हिंदी ही क्यों
अभी सोशल मीडिया पर मेरे आदर्श साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 140वीं पुण्यतिथि पर तमाम लोगों ने श्रद्धांजलि सुमन अर्पित किया था। *मैंने नहीं किया। क्यों?* क्योंकि मैंने ये व्रत ले रखा है कि *जब तक उच्चतम न्यायालय में हिंदी को मान्यता नहीं मिल जाती तब तक देश,काल की सीमाओं से परे,हिंदी को जन जन का कंठाहार बनाने वाले मुंशीजी ही नहीं हिंदी के किसी भी साहित्यकार को श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करने का कोई औचित्य नहीं है वो भी खानापूर्ति के लिए।* आज भारत ऐसे भाषाई संक्रमण काल से गुजर रहा है जिसमें हिंदी तो छोड़िए तमाम उत्तर भारतीय भाषाएं व साहित्य यथा-कश्मीरी, डोगरी,पंजाबी,कुमाउँनी, गढ़वाली,ब्रजभाषा,अवधी,भोजपुरी, मैथिली कुछ कुछ विलुप्तावस्था के कगार पर ही हैं। *आज आप अपने बच्चों से शुद्ध हिंदी अथवा अपने मातृभाषा में बात करके देखिए,व्याकरण तो छोड़िए उच्चारण व शब्दार्थ ही उनके प्राण खींचने के लिए काफी हैं।...