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Merge public-sector General-Insurance companies for drastic cut in overheads with working modernised and attractive insurance-plans introduced

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Central government should merge all public-sector companies for General Insurance into one unified company to reduce unnecessary overheads. If one single public-sector Life Insurance Corporation of India (LIC) provides life-insurance cover under so many plans effectively, then one General Insurance Corporation of India can also be formed by merging all public-sector Insurance-companies engaged in General Insurance. Such unified company will be able to compete more effectively with private-sector companies engaged in General Insurance in the manner that no private Insurance-company is presently able to compete with public-sector Life Insurance Corporation of India. Such unified General Insurance Company then should work in modernised way with attractive insurance-plans introduced to comp...

LIC should merge its nearing units and induce centralised utility-services at all units

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LIC of India has many of branches very close to each other in Delhi. Same may be the case outside Delhi. Many such nearing branches exist from the year 1956 when 245 private insurance-companies were nationalised in public-sector Life Insurance Corporation of India, this also being one of the reasons for nearing branches of LIC of India some of which are in very bad condition. While some areas have multiple branches, residents of many localities are deprived of nearing branch of LIC of India. In present era of computerisation and on-line facility of accessibility of all policy-records from any branch, not much office-space and staff are required in branches of LIC of India. LIC of India should make a study of branch-network throughout the country to start with metro-cities, and merge nea...

New 20-rupee coins introduced while 10-rupee coins are not yet popular

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New 20-rupee coins have been introduced even though members of public till now could not be comfortable with 10-rupee coins having been introduced several years back. It is true that life of smaller denomination notes is comparatively smaller. But considering non-popularity of coins of rupees-ten (and now rupees-twenty), Reserve Bank of India (RBI) and central government should rather work on introducing much-awaited plastic currency in these denominations as was announced long back by the then Union Minister of Finance Namo Narain Meena on 12.03.2013 in a written reply in Rajya Sabha. On the contrary, one-rupee notes re-started just for bureaucratic craze of bearing their signatures should be discontinued to be printed as these are not even seen by members of public ever since these were...

Logic of holidays on Gandhi and Ambedkar Jayanti

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Do not declare holiday on my death, instead work an extra day if you really love me- said Dr APJ Abdul Kalam who was People-President of a country where there are too many political holidays on birth and death anniversaries of leaders both at central and state level including like birth anniversaries of Dr BR Ambedkar and Mahatma Gandhi. Earlier UP government then led by Akhilesh Yadav in the year even declared holiday on death-anniversary of Dr BR Ambedkar Every great leader always called people for hard work.  Therefore best tribute to great leaders is to declare their birth and death anniversaries as extra-work day by increasing office-hours by half-an-hour on those special days. Such a bold announcement quoting Dr APJ Abdul Kalam will not attract political resistance in name of vote...

Contrast norms for cremation of unknown poor and rich celebrity

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Controversies apart on degree of torture like tongue-cutting or gang-rape of poor girl from Hathras District of Uttar Pradesh, charge of murder is rightly levelled against the accused. Now system is to be tested if justice will be done fast when even both state Chief Minister and Prime Minister have talked to each other on the matter, or it will take long seven years providing justice like happened in infamous Nirbhaya case. But TV-report (Zee TV DNA 30.09.2020) has shown detailed video-report that cremation of dead body of the victim-girl brought from Delhi was forcibly done by Police setting aside all cries of family-members to take the body first to her home for pre-cremation rituals and cremation not to be done after sunset as per Hindu tradition. However a senior state police-offic...

तो अब बैंकों में होगा सबका काम

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देखिए, यह तो सच है कि विगत कुछ वर्षों में मोदी शासन के दौरान हमारी बैंकिंग व्यवस्था में अनेक कमियां उभर कर सामने आईं हैं। ऐसा तो बिलकुल ही नहीं है कि पहले ये कमियां पहले नहीं थीं I पहले तो कहीं ज्यादा थीं पर पूर्ववर्ती सरकारों की “तुम भी खाओ, हम भी खायें” ही भ्रष्ट नीति के कारण खुलेआम लूटपाट चलती रही I सरकारी, प्राइवेट और कॉ-ऑपरेटिव बैंकों में लेन-देन के नाम पर सरेआम घोटाले होते रहे। बैंकों के डिजिटल होने के बाद घोटाले बढ़े हैं। कुछ बैंक कर्मियों  की काहिली और करप्शन को भी देश ने देखा है। इसका नतीजा यह हुआ कि बैंकों का आम ग्राहक परेशान होता रहा। उसे डर सताने लगा कि क्या बैंकों में पैसा जमा करवाना सही भी रहेगा अथवा नहीं? पर हाल ही में स्टेट बैंक  आफ इंडिया ने एक बाहरी बैंकिंग एक्सपर्ट चरणजीत सिंह अत्रे को अपना चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर  नियुक्त करके एक शुभ संकेत दे दिया है कि अब सरकारी बैंक अपन...

हाथरस का सच – पार्ट 1

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हाथरस की घटना में बलात्कार रूपी मिर्च मसाला बाद में मिलाया गया ताकि प्रदेश सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ा मुद्दा बन सके...(आप माँ का पहला बयान सुनिये) चूँकि अपराधी क्षत्रिय समाज से था इसलिये सरकार के विरोध के लिये इसे वीभत्स रूप मे रचा गया...ये सब रचा जाना किसे किसे सूट करता है, यह आप लोगों ने कल देख ही लिया होगा... अपराधी को कठोरतम सज़ा मिले किंतु सत्य भी सामने आना चाहिये। जिन लोगों ने इस घटना की पृष्ठभूमि में स्वयं को चमकाने की नाकाम कोशिश की और जिस वज़ह से प्रदेश में अराजकता फैल सकती थी...सज़ा तो उन्हें भी मिलनी चाहिये। ये सलेक्टिव पत्रकारिता और राजनीति न चल पायी है और न ही भविष्य में चल पायेगी...जो लोग इस सबके पीछे हैं फिर चाहे वो पत्रकार हों अथवा पार्टियाँ सबका हश्र सामने है...ये सब अब अपने अस्तित्व को बचाने की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में प्रादुर्भा...

फ्रांस के मुसलमान मुसीबत में

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फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्यूएल मेक्रो ने संकल्प किया है कि वे अपने देश में ‘इस्लामी अलगाववाद’ के खिलाफ जबर्दस्त अभियान चलाएंगे। इस समय फ्रांस में जितने मुसलमान रहते हैं, उतने किसी भी यूरोपीय देश में नहीं हैं। उनकी संख्या वहां 50-60 लाख के आसपास है, जो कि फ्रांस की कुल जनसंख्या की 8-10 प्रतिशत है। ये मुसलमान सबसे पहले अल्जीरिया से आए थे। छठे दशक में जब फ्रांस ने अल्जीरिया को आजाद किया तो वहां के मुसलमानों को नागरिकता प्रदान कर दी। फिर तुर्की, मध्य एशिया और अफ्रीका के मुसलमान भी काम की तलाश में फ्रांसीसी शहरों में आ बसे। फ्रांसीसियों को भी इन लोगों की उपयोगिता महसूस हुई, क्योंकि ये लोग मजदूरी के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते थे और फ्रांसीसियों से दबे भी रहते थे। इनमें से ज्यादातर मुसलमानों ने फ्रांसीसी भाषा और संस्कृति को अपने जीवन का अंग बना लिया है लेकिन अभी भी 40-45 प्रतिशत फ्रांसीसी मुसलमा...

सितारों के आगे जहाँ और भी है

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(आज का बॉलीवुड वैसे भी देशभक्ति  और सामाजिक मुद्दों को छोड़कर पूरी तरह नंगा हो चुका है. एकाद फिल्मों को छोड़कर बाकी फिल्मे हम परिवार के साथ नहीं देख सकते. बच्चों की मानसिकता पर नंगापन, नशा और मर्डर जैसे सीन हावी हो रहें है जिनका उनकी असल जिंदगी पर असर हो रहा है. यही कारण है कि आज हमारा समाज पूरी तरह फ़िल्मी हो चुका है. हम जीवन मूल्यों की कदर करना भूल गए है क्योंकि हमें परोसी ही गंदगी जा रही है.) -- डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट, बॉलीवुड और विवादों का एक मजबूत रिश्ता है। चाहे बात कास्टिंग काउच, पतनशीलता, भाई-भतीजावाद, पूर्वाग्रह या उच्च और पराक्रमी के संबंधों के बारे में हो, बॉलीवुड ने निश्चित रूप से वैश्विक मीडिया में लंबे समय तक केंद्र के मंच पर कब्जा कर लिया है। अब, एक बार फिर, मन...

किसान मुद्दा क्या केवल विपक्ष जिम्मेदार है?

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ऐसा पहली बार नहीं है कि सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का विरोध कांग्रेस देश की सड़कों पर कर रही है। विपक्ष का ताजा विरोध वर्तमान सरकार द्वारा किसानों से संबंधित दशकों पुराने कानूनों में संशोधन करके बनाए गए तीन नए कानूनों को लेकर है। देखा जाए तो ब्रिटिश शासन काल से लेकर आज़ादी के बाद आज तक हमारे देश की आधी से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर होने के बावजूद हमारे देश में किसानों की हालत दयनीय है। कर्ज़ में डूबे किसानों की आत्महत्या के आंकड़े खुद इस तथ्य की सच्चाई बयाँ करते हैं। किसानों की इस दयनीय हालात से देश पर सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहने का गौरव प्राप्त करने वाली कांग्रेस अनजान हो ऐसा भी नहीं है। यही कारण है कि वो कांग्रेस जब 70 सालों बाद देश से अपने लिए वोट मांगती है तो सरकार बनने के 100 दिनों के भीतर किसानों की कर्जमाफी का वादा करती है। यह अलग खोज का विषय है ...