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Public-sector banks collaborating with private-sector Insurance-companies instead of promoting public-sector LIC of India

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Presently many public-sector banks have collaborated with private-sector Insurance-companies for providing single-window service for banking and insurance. This wrong practice should be replaced by promoting public-sector LIC of India by terminating collaborations by all public-sector banks with private-sector Insurance-companies. Instead all branches of various public-sector banks should be authorized as agents for public-sector LIC of India by giving lucrative incentive-points to branch-managers and bank-employees bringing new LIC-policies. Every branch of each Public-sector bank should be linked to nearest LIC-unit. Even special LIC counters can be opened at select branches of various public-sector banks. Such a system will enable public-sector LIC of India to expand business manifol...

Liquor should be sold only on Aadhar cards with all types of subsidy cancelled for those purchasing liquor on Aadhar cards

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Central and state governments should take effective steps so that at least poor people may not be consuming harmful liquor which in turns causes hardships for their families. Opening of liquor shops during lockdown by some state-governments for meeting fiscal-crisis for public-exchequers witnessed long queues and crowds on liquor shops. It was also observed that many poor persons were also eager to purchase liquor. It cannot be ruled out that many having got case-relief of rupees 500 in their bank-accounts from central government for meeting corona-crisis, might also been amongst those lining for purchase of liquor. Liquor should be sold only on production of Aadhar cards, and every type of government-subsidy may be abolished on those purchasing liquor cards through their Aadhar cards i...

भारत भी अब देख रहाचीन-पाक की आंख में आंख डालकर

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जब  भारत की चीन और पाकिस्तान से  लगने वाली  सीमा  पर तनाव कई महीनों से बरकरार चला आ है. तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिवाली पर देश की सीमाओं की रखवाली करने वाले जवानों के साथ रहना अत्त्यॅंत ही महत्वपूर्ण है। वे तो पिछले कई वर्षों से दीपोत्सव देश के जवानों के साथ ही मनाते रहे हैं। उन्होंने कहा की उनकी दिवाली तभी पूर्ण होती है जब वह जवानों के साथ होते हैं, चाहे वह बर्फ से ढके पहाड़ हों या रेगिस्तान। इस बार प्रधानमंत्री ने साफ संकेतों में चीन और पाकिस्तान को सॅंयुक्त रूप से यह बता दिया है कि  “आज का भारत समझ और पारस्परिक अस्तित्व में विश्वास तो जरूर रखता है लेकिन अगर हमारे धैर्य की परीक्षा ली जाएगी तो हम उसी भाषा में हम भी बराबरी से जवाब देंगे।” कहना न होगा कि उनका संदेश बीजिंग से लेकर  इस्लामाबाद तक तो चला ही गया होगा। चीन-पाकिस्तान को ललकारने का मतलब भारत अपने इन चिऱ शत्रुओं  स...

Unclaimed shares in physical form – Shareholders should be given intimation through registered post apart from putting details on website including of IEPF

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Dematerialization of shares from physical form was started several decades ago. But lack of awareness has deprived many small investors about necessity of dematerialization because listed shares now cannot be sold or transferred without dematerialization. Union Corporate Affairs Ministry should direct all companies to send one more reminder by Registered or Speed Post in a time-bound period for dematerialization of shares clearly mentioning holding of shares, debentures or any other form of investment to individual investors. This reminder should also mention details of unclaimed dividends, interests etc held either by the company or transferred Investor Education and Protection Fund -IEPF clearly mentioning procedure to claim these. IEPF should o put all details of stock-holding transferr...

रिसेपः चीन की चौधराहट

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दुनिया के सबसे बड़े साझा बाजार (रिसेप) की घोषणा वियतनाम में हो गई है। इसमें 15 देश शामिल होंगे और अगले दो वर्ष में यह चालू हो जाएगा। साझा बाजार का अर्थ यह हुआ कि इन सारे देशों का माल-ताल एक-दूसरे के यहां मुक्त रुप से बेचा और खरीदा जा सकेगा। उस पर तटकर या अन्य रोक-टोक नहीं लगेगी। ऐसी व्यवस्था यूरोपीय संघ में है लेकिन ऐसा एशिया में पहली बार हो रहा है। इस बाजार में दुनिया का 30 प्रतिशत व्यापार होगा। इस संगठन में चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और द. कोरिया के अलावा एसियान संगठन के 10 राष्ट्र शामिल होंगे। 2008 में इसका विचार सामने आया था। इसे पकने में 12 साल लग गए लेकिन अफसोस की बात है कि 2017 में ट्रंप के अमेरिका ने इस संगठन का बहिष्कार कर दिया और भारत इसका सहयोगी होते हुए भी इससे बाहर रहना चाहता है। भारत ने पिछले साल ही इससे बाहर रहने की घोषणा कर दी थी। इसके दो कारण थे। एक तो यह कि भारत क...

लोंगेवाला में मोदी-सन्देश एक चेतावनी भी, सीख भी

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राष्ट्र-जीवन को ऊंचाई देनी है, इसलिए गहराई भी जरूरी है। बुनियाद जितनी गहरी होगी, राष्ट्र उतना ही ऊंचा और मजबूत बनेगा। यूं तो राष्ट्रीयता एवं सुरक्षा मूल्यों की श्रेष्ठता से जुड़ा हमारे राष्ट्र का चरित्र स्वयं आदर्श है पर एक साथ बहुत-सी अच्छाइयों का अभ्यास कठिन साधना है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी राष्ट्र-साधना में साधनारत हैं। वे राष्ट्र-विकास की इस यात्रा में शक्ति, मनोबल, आस्था एवं विश्वास के संकल्पों के साथ आगे बढ़ते हुए देश को सशक्त बना रहे हैं। हर वर्ष की भांति इस वर्ष की दीपावली पर वे राष्ट्र की सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले नायकों के बीच पहुंचे। दीपावली जैसलमेर में सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ मनाई। प्रधानमंत्री ने लोंगेवाला में पडौसी देश चीन और पाकिस्तान को चेताया और कहा कि अगर भारत को आजमाया गया तो प्रचंड जवाब दिया जायेगा, भारत की ओर से रत्ती भर भी समझौता नह...

दुनिया में वर्तमान और इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी आर्थिक व्यापारिक संधि आज वियतनाम में हुई।

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वियतनाम में आज दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी आर्थिक संधि संपन्न हुई। इस संधि में आसियान देशों का ही प्रमुख रूप से योगदान रहा। चीन के साथ व्यापारिक विरोध के कारण भारत इसका हिस्सा नहीं बना और अमेरिका भी इस संधि से बाहर ही रहा। जापान दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इस संधि में हस्ताक्षर किए। चीन इस प्रकार की संधि को अंजाम देकर विश्व पटल पर ऐतिहासिक कदम उठाया है। परिस्थितियां इस प्रकार की है कि लगभग सारी दुनिया का 30% व्यापार इस संधि में सिमट कर आ गया है। एक प्रकार का आर्थिक शीत युद्ध अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ चीन द्वारा चलाया गया है। जिसमें अमेरिका के साथ-साथ भारत को भी शामिल किया गया है। आसियान देशों का प्रमुख देश होने के कारण भारत के सामने कुछ विकल्प खुले हैं, लेकिन वर्तमान संधि में भारत के ना होने से मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट पर गहरा असर पड़ने की संभावना है। क्योंकि जो वर्...

दुष्काल : सबके सब नकदी बचाने में लगे हैं

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दुष्काल के कुछ गणित समझ से परे हैं| आम परिवारों की बचत, बैंको में ऋण के मुकाबले जमा, कम्पनियों का कर पश्चात लाभ के आंकड़े ऐसा दृश्य दिखा रहे हैं की सामान्य बुद्धि चकरा जाये | जैसे  आम परिवारों की वित्तीय बचत जो प्राय: जीडीपी के १०  प्रतिशत के बराबर होती है वह इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में करीब दोगुनी रही।  और ऐसा तब हुआ जब लोगो की नौकरियां चली गई  और उनके वेतन में कटौती भी हुई है। कंपनियों का मामला भी कुछ ऐसा सा ही है, बस समयावधि भिन्न है। जुलाई से सितंबर तिमाही में २१०० से अधिक सूचीबद्ध कंपनियों की बिक्री को झटका लगा फिर भी उनका कर पश्चात लाभ १५० प्रतिशत तक बढ़ गया । जबकि इससे पिछली तिमाही में इसमें गिरावट आई थी। मुनाफा अब बिक्री के ९ प्रतिशत के अपेक्षाकृत बेहतर स्तर पर है। इसके बाद सरकार ने अप्रैल-जून तिमाही में अपना व्यय पिछले वर्ष की तुलना में १३ प्रतिशत बढ़ाने के बाद अग...

बिहार चुनाव’ मतदाताओं की राजनीतिक समझ का आंकलन करने से चूके राजनीतिक दल

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बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने एक बार फिर से भाजपानीत एनडीए गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया है। इस बार की मतगणना के परिणामों ने अंतिम समय तक एनडीए और महागठबंधन दोनों को क्रिकेट के 20-20 मैच की तरह ही आशा निराशा के झूले में झुलाया है। परिणामों की आधिकारिक घोषणा ने जहाँ सत्ता पक्ष के माथे से पसीना पोंछा वही महागठबंधन की सत्ता पर आसानी से क़ाबिज़ होने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस बार महागठबंधन ने रोजगार, मजदूरों के पलायन आदि को प्रमुख मुद्दा तो बनाया लेकिन वे खुद भी चुनाव प्रचार के दौरान इन समस्यायों के समाधान को लेकर यह स्पष्ट नहीं कर सके कि अगर उनकी खुद की सरकार होती तो कैसे और क्या किया जाता। और इस वजह से भी वे बिहार के मतदाताओं का महागठबंधन की कदाचित-सम्भावित सत्ता में भरोसा जगा पाने में सफल होते नही दिखे हैं। यदि ऐसा नही होता तो जहाँ महागठबंधन को पहले चरण मे 74 में से 47 सीट...

देश को चाहिए राष्ट्रवादी मुसलमान

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कभी-कभी मुझे इस बात की हैरानी होती है कि क्यों हमारे ही देश के मुसलमानों का एक बड़ा तबका नकारात्मक सोच का शिकार हो चुका है? इन्हें फ्रांस में गला काटने वाले के हक में तो बढ़-चढ़कर बोलना होता है, पर ये मोजम्बिक में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा दर्जनों मासूम लोगों का जब कत्लेआम होता है तब ये चुप रहते हैं।  ये हर मसले पर केन्द्र की मोदी सरकार का आदतन भले ही रस्म अदायगी के लिये ही क्यों न हो विरोध तो जरूर ही करते हैं। इससे इन्हें क्या लाभ है, यह समझ से परे की बात है। इनका पूरी तरह से ब्रेन वाश कर दिया गया है स्वयंभू सेक्युलरवादियों  और कठमुल्लों ने। पाकिस्तान में जन्मे और अब कनाडा में निर्वासित जीवन बिता रहे प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार ठीक ही कहते हैं कि कठमुल्लों और जिहादी आतंकवादियों के निहित स्वार्थ के कारण “अल्ला का इस्लाम” अब तेजी से “मुल्ला का इस्लाम” बनता जा रहा है  जिससे विश्व की अमन चैन ख...