger public interest. Ho...
जर्मनी से राहुल का मोदी पर हमला?

जर्मनी से राहुल का मोदी पर हमला?

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  मॉब लिंचिग के पीछे है बेरोजगारी का दर्द भारत में इन दिनों मॉब लिंचिंग की घटनाओं ने सत्ता से लेकर समाज तक सभी को परेशान कर रखा है। कोई नहीं जानता है कि कब किसकी मौत किसके हाथों हो जाए। कभी गाय की हत्या करने पर, कभी किसी जाति विशेष का होने पर या फिर कभी किसी भी छोटे से विवाद के बदले अब लोग पीटपीटकर मार देने को ?ही इंसाफ समझ रहे हैं। पर राहुल गांधी का कहना है कि यह सब बेरोजगारों के कारण हो रहा है। वे दुखी हैं, परेशान हैं और इसलिए मॉब लिंचिंग की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। यह तर्क कितना सच है यह तो देश जानता है पर इस मसले की आड़ लेकर उन्होंने पीएम मोदी को निशाने पर लिया है। राहुल गांधी ने जर्मनी से इंटरनेशनल मीडिया के सामने पीएम मोदी के खिलाफ बयानबाजी की। उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में कहा कि भारत में भीड़ द्वारा लोगों की पीट-पीटकर हत्या (मॉब लिंचिंग) किये जाने की घटनाएं बे...
चुनावी राजनीति  कौन आगे?

चुनावी राजनीति कौन आगे?

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  इस साल के अंत में तीन राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। इसके साथ ही देश के बौद्धिक और मीडिया वर्ग के एक हिस्से में शिगूफेबाजी भी शुरू हो गई है। शिगूफा यह कि तीन राज्यों के साथ ही लोकसभा का चुनाव भी केंद्र सरकार कराने की तैयारी में है। कांग्रेस के एक सचिव नाम न छापने की शर्त पर इन पंक्तियों के लेखक से बाजी तक लगाने को तैयार थे कि दिसंबर में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के साथ ही लोकसभा का भी चुनाव होने जा रहा है। इतना ही नहीं, उनका दावा है कि जिन राज्यों में साल 2019 में विधानसभा चुनाव होने हैं, मसलन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, अरूणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और हरियाणा की विधानसभा के भी चुनाव पहले साथ ही कराए जा सकेंगे। इसके लिए उन्होंने उदाहरण भी दिया कि कांग्रेस पार्टी में जारी फेरबदल का मकसद भी पार्टी को चुनाव के मद्देनजर तैय...
सदियों लग जायेंगी, तुमको मुझे भुलाने में

सदियों लग जायेंगी, तुमको मुझे भुलाने में

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अटल युग का अवसान इस शताब्दी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में एक मानी जाएगी। अटल जी से 1965 से लेकर अभी तक लगातार 53 वर्षों का साथ रहा, तबीयत बिगडऩे के पहले तक तो, शायद ही कोई ऐसा महीना गुजरता हो जब उनके साथ कुछ घंटे न बिताये हों। उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। लेकिन, व्यवहार मित्रवत था। पूरा सम्मान देते थे और हल्के फुल्के मजाक भी कर लेते थे। मात्र एक घटना का जिक्र करूंगा। 1996 में जब अटल जी की 13 दिनों कि सरकार बनी और मायावती की बेवफाई से एक वोट की कमी पड़ गई तो अटल जी ने अपने संसद में भाषण का अंत 'न दैन्यम न पलायनम_’ कह कर किया और सीधे राष्ट्रपति भवन जा कर इस्तीफा सौंप दिया। उस समय अटल जी की लोकप्रियता चरम पर थी। जिसकी जुबान पर सुनो अटल जी का नाम रहता था। विरोधियों में भी उनके प्रशंस भरे पड़े थे। बिहार के मुजफ्फरपुर में प्रदेश कार्यकारणी की बैठक थी। उन दिनों भाजापा के प्रदेश अध्यक्ष स्व...
The mental health report card

The mental health report card

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TAKE THIS TEST At the workplace Low-scoring behaviour■  You have many projects ‘halfway done’. You say yes when asked to take on new jobs, but struggle to finish them. ■  You have an important project to complete but keep getting distracted by emails, colleagues, meetings … all of which you feel must be responded to immediately.■  You are often irritable with colleagues or complain of headaches, neck or back pain. High-scoring behaviour■  You have a discipline of arriving and leaving work generally at determined times.■  When colleagues ask for ‘favours’, you think about your current tasks before either accepting or refusing politely.■  When something urgent or unexpected occurs, you do not panic; you feel you can handle it by shifting some other things off today’s list. H...
उत्तराखंड: महिला टीचर उत्तरा पंत पर क्यों क्रूर हुआ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार?

उत्तराखंड: महिला टीचर उत्तरा पंत पर क्यों क्रूर हुआ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार?

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उत्तरा पंत बहुगुणा और त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार, जहां आम लोग अपनी परेशानियां बता सकते हैं. 28 जून को हुए जनता दरबार में माइक उत्तरकाशी में 20 से ज़्यादा सालों से टीचर उत्तरा पंत बहुगुणा के हाथ में आता है. वो कहना शुरू करती हैं, ''मेरी समस्या ये है कि मेरी पति की मौत हो चुकी है. मेरे बच्चों को कोई देखने वाला नहीं है. घर पर मैं अकेली हूं, अपने बच्चों का सहारा. मैं अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ सकती और नौकरी भी नहीं छोड़ सकती. आपको मेरे साथ न्याय करना होगा.'' न्याय की इस फरियाद को सुनकर रावत उत्तरा से सवाल पूछते हैं, ''जब नौकरी की थी तो क्या लिखकर दिया था?'' उत्तरा जवाब देती हैं, ''लिखकर दिया था सर. ये नहीं बोला था कि मैं वनवास भोगूंगी ज़िंदगीभर. ये आपका है 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ.' और ये नहीं कि वनवास के लिए भेज रहे हैं हम...
आपातकाल में संघ ने समझौता नहीं किया था, जेल जाने वाले ज्यादातर आरएसएस, समाजवादी पृष्ठभूमि के लोग थेः गोविंदाचार्य

आपातकाल में संघ ने समझौता नहीं किया था, जेल जाने वाले ज्यादातर आरएसएस, समाजवादी पृष्ठभूमि के लोग थेः गोविंदाचार्य

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क्या यह कहना सही है कि आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सरकार से मांफी मांगी थी? प्रख्यात चिंतक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के.एन. गोविंदाचार्य इस तरह की बातों को ‘असत्य से भी घातक अर्धसत्य’ कह कर निरस्त करते हैं। देश में ‘आज क्या आपातकाल के लक्षण हैं? वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय इसे ‘नादान लोगों का प्रलाप’ कह कर सवाल करते हैं कि ‘’क्या वर्तमान सरकार ने लोगों के जीने के अधिकार को समाप्त कर दिया है? क्या लोकतांत्रिक अधिकारों को समाप्त कर दिया है? क्या बोलने की आजादी समाप्त कर दी गयी है?’’ सत्तर के दशक के छात्र आंदोलन में गहराई से जुड़े और जून 1975 में लागू आपातकाल में घोषित 19 माह के आपातकाल की मार झेलने वाले गोविंदाचार्य और और रामबहादुर राय ने “आपातकाल और पत्रकारिता विषय” पर राजधानी में कल आयोजित चर्चा में लोकतांत्रिक भारत के उस दौर के अपने कुछ अनुभव और जानकारी रखी। दि...
पाकिस्तान अब कठघरे में

पाकिस्तान अब कठघरे में

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पाकिस्तान अब एक नई मुसीबत में फंस गया है। फरवरी में सउदी अरब, तुर्की और चीन ने पाकिस्तान को बचा लिया था लेकिन अब इन तीनों राष्ट्रों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। अब पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय संगठन (एफएटीएफ), जिसका काम आतंकवादियों के पैसे के स्त्रोतों को सुखा देना है, ने पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यदि पाकिस्तान अगले सवा साल में अपने सभी आतंकवादी संगठनों की आमदनी पर प्रतिबंध नहीं लगा पाया तो उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे। उसकी हालत उत्तर कोरिया और ईरान से भी बदतर हो जाएगी। अब पाकिस्तान की गिनती इथियोपिया, सर्बिया, श्रीलंका, सीरिया, ट्रिनिडाड, ट्यूनीशिया और यमन जैसे संकटग्रस्त देशों में होने लगेगी। वह नाम के लिए भी पाकिस्तान याने पवित्र स्थान नहीं रह पाएगा। उसे उद्दंड राष्ट्र (रोग़ स्टेट) की अपमानजनक उपाधि मिल जाएगी। पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई करने की पहल अ...
Why vote bank politics even in announcing dating system in text books  in Tamil Nadu ?

Why vote bank politics even in announcing dating system in text books  in Tamil Nadu ?

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A few days after introducing Before Common Era ( B.C.E) and Common Era (C.E.) as the dating system in text books, Tamil Nadu government has reversed the decision and said that it would revert to the system of using Before Christ ( BC) and Anno Domini ( AD). What is surprising is that after announcing the reversion of the decision, the Education Minister in Tamil Nadu has claimed that such decision has been taken " to protect the interest of minorities" What is the minority issue involved in this and how minority interests will be affected by changing the dating system in text books? Obviously, Tamil Nadu government is playing vote bank politics , which amounts to minority appeasement in this case. So called secularism and minority interests are subjects now taken to ridiculous level. Is...