पिछले कुछ समय से बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवाओं ने कई राज्यों में किसानों के समक्ष बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। आंकड़़ें बताते हैं कि बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि व तेज हवाओं से क्रमशः मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 5.23 लाख हेक्टेयर से अधिक गेहूं की फसल को प्रभावित किया है। इससे उपज का नुकसान तो हुआ ही है साथ ही साथ किसानों के समक्ष कटाई व फसलों के भंडारण की समस्या भी पैदा हो गई है। इस समय बेमौसम बारिश की मार से आधा भारत बेहाल है और रह-रहकर हो रही बारिश से फसलों का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। ओलों व बर्फबारी से किसानों को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है और इस बार मौसम किसानों का साथ नहीं दे रहा है। फसलों के खराबे से करोड़ों का नुकसान हुआ है। गेहूँ की पकी फसलें तो अधिक बारिश से जमीन पर गिर गई और गेहूँ का दाना बारिश से काला पड़ गया। सरसों की फसलों को भी बहुत नुकसान हुआ है। एक आंकड़़ें के अनुसार राजस्थान में कटी हुई व खेतों में खड़ी जीरे की 80 हजार हैक्टेयर की शेष फसल में 60 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान की आशंका है जिससे 1500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान होने का अंदेशा है। ईसबगोल की फसल को भी काफी हद तक बारिश से नुकसान पहुंचा है।बताया जा रहा है कि ईसबगोल की 18 हजार हेक्टेयर फसल में 300 करोड़ से ज्यादा के नुकसान की आशंका है।जीरा और इसबगोल की फसल खराब होने से करीबन 1700 करोड़ का नुकसान हुआ है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण राजस्थान के अनेक भागों में हर वर्ष बारिश होती है और इससे खेतों में खड़ी व कटी दोनों ही फसलों को बहुत नुकसान पहुंचता है। ओलावृष्टि ने कोढ़ में खाज का काम किया और इससे सरसों को नुकसान पहुंचा। खेतों में पानी भरने से रायड़ा की फसल को भी नुकसान पहुंचा है। खेती ही नहीं अपितु बारिश, ओलों और बर्फबारी के साथ-साथ अंधड़, आंधी, तूफान ने संपूर्ण आम जन-जीवन अत्यंत असहज व अस्त-व्यस्त सा कर दिया है। आज लगातार ऋतु परिवर्तन हो रहा है, बेमौसम बारिश हो रही है। भारतीय कृषि को तो वैसे भी मानसून का जुआ कहा गया है, क्यों कि यहाँ बारिश का वितरण असमान रहता है और कभी भी बारिश हो जाती है और कभी भी सूखा पड़ जाता है। मार्च अप्रैल के आते आते खेतों में खड़ी फसलें पक जाती हैं और कटने के लिए तैयार होती हैं, ऐसे में बारिश, अंधड़,तूफान, ओलावृष्टि होती है तो किसानों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किसानों की पूरे साल की मेहनत मिट्टी में मिल जाती है। इस बार कहीं-कहीं तो बेमौसम बारिश का असर इतना अधिक रहा कि फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई।इस बार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पश्चिमी विक्षोभ के कारण आंधी, ओलावृष्टि और तेज हवा के साथ बेमौसम बारिश हुई है, और ये सभी राज्य गेहूँ की फसल के बड़े उत्पादक राज्य हैं।बारिश ऐसे समय में आई है, जब फसल कटाई के लिए लगभग लगभग पककर तैयार थी। हाल फिलहाल पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के क्षेत्रों में फसलों को हुए नुकसान का जायजा लिया जा रहा है कि वास्तव में कितना नुकसान हुआ है। अंदेशा जताया जा रहा है सबसे ज्यादा नुकसान गेहूँ की फसल को ही हुआ है। नुकसान पचास प्रतिशत तक बताया जा रहा है। आंकड़ों की बात करें तो राजस्थान में 29.65 लाख हेक्टेयर के कुल बोए गए क्षेत्र में से लगभग 3.88 लाख हेक्टेयर गेहूं की फसल बेमौसम बारिश के कारण प्रभावित हुई है। राजस्थान में गेहूं के अलावा सरसों, चना, जौ और अन्य सब्जियों की फसलें प्रभावित हुई हैं। राज्य में बारिश के कारण करीब 1.54 लाख हेक्टेयर सरसों और 1.29 लाख हेक्टेयर चने की फसल को भी नुकसान पहुंचा है। अगेती और पिछेती दोनों ही फसलों को बारिश, अंधड़, ओलावृष्टि से नुकसान पहुंचा है। यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का आधारभूत स्तंभ है। यह क्षेत्र न केवल भारत की जीडीपी में लगभग 15% का योगदान करता है बल्कि भारत की लगभग आधी जनसंख्या रोज़गार के लिये कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है। और यदि भारतीय कृषि का बारिश, ओलावृष्टि, अंधड़,तूफान के कारण खराबा होता है तो इससे निश्चित ही भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता ही है।असमय बारिश, अंधड़, ओलावृष्टि से संपूर्ण उत्तर एवं मध्य भारत में गेहूं, सरसों, चना, इत्यादि की पैदावार बुरी तरह प्रभावित हुई है। हालांकि जो फसलें मौसम की मार से बची हुई हैं, उन्हें भी तब ही सुरक्षित रखा जा सकता है, जब मौसम में बदलाव होगा अथवा उसमें स्थिरता आयेगी। भंडारण, फसलों की कटाई-छंटाई भी अच्छे मौसम में ही संभव होती है। आज धरती की जलवायु, मौसम निरंतर बदल रहा है, मौसम और जलवायु में आमूल चूल परिवर्तन आ गए हैं। हरित ग्रह प्रभाव, अलनीनो का असर धरती के पारिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ा है। सच तो यह है कि बढ़ते ग्रीन हाउस प्रभाव से धरती के तापमान में बढ़ोतरी हुई है और तापमान बढ़ोतरी से बारिश का असमान वितरण है। आज बारिश की अनिश्चितताओं का सामना करने वाली फसलों के बीज तैयार करने की आवश्यकता है। फसलों को बेमौसम बारिश से बचाने के लिए खेतों में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। किसानों को यह चाहिए कि वे समतल भूमि की बजाय खेतों में ऊंची मेड़ बनाकर खेती करें। इसके अलावा, हमारा फसल प्रबंधन भी सही होना चाहिए। वास्तव में, मौसम की मार किसान की कमर ही तोड़ देती है। किसान खेती करके प्रकृति का संरक्षण ही करता है, कभी विनाश नहीं करता। परंतु आज विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश हो रहा है। प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण भी असमय बरसात होती है अथवा कभी होती ही नहीं है, सूखा भी पड़ जाता है। आज पहाड़ों व वनों की कटाई तथा नदियों से रेत का अनवरत खनन प्रकृति के स्वभाव को लगातार बिगाड़ रहा है। जनसंख्या का दबाव शहरों में कूड़े के पहाड़ खड़े कर रहा है। सड़कों पर दौड़ते अनियंत्रित वाहनों से निकलने वाली गैसें पर्यावरण और ऋतुओं को भी प्रभावित कर रही हैं। वहीं प्रकृति से छेड़छाड़ का खमियाजा किसान को भुगतना पड़ रहा है। धरती का संपूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्र गड़बड़ी का शिकार हो गया है और आज हमारी खाद्य शृंखला भी खतरे में पड़ती जा रही है। फसलों पर निरंतर पड़ रही मौसम की मार के कारण आम आदमी पर महंगाई की मार और अधिक बढ़ सकती है। ऐसे में ज़रूरी है कि हमारे कृषि वैज्ञानिक इस समस्या का हल निकालने का प्रयास करें। आज जनसंख्या के बोझ ने राष्ट्र के लिये पहले ही बड़ी चुनौती खड़ी कर रखी है। वास्तव में, आज पौधारोपण को अधिकाधिक प्रोत्साहन, जल संरक्षण तथा कम पानी के प्रयोग वाली फसलें पैदा करने की जरूरत अति अहम् हो गई है। बेमौसमी बरसात तथा ओलावृष्टि से नष्ट फसलों के लिए पर्याप्त मुआवजा आदि की व्यवस्थाएं भी की जानी चाहिए।किसानों को विभिन्न सरकारी योजनाओं और सरकार द्वारा दी जाने वाली विभिन्न सुविधाओं और नवीनतम तकनीक आदि के बारे में भी समय-समय पर जागरूक किये जाने की जरूरत है। फसल बीमा योजना विभिन्न प्राकृतिक संकटों(ओलावृष्टि, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, पाला पड़ना) के जोखिम से क्षतिपूर्ति का एक अच्छा और बेहतरीन उपाय है।
सुनील कुमार महला,
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