दहेज की सूची का पंजीकरण*
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_-राजेश बैरागी-_
क्या शादी ब्याह में दिए और लिए जाने वाले उपहार आदि की सूची को पंजीकृत दस्तावेज बना देने से वैवाहिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सकता है?शादी ब्याह में उपहार और नकदी के रूप में दिए और वसूले जाने वाले दहेज को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश से संस्थागत रूप मिल गया है।अब दुल्हा-दुल्हन दोनों पक्षों को लिखित में यह घोषित करना होगा कि उनके बीच कितने और कैसे उपहार आदि का लेन-देन हुआ है।हालांकि अभी यह केवल उन शादी ब्याहों पर लागू होगा जो हिंदू विवाह पंजीयक के यहां पंजीकृत होंगे।जो शादी पंजीकृत नहीं होंगी,उनका क्या होगा? और शादी पंजीकरण के समय प्रस्तुत की जाने वाली सूची क्या वैवाहिक संबंधों में दिए जाने वाले उपहार और नकदी की अंतिम सूची हो सकती है? मैं वर्षों से शादी ब्याह के समय समाज के समक्ष गर्व के साथ पढ़ी जाने वाली दहेज की सूची को दो प्रतियों में तैयार करने और दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित करने की व्यवस्था लागू करने का पक्षधर रहा हूं। इससे विवाद के समय लड़की पक्ष द्वारा अनाप-शनाप दहेज देने के आरोपों से वर पक्ष की रक्षा हो सकती है। परंतु दहेज उत्पीड़न और हत्या के मामलों में लिखाई जाने वाली एफआईआर में कुछ पंक्तियां वेदों की ऋचाओं की तर्ज पर स्थाई तौर पर शामिल की जाती हैं। मसलन वर पक्ष शादी में दिए गए दहेज से संतुष्ट नहीं था।वर पक्ष की और से निरंतर और दहेज की मांग की जा रही थी तथा हाल ही में एक मोटर कार अथवा इतने लाख रुपए और दिए गए थे और इसके बाद भी वर पक्ष की हवश शांत नहीं हुई जिसके चलते विवाहिता को मारा पीटा या घर से निकाल दिया गया या मार दिया गया। उच्च न्यायालय का आदेश इस कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। परंतु जिस प्रकार समाज में दहेज लेना और देना शान का प्रतीक है,उस मानसिकता पर यह कितना कारगर होगा?विवाह पंजीकरण और वैवाहिक विवाद की स्थितियां बिल्कुल अलग होती हैं। मुझे लगता है कि अधिकांश विवाहों के पंजीकरण के दौरान दहेज लेने और देने से साफ इंकार किया जाएगा। ऐसे पंजीकृत विवाहों में विवाद के समय विवाहिता बिल्कुल खाली हाथ रह सकती है। हालांकि मेरा सोचना यह है कि विवाह जैसे महान कार्य को विवाद होने की अपवित्र भावना के साथ क्यों किया जाना चाहिए? विवाह में दहेज की अनिवार्यता क्यों होनी चाहिए? उच्च न्यायालय का आदेश इन प्रश्नों पर मौन है।(नेक दृष्टि)
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