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Scientists devise frugal method to extract anti-TB agents from marine microalgae

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New Delhi, Oct. 02 (India Science Wire): Marine Biotechnology Division of National Institute of Ocean Technology (NIOT) has discovered a potential anti-TB agent to fight against tuberculosis (TB) by successfully isolating the biomolecules of pharmacological importance from a marine microalgae Chlorella vulgaris. This is possibly the first time that a promising anti-TB agent from the marine microalgae Chlorella vulgaris is developed during the production of Chlorella Growth Factor (CGF), lipid and lutein through a low cost extraction process. The hot water extract of C.vulgaris is also known as CGF. The study also highlights a cost-effective technology for the production of multiple biomolecules, sequentially from marine micro-alga biomass. Tuberculosis is a highly contagious ...

क्या शिक्षक पात्रता परीक्षा अभ्यर्थियों के साथ सरकारी ठगी है ?

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( बार-बार शिक्षक पात्रता परीक्षा का शिक्षकों की भर्ती के अभाव में क्या औचित्य है? सच में ये बेरोजगार युवाओं को लूटने का सरकारी धंधा बन गया है. हरियाणा में दस-दस बार शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर चुके युवाओं को अभी तक नौकरी की कोई आस नहीं है. इस बात का सबसे बड़ा सबूत है ये है कि सरकार को भर्ती के अभाव में इनकी पात्रता को मजबूर होकर पांच से सात करना पड़ा.  हरियाणा एवं केंद्र की आगामी परीक्षा का बेरोजगारों को लूटने के अलावा कोई औचित्य नहीं है. अगर सरकार को शिक्षकों कि आवश्यकता ही है तो पहले से उत्तीर्ण युवाओं को नौकरी दी जाये. पात्रता अवधि नेट की तरह आजीवन होनी चाहिए.  कोरोना के चलते जब भर्ती परीक्षाओं को रोक दिया है तो शिक्षक पात्रता करवाने के पीछे लूटने के अलावा कौन सी मंशा है. युवाओं को इसका एक सुर में विरोध करना चाहिए.) देश भर में शिक्षकों की भर्ती के लिए पिछले डेढ़ दशक से श...

बाबरी का फैसला जैसा भी है, बर्दाश्त करें

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बाबरी मस्जिद को गिराने के बारे में अब जो फैसला आया है, उस पर तीखा विवाद छिड़ गया है। इस फैसले में सभी कारसेवकों को दोषमुक्त कर दिया गया है। कुछ मुस्लिम संगठनों के नेता कह रहे हैं कि यदि मस्जिद गिराने के लिए कोई भी दोषी नहीं है तो फिर वे गिरी कैसे ? क्या वह हवा में उड़ गई ? सरकार और अदालत ने अभी तक उन लोगों को पकड़ा क्यों नहीं, जो मस्जिद को ढहाने के दोषी थे? जो सवाल हमारे कुछ मुस्लिम नेता पूछ रहे हैं, उनसे भी ज्यादा तीखे सवाल अब पाकिस्तान के नेता, अखबार और चैनल पूछेंगे। इस फैसले को लेकर देश में सांप्रदायिक असंतोष और तनाव फैलाने की कोशिशें शुरु हो गई हैं। मान लें कि सीबीआई की अदालत श्री लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरलीमनोहर जोशी और उमा भारती— जैसे सभी आरोपियों को सजा देकर जेल भेज देती तो क्या होता ? पहली बात तो यह कि इन नेताओं ने बाबरी मस्जिद के उस ढांचे को गिराया है, इसका कोई भी ठोस या खोखला—सा ...

२५ बरस के “इंटरनेट” ने दुनिया समेट ली

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कोरोना के इस दुष्काल में जब आवागमन के सारे साधन बंद थे | लॉक डाउन के दौरान बंद कमरे में में सबसे बड़ी राहत तकनीक के माध्यम से विश्व के किसी भी कौने में उपस्थित अपनों से आसानी संभव वार्तालाप ने जीने की नई आशा का संचार किया | वैसे  विश्व में भारत के श्रेय की गणना कम होती है, कोई माने या माने इसका श्रेय भारत को ही  है | क्योंकि यह बात किसी से छिपी नहीं है भारत में प्रशिक्षित इंजीनियरों और कारीगरों ने इंटरनेट के वैश्विक विस्तार में बड़ी भूमिका निभायी है| इस इंटरनेट तकनीक की उम्र ज्यादा नहीं २५ बरस है, पर  वो सारे विश्व  पर राज कर रहा है | यूँ तो विश्व में संचार और संवाद की अनेक तकनीक दशकों से मौजूद हैं | लेकिन, एक चौथाई सदी में सूचना तकनीक ने हमारे जीवन को जिस हद तक प्रभावित किया है और उस पर हमारी निर्भरता बढ़ी है, वैसा अतीत की किसी और तकनीक के साथ नहीं हुआ| आज इंटरनेट मौसम की जानकारी से लेकर ...

संयुक्त परिवारों के विघटन के कारण

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भारतीय सांस्कृतिक विरासत की आधारभूत केंद्र बिन्दु में संयुक्त परिवार हुआ करता था। लोग सयुंक्त परिवार में रहकर एक दूसरे के प्रति उत्तरदायित्व का बोध करके परिवार को आगे बढ़ाने का कार्य करते थे। धीरे धीरे यह विचारधारा व भाव समय के साथ घटता गया। समाज मे एकल परिवार की संकल्पना तेजी बढ़ती गई।यद्यपि भारत में एकल परिवार का प्रचलन संयुक्त परिवार से अधिक होता जा रहा है जिसके विविध कारण हैं तथापि व्यक्तिपरक चरित्र में वृद्धि,व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यक्तिगत जीवन, व व्यक्तिगत स्वार्थ एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति का कारण है ।इसके आलावा भौतिकता की अंधी दौड़ में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति उन्मुक्तता भी प्रमुख कारण है। समय के साथ ही भारत की परंपरागत परिवार व्यवस्था में संरचनात्मक तथा कार्यात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन हुए हैं।फलस्वरूप भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था कई कारणों से बाधित हुई है। अंग्रेज़ों ...

ढाँचे के ढहने पर आया न्यायिक निर्णय और राजनीति

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जिस दिन बाबरी ढांचा ढहा, ठीक उसी दिन शाम को मैंने दिल्ली में एक प्रेस वक्तव्य दिया ।। यह वह समय था जब मैं स्वयं दिल्ली में पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना पहचाना व्यक्ति था और मेरे लेख आए दिन हिंदी के सभी राष्ट्रीय अखबारों में छपते ही रहते थे।  परंतु वह वक्तव्य उन अखबारों में तो नहीं ही छपा, पाँचजन्य के संपादक श्री तरुण विजय जी जो हमारे मित्र थे ,,उन्होंने भी उसे 10 दिन तक नहीं छापा और जनसत्ता में हमारे मित्र संपादक थे ,,उन्होंने भी नहीं छापा और नवभारत टाइम्स में भी हमारे मित्र ही संपादक थे,, उन्होंने भी नहीं छापा ।। वक्तव्य यह था:- " राष्ट्रों और समाजों के जीवन में इतिहास में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जब लोकमानस का ज्वार उमड़ता है और विवेकशील शासन को ऐसे समय लोकमानस के समक्ष झुक जाना चाहिए । अतः बाबरी ढांचे के ढह जाने को लोक मानस के इसी ज्वार का सहज उमडाव मानकर इस घटना को केवल विधिक ...

Promotional offers through credit-cards and reduction in transaction-charges to be borne by government can promote digital payment in a big way

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People avoid payment through credit-cards because traders demand transaction-charge of two-percent extra especially for commodities with low profit-percent. Otherwise also traders even having sufficient trade-margins usually make excuse that credit-card machine is not working, to save two-percent transaction-charge to be paid by them, this being main reason for failure of converting cash-payments by digital-payments. To promote business and profit through credit-cards, banks offer promotional offers in collaboration with marketing firms for various commodities. Banks even give exchangeable credit-points for use of credit-cards. Best way to promote digital-payment is that Banks may be directed to reduce transaction-charges drastically to say half-percent, and by doing away with all types...

RTI fees and other government-fees requiring to paid through postal-orders should be revised to rupees fifty uniformly to prevent heavy loss in handling postal-orders

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It was only after revelation through RTI application that Department of Posts discontinued postal-orders in outdated denominations like rupees 1, 2, 5 and 7 because of extremely low sale-figure and high handling cost. According to an RTI response, handling cost of a postal-order was rupees 37.45 to Department of Posts alone in the year 2011-12. Handling cost for clearing-operation of banks is even extra. It is highly illogical that public-exchequer may bear such extra-ordinary loss in handling postal-orders in denominations like rupees 10 and 20. Rather it is time that higher denominations like of rupees 100, 200 and 500 may be added to avoid purchase of demand-drafts in submitting various types of fees.   Government-fees below rupees 50 may either be increased or totally abolis...

Regulate pricing of printer-cartridges and standardise for drastic cut in prices

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Largest-selling foreign company Hewlett-Packard (HP) marketing computer-printers in Indian market has Maximum-Retail-Price printed on ink-cartridges exorbitantly high even though its original cartridges available in wholesale markets of Nehru place and Nai Sarak in Delhi at much-much less than printed MRP. Even wholesale price for its ink-cartridges remains much higher around rupees 3000 making some Indian manufacturers marketing re-filled cartridges at around rupees 700 or so. Even re-fill can be done at just rupees 200 or so. But using re-filled ink-cartridges result in termination of warranty. Condition should be imposed to allow manufacture of ink-cartridges in India by desiring Indian companies. Indian companies should also be authorised refill ink-cartridges without affecting warr...

मित्र सा बनता मलेशिया, तो क्या भेजेगा नाईक को भारत

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मोहातिर मोहम्मद के मलेशिया के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद से ऐसा लगने लगा है कि मलेशिया भी अब सीधी पटरी पर आ गया है I या यूँ कहें कि वह पहलेल से ज्यादा व्यावहारिक हो गया है। अब उसने खुलकर भारत विरोध लगभग बंद कर दिया है। मलेशिया के नए प्रधानमंत्री मोहिउद्दीन यासीन ज्यादा समझदार से लगते हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में दिए अपने भाषण में शायद सोच-समझकर मोहातिर से अलग रुख अपनाते हुए कोई भारत विरोधी बात  नहीं की। उनके भाषण का मुख्य फोकस कोविड-19 से दुनिया किस तरह से लड़े, इसी पर रहा जो कि एक सकारात्मक सोच का संकेत देता है । मोहिउद्दीन यासीन के पूर्ववर्ती मोहातिर मोहम्मद तो हर जगह भारत के खिलाफ जहर उगलने से कभी बाज ही नहीं आते थे। मोहातिर ने जिस तरह से कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून ( सीएए) को लेकर बयान दिये थे, वे शर्मनाक थे। उसका भारत ने विरोध भी दर्ज कराया था। भारत ने स्पष्ट र...