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देश में वृहद आर्थिक स्थिरता पर क्रेडिट सुइस का प्रभाव

बैंकिंग संकट में क्रेडिट सुइस के नाम की चर्चा आम है। अमेरिका के बैंकिंग क्षेत्र में उत्पन्न दिक्कतों (जिनकी शुरुआत सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) की नाकामी से हुई) और क्रेडिट सुइस पर उठ रहे सवालों के बीच कोई संबंध निकाल पाना मुश्किल है। यूँ तो क्रेडिट सुइस की आयु स्विस गणराज्य से महज कुछ ही वर्ष कम है और उसके पतन को समझ पाना कुछ स्तरों पर काफी मुश्किल है। बैंकिंग पर होने वाले प्रभाव से पहले क्रेडिट सुइस क्या है? यह जानिए – क्रेडिट सुइस ग्रुप एजी बहुराष्ट्रीय वित्तीय सेवा कंपनी है। इसका मुख्यालय ज्यूरिक स्विट्जरलैंड में है जहाँ से क्रेडिट सुइस बैंक और अन्य निवेश सम्बंधी वित्तीय सेवाओं का संचालन होता है। कम्पनी शेयर निगम के चार गठकों का संगठित रूप है: निवेश बैंकिंग, निजी बैंकिंग, सम्पति प्रबंधन और साझा सेवा समूह जो विपणन के सेवा उपलब्ध करवाता है और अन्य विभागों का समर्थित करता है।

क्रेडिट सुइस की स्थापना अल्फ्रेड एस्सर ने 1856 में स्वाज़ेर्शी क्रेडिटंस्टाल्ट नाम से की थी। इसकी स्थापना उन्होंने स्विट्जरलैंड रेल सेवा के विकास के लिए पूँजी जुटाने हेतु की थी। इस कम्पनी ने ऋण देना आरम्भ किया जिससे यूरोपीय रेल प्रणाली और स्विट्जरलैंड विद्युत ग्रिड के निर्माण में काफी सहायता मिली। इससे देश की मुद्रा प्रणाली और वित्त पोषित उद्यमिता को भी सहायता मिली। 1900 के दशक में क्रेडिट सुइस ने मध्यम वर्ग के उन्नयन और बचत खातों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण खुदरा बैंकिंग के क्षेत्र में स्थानांतरण आरम्भ कर दिया। क्रेडिट सुइस ने 1978 में ‘फर्स्ट बोस्टन’ के साथ भागीदारी आरम्भ कर दी। ऋणों की वापसी नहीं हो पाने के कारण फर्स्ट बोस्टन वित्तीय संकट में थी, क्रेडिट सुइस ने शेयर नियंत्रित करने के लिए बैंक 1988 में क्रय कर लिया।

अमेरिका के बैंकिंग क्षेत्र में उत्पन्न दिक्कतों (जिनकी शुरुआत सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) की नाकामी से हुई) और क्रेडिट सुइस पर उठ रहे सवालों के बीच कोई संबंध निकाल पाना मुश्किल है। एसवीबी की नाकामी का यूरोप के अन्य बैंकों पर सीमित असर हुआ है क्योंकि इन बैंकों में जमा दर अभी भी अच्छी है, वे भारी भरकम नकदी पोर्टफोलियो के साथ कारोबार कर रहे हैं और उनके पास पर्याप्त पूंजी मौजूद है। इससे ऐसा लगा कि अमेरिका की बैंकिंग व्यवस्था की यह विशिष्ट दिक्कत है जो शायद अमेरिका के उस निर्णय से उत्पन्न हुई कि वह केवल व्यवस्थागत दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ बैंकों का नियमन करेगा। लेकिन यूरोप का एक बैंक इस व्याख्या से अलग नजर आया और वह था क्रेडिट सुइस। बीती कई तिमाहियों से इसकी जमा राशि में तेजी से निकासी हो रही थी और 2022 में इससे133 अरब डॉलर की राशि बाहर गई।

स्विस प्रतिद्वंद्वी यूबीएस की तुलना में कमजोर प्रदर्शन वाली निवेश बैंकिंग शाखा के चलते यह पहले ही अधिक खतरे में था। गत सप्ताह जब सऊदी नैशनल बैंक (क्रेडिट सुइस में बड़ा हिस्सेदार) ने कहा था कि वह फंसे हुए कर्ज के पीछे नकदी नहीं लगाएगा, तब क्रेडिट सुइस के लिए खुद को बचाना मुश्किल हो गया। एसवीबी के पतन से नकदी की कमी की जो आशंकाएं पैदा हुई थीं उन्हें भी आंशिक रूप से जिम्मेदार माना जा सकता है। जरूरी नहीं कि क्रेडिट सुइस का पतन व्यापक संक्रमण दर्शाता हो।

इसके बावजूद क्रेडिट सुइस में हुए घटनाक्रम और इसके अधिग्रहण की प्रकृति का असर दुनिया भर के नियामकों और बैंकिंग क्षेत्र पर पड़ेगा। स्विस प्रशासन ने एक सौदा किया जिसके तहत क्रेडिट सुइस का यूबीएस में विलय किया जाएगा। उनके नजरिये से चूंकि क्रेडिट सुइस की समस्या प्रबंधन के भरोसे से जुड़ी थी न कि खराब परिसंपत्तियों से इसलिए उन परिसंपत्तियों को बचाना और निजी बैंकिंग में स्विस नेतृत्व को बरकरार रखना जरूरी था। सरकार ने गंभीरता दर्शाने के लिए नकदी समर्थन उपलब्ध कराया है। इस बीच चूंकि शायद समय बचाने के लिए क्रेडिट सुइस के शेयरधारकों को अधिग्रहण के लिए मतदान करने का अवसर नहीं दिया गया है। उनकी सहमति सुनिश्चित करने के लिए उन्हें करीब तीन अरब डॉलर देने का वादा किया गया है। परंतु इस सौदे को वित्तीय मदद मुहैया कराने और क्रेडिट सुइस को यूबीएस के पस जोन के बाद उधारयोग्य बनाने के लिए उसके बॉन्ड्स की सबसे निचली श्रेणी में 17.3 अरब डॉलर मूल्य के बॉन्ड को बट्टे खाते डाला गया। वित्तीय संकट के बाद 275 अरब डॉलर के एटी1 बॉन्ड बाजार को इसी तरह डिजाइन किया गया था कि अगर कोई बैंक विफल होने के कगार पर हो तो वह उसे उबारे। इसके बावजूद बॉन्ड धारक नाराज थे कि उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। देखना यह होगा कि क्या एटी1 इस निर्णय को झेल पाएगा।

यह घटनाक्रम दुनिया भर के नियामकों के लिए है, इस प्रकरण में कई सबक छिपे हुए हैं। क्रेडिट सुइस के समक्ष पहले से कई समस्याएं हैं जिनकी वजह से वह नाकाम हुआ। शायद सबसे अहम सबक वह था जिसे मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने हाल ही में रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि परिचालन के मामले में सुरक्षा का मार्जिन निवेशकों और नियामकों दोनों के लिए बहुत अहम है। भारत में जोखिम का सबसे बड़ा स्रोत राजकोषीय है। आने वाले मुश्किल समय में सरकार को वृहद आर्थिक स्थिरता पर ध्यान देना चाहिए।

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