बात केवल आकार की या संख्या की नहीं है ।
कम से कम अभी 20वीं शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्द्ध में जब इसराइल बना, उसके पहले सैकड़ो वर्षों तक वहां उस राष्ट्र का अस्तित्व नहीं था। यद्यपि उस से बहुत पहले निश्चय ही उस क्षेत्र में यहूदी लोग ही थे अर्थात् उनका ही वह राष्ट्र था, यह हम कह सकते हैं।
परंतु शताब्दियों वहां वह राष्ट्र नहीं था।
भारत में निरंतर हिंदू राष्ट्र है।
इसराइल के किन्हीं सम्राटों नरेशों और प्रतापी राजाओं रानियों के विवरण स्वयं इजरायल के लोगों के पास ऐसे नहीं है कि जो बहुत बड़ी संख्या में हों और जिन्होंने निरंतर मुसलमान को मारा हो और फिर जिनमें से कुछ के सहयोग से मुसलमान वहां काबिज हुए हों।
भारत में हजारों ऐसे प्रतापी राजा जागीरदार तथा सम्राट हुए हैं जिन्होंने निरंतर 1000 से अधिक वर्षों तक मुसलमान को बुरी तरह पीटा ,बहुत बुरी तरह पीटा, कुचला ,रौंदा ,मारा ,नष्ट किया परंतु साथ ही कुछ राज्यकर्ता लोग भी जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में धर्म का सहज पालन करने वाले थे,ऐसे बहुत से हिंदू राजा हुए जिन्होंने मुसलमान को केवल इसलिए अपना माना कि कुछ समय पहले तक वे लोग हिंदू थे और उनका खूब साथ दिया।
बिना हिंदुओं के सहयोग के मुसलमान ने कोई भी महत्वपूर्ण युद्ध नहीं जीते हैं( एकाधा अपवाद मिल जाए तो बात अलग है)।
स्वयं छत्रपति शिवाजी महाराज के समय उदय सिंह राठौड़ ,मिर्जा राजा जैसिंग और महाराज जसवंत सिंह औरंगजेब के साथ थे तथा अन्य अनेक अत्यंत बलशाली राजपूत ने औरंगजेब का साथ दिया था ।
यहूदियों ने सदा अपने को एक अलग कौम माना और मुसलमान यद्यपि कभी भी एक कौम नहीं रहे हैं पर लूटमार और हत्या के लिए वह स्वयं को एक कौम कहते रहे हैं।
भारत में स्थिति विगत सौ वर्ष से यह है कि हिंदुओं के अब तक के किसी भी बड़े नेता ने हिंदुओं को मुसलमान से अलग एक कौम नहीं कहा है सिवाय वीर सावरकर के (और वीर सावरकर के पास भी हिंदू राष्ट्र के विषय में कोई सांगोपांग दृष्टि है ऐसा दिखता नहीं या मेरे पढ़ने में नहीं आया)। उनकी दृष्टि से आज के भारत का कोई भी बड़ा राजनेता सहमत नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू समाज को यह आभास दिया था कि वह हिंदुओं को एक अलग कौम या अलग जाति मांनता है, एक अलग समाज मानता है और मुसलमान को अलग ।
परंतु अब वह बदल गया और उसकी बातें चित्र विचित्र है।
हिंदुओं के पास आज भी विशाल शक्ति है, अद्भुत बल है, पराक्रम है, शौर्य है, विद्या है, गुण है ,धन है, सब कुछ है।
पर ,
मजहबी उग्रवादी मुसलमान को मानवता के लिए और हिंदुओं के लिए घातक शत्रु घोषित करने वाला एक भी महत्वपूर्ण राजनेता हिंदुओं के पास आज तक नहीं है।
हिंदू यदि यह घोषणा करते हैं तो मुसलमान का नियंत्रण सहज संभव है।
यहूदी ऐसी घोषणा करने के बाद भी अपने आसपास के करोड़ों मुसलमान का नियंत्रण इस प्रकार नहीं कर सकते।
वस्तुत: यदि हिंदुओं का नेतृत्व इस प्रकार की घोषणा कर दें और मानवता की रक्षा के घोषित प्रयोजन से युद्ध तथा अन्य रणनीतिक दबाव शुरू कर दे तो करोड़ों मुसलमान बहुत शीघ्र घर वापसी कर लेंगे और शेष को नियंत्रित तथा दमित करना बहुत सरल संभव होगा।
इसलिए इजराइल से भारत की तुलना भारत के विषय में असत्य है और इजरायल के विषय में क्रूरता और छल है।
हिंदुओं की स्थिति यहूदियों जैसी नहीं है ।
परंतु हिंदुओं के बीच उनकी एक सुनिश्चित पहचान को घोषित करने वाला कोई नेतृत्व इधर 100 वर्षों से नहीं हुआ ।
गांधी जी को हिंदू नेता मानना या किसी भी भाजपा के नेता को हिंदू नेता मानना असत्य और मूर्खता की पराकाष्ठा है ।
गांधी जी तो स्वयं को हिंदू नेता कहते थे।
परंतु उन्होंने हिंदू नेता जैसा कोई आचरण नहीं किया।
भाजपा के नेता तो स्वयं को कभी हिंदू नेता कहते भी नहीं।
तो जबरन उनको हिंदू नेता कैसे कहा जा सकता है?
यहूदियों के नेता स्वयं को यहूदी नेता कहते हैं।
इजराइल का शासन स्वयं को यहूदी शासन कहता है।
भारत का शासन स्वयं को हिंदू शासन नहीं कहता।
भारत का कोई भी बड़ा नेता स्वयं को हिंदू नेता नहीं कहता।
हिंदू यदि ऐसा कहने लगे तो वह मजहबी उग्रवादियों को कभी भी मसल सकते हैं।
इसीलिए हिंदुओं के द्वारा निरर्थक विलाप अनुचित है और स्वयं को यहूदियों जैसी कठिन स्थिति में बताना असत्य है।
अपने को कमजोर बता कर अपने कर्तव्य से बचना इधर लगभग 100 वर्षों से हिंदुओं के नेताओं की एक रणनीति हो गई है जो अत्यंत कायरता पूर्ण और दया के योग्य आचरण है।
प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज।