श्रीनिवास राय शंकर
कांग्रेस खेमे की बङी साजिश है यह।जिसमे सवर्ण व जातिवादी लोग फंसते जा रहे है।
और सबसे बङी बात कि इसका फायदा खुद कांग्रेस को भी नहीं मिलेगा-ललमुंहे अपना खतम होता एरिया बढाने मे लगेंगे।
और हां ई महारवाद फैलाते लोग अंबेडकरवादी तो हो ही नही सकते-क्योंकि इनके नेता अंबेडकर के ‘विधिक उपचारों के समाधान’ के सिद्धांत के उलट सङक की लङायी से जातीय न्याय पाने की घृणा फैला रहे है-यही वह पेरियारवाद है जो ईसाईयत के साथ गलबहिया तो कर लेता है पर हिंदुओं मे आ रही कोई एकता बर्दाश्त नही कर पाता।
जिनको आप भीमटे समझ रहे है- उनमे से एक भी सच्चा अंबेडकरवादी नही है-वरना वह जातीय लङाई की ओर एक कदम तक नही उठाता।
पर वैसे ही इधर भी राष्ट्रवादियो मे छिपे हुए उच्चजातीय दंभ वाले ‘सवर्णवादी’ भी मराठा सपोर्ट के नाम पर अंबेडकर व दलितों को गरियाने व अपमानित करने का मौका नही चूक रहे हैं।
यही वह विरोधाभास है जिससे हिंदुत्व को बार बार जूझना पङा है व आगे भी पङेगा। इसमे संघ की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।उसे सामाजिक समरसता को और तेजी,व्यापकता और समग्रता से प्राथमिकता पर रखना होगा।ताकि कोई ललमुंहा,पेरियार,सेकुलर-कांग्रेसी खेमा भारत मे जातीय दंगों,संघर्ष और लङाई की कोई साजिश सफलतापूर्वक रचकर मुकाम तक पहुंचा सके।
विश्वसनीय वंचित तबके का नेतृत्व हिंदुत्व की राजनीति मे निकलना चाहिए-ई फर्जी उदित और रामदास,विलास आदि किसी लायक नही हैं और ए सब तो आयातित भी हैं ।
कांग्रेसी खेमा अपनी कमियों को स्वीकारता है और उसका निदान (कैसा भी हो) खोजता है।गुजरात मे तीन तिलंगो को सटीक खोजा,और एमपी व राजस्थान मे पहले से लगा है।
और अब महाराष्ट्र मे दखो सामने ही है।
हमें जातीय नेताओ व जातिगत संघर्ष से निपटने व देश को भी इससे पार ले जाने के लिए राष्ट्रवादी-व हिंदुत्व की राजनीति के खेमे मे मोदी जी के पिछङे नेतृत्व की तरह एक राष्ट्रव्यापी दलित नेतृत्व को भी स्थापित करने की ईमानदार व पुरजोर कोशिश करनी पङेगी।
रामनाथ कोविंद जी को राष्ट्रपति पद पर बिठा देने से उसकी शुरूआत जरूर हो गयी है ,लेकिन जनता के बीच से नेतृत्व गढने का काम तो संघ व भाजपा को अभी करना होगा।
क्योकि अगला चुनाव बिना इस जातीय संघर्ष के साजिश की काट खोजे सर्वश्रेष्ठ तरीके से लङना संभव नही होगा।मोदी जी अपने अकेले कंधो पर पूरे राष्ट्रवाद का बोझ लेकर कब तक आगे बढेंगे।टीम देनी होगी और संविधानवादी- अंबेडकरवादी नेतृत्व भी सामने लाना होगा।400 सीटें तभी मिलेंगी।वरना गुजरात की तरह गिरते पङते किसी तरह 2019 जीते तो राष्ट्रीय सशक्तीकरण के कई बहुप्रतिक्षित मुद्दो का समाधान फिर कैसे निकलेगा?
हमारी सरकारो से यदि 70 साल पुराने समाधान नहीं निकलेंगे तो आम जनमानस फिर हमें बार-2 चुनेगा क्यों? बिलुकुल नही चुनेगा।इसलिए हमे खुद को भी बदलने की जरूरत है तथा ईमानदारी से न्यू इंडिया बनाने मे योगदान देना है।वरना संकल्प सिरफ नारे तक सीमित रह जाएगा।तो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भी फिर दिलों व मन के सपनो मे ही उलझकर निपट जाएगा।