भारत को जी-20 समूह की अध्यक्षता मिलना एक वरदान की तरह साबित होता दिखाई दे रहा है। भारत ने हाल ही के वर्षों में कई क्षेत्रों में जो अतुलनीय प्रगति की है, इसे देखकर जी-20 समूह के सदस्य देश आश्चर्यचकित हो रहे हैं। भारत चूंकि जी-20 समूह के सदस्य देशों की विभिन्न बैठकें देश के लगभग समस्त राज्यों के अलग अलग नगरों में आयोजित कर रहा है, इससे देश के समस्त राज्य न केवल इन बैठकों के लिए विशेष तैयारियां कर रहे हैं बल्कि विभिन्न देशों से आने वाले प्रतिनिधि भी इन शहरों में भारत की आर्थिक प्रगति की झलक देख पा रहे हैं।
जी-20 समूह का महत्व इस जानकारी से बहुत स्पष्ट तौर पर झलकता है कि पूरे विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में जी-20 समूह के सदस्य देशों की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत की है। विश्व के 193 देशों का कुल सकल घरेलू उत्पाद 95 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। इसमें, जी-20 समूह के सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था का आकार 75 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। विश्व की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी एवं भारत) को मिलाकर दुनिया की आधी से अधिक अर्थव्यवस्था बनती है। वर्ष 2022 में केवल 18 देशों का सकल घरेलू उत्पाद एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक था। पूरे विश्व का 75 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय विदेश व्यापार जी-20 समूह के सदस्य देशों में होता है। कुल मिलाकर जी-20 समूह के सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया को प्रभावित करती है। अतः स्वाभाविक तौर पर जी-20 समूह का उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से निपटना है एवं जी-20 समूह के सदस्य देशों की जिम्मेदारी वैश्विक स्तर पर वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की है। जी-20 समूह के सदस्य देशों में शामिल हैं – अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रान्स, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, यूरोपीय संघ, टर्की एवं ब्रिटेन।
जी-20 समूह के सदस्य देशों के बीच डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने की दृष्टि से एक विशेष ‘डिजिटल इकॉनामी वर्किंग ग्रुप’ का वर्ष 2017 में गठन किया गया था। पहिले इसे ‘डिजिटल इकॉनामी टास्क फोर्स’ के नाम से जाना जाता था। भारत में इस वर्किंग ग्रुप की प्रथम बैठक 13 फरवरी 2023 को लखनऊ में सम्पन्न हुई थी। इस बैठक में भारत के डिजिटल कायाकल्प के सफर की रूपरेखा प्रदर्शित की गई तथा भारत में डिजिटल पब्लिक आधारभूत ढांचे एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था में साईबर सुरक्षा और डिजिटल स्किलिंग आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई। नैसकोम एवं यूनेस्को द्वारा प्रदान की गई एक जानकारी के अनुसार डिजिटल स्किल गैप की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को वर्ष 2028 तक 11 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के नुक्सान की आशंका है। अतः इस बैठक में वैश्विक स्तर पर डिजिटल अर्थव्यवस्था के महत्व को स्वीकार किया गया।
जी-20 समूह के सदस्य देशों के डिजिटल इकॉनामी वर्किंग ग्रूप की दूसरी बैठक हैदराबाद में दिनांक 17 अप्रेल से 19 अप्रेल 2023 के बीच हुई। इस बैठक में भारत को वैश्विक स्तर पर डिजिटल अर्थव्यवस्था का आधार माना गया इससे भारत की जी-20 अध्यक्षता से वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवथा को बल मिलता दिखाई दे रहा है। भारत में हुई डिजिटल क्रांति पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल के तौर पर पेश की गई। जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद भारत पूरे विश्व में में डिजिटल डिवाइड कम करने के लिए भरपूर प्रयास कर रहा है। इस बैठक में हाई स्पीड मोबाइल ब्रॉड बैंड के उपयोग और प्रभाव पर व्यापक चर्चा हुई है। भारत ने शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय एवं कृषि क्षेत्रों में डिजिटल व्यवस्था को जिस प्रकार सफलतापूर्वक लागू किया है, अन्य देश इस मॉडल को किस प्रकार लागू कर सकते हैं, इस विषय पर भी गम्भीर चर्चा हुई है। साथ ही, ‘कनेक्टिंग द अनकनेक्टेड’, ‘सस्टेनेबल ग्रीन डिजिटल इंफ्रा’ जैसे विषयों को आगे बढ़ाने पर भी सदस्य देशों के बीच सहमति बनी है। भारत में 5जी और 6जी तकनीक का विकास देखने जी-20 समूह के सदस्य देशों की एक टीम भारत के आईआईटी संस्थानों में भी गई है। भारत में डिजिटल क्रांति से समूह के सदस्य देश इतने अधिक प्रभावित हुए हैं कि कई सदस्य देशों ने तो भारत के डिजिटल पेमेंट सिस्टम में अपनी रुचि दिखाई है एवं इस तकनीकि को यह देश अपने यहां भी लागू करना चाह रहे हैं। भारत में डिजिटल पेमेंट सिस्टम, यूपीआई प्लेटफोर्म पर, अब बहुत सफल तरीके से कार्य कर रहा है। यूपीआई ने 376 बैकों को अपने साथ जोड़ लिया है और इस प्लेटफोर्म पर 11.9 लाख करोड़ रुपए के 730 करोड़ लेनदेन किए जा रहे हैं। जुलाई 2015 में भारत ने ‘डिजिटल इंडिया’ पहल की शुरूआत की थी और आज इस स्थिति तक पहुंच गया हैं।
याद कीजिए भारत में एक दौर हुआ करता था जब सामान्य नागरिक उत्पाद खरीदने के लिए दुकानों में जाया करते थे। बेहतर विकल्प की तलाश एवं कम कीमत पर सामान खरीदने के उद्देश्य से एक दुकान से दूसरी दुकान और दूसरी दुकान से तीसरी दुकान के चक्कर लगाते थे। उत्पादों की खरीद के पूर्व बैकों में जाकर राशि निकालनी होती थी, ताकि नकद राशि अदा कर उत्पाद खरीदें जा सकें। परंतु भारत में डिजिटल क्रांति के बाद अब नागरिक विभिन्न उत्पाद चंद मिनटों में खरीद लेते हैं, वह भी मोबाइल फोन पर। कल्पना कीजिए कि आज देश में एक व्यक्ति एक सामान खरीदने के लिए यदि 6 से 8 घंटे का समय बचा रहा है तो 140 करोड़ की आबादी कितना समय बचा पा रही है। बचाए गए इस समय का सार्थक उपयोग किया जाकर देश के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है। साथ ही इससे ‘डिजिटल इंडिया’ को भी सहारा मिलेगा और वैसे भविष्य के आर्थिक सफर की बुनियाद भी यही है। भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था के चलते बैंक तो जैसे नागरिकों की जेब में समा गई है, क्योंकि इंटरनेट एवं मोबाइल की सुविधा से नागरिक 24 घंटे x सात दिन, रुपए को अपने खाते से दूसरे के खाते में हस्तांतरित कर सकते हैं। डिजिटल प्लेटफोर्म पर उत्पादों की कीमत एवं गुणवत्ता के बारे में जानकारी हासिल कर उत्पाद को खरीद सकते हैं। साथ, ही, यह सुविधा तो अब देश के दूर दराज़ के ग्रामीण इलाकों में भी उपलब्ध हो गई है।
बैकिंग सुविधाओं को नागरिकों को प्रदान करने के मामले में तो भारत यूपीआई के माध्यम से बहुत आगे निकल आया है और आज यूरोपीयन विकसित देश भी भारत की ओर देख रहे हैं। डिजिटल आधारभूत ढांचा विकसित करने के लिए भारत में काफी समय से मेहनत से काम किया गया है। ऑप्टिकल केबल का जाल गावों तक बिछाया गया है, 5G की तकनीकी आने के बाद इसे भी देश के दूर दराज ग्रामीण इलाकों में ले जाया जा रहा है, ब्रॉड बेंड की सुविधा को गांव-गांव तक पहुंचाया गया है, ताकि इंटरनेट की उपलब्धता गांव स्तर तक बनी रहे। ग्रामीणों को इन सुविधाओं का उपयोग करने हेतु प्रेरित किए जाने के प्रयास भी किया गए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने तो नागरिकों को जागरूक करने के लिए बाकायदा एक अभियान ही चलाया कि डिजिटल प्लेटफोर्म पर किस प्रकार बैंकिंग व्यवहार किए जाने चाहिये।
केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग के हितार्थ चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ डिजिटल अर्थव्यवस्था के चलते करोड़ों नागरिकों को बहुत आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा है। उक्त योजनाओं के अंतर्गत दी जा रही सब्सिडी आदि का पैसा भी सीधे ही लाभार्थियों के खातों में जमा हो जाता है, जिससे आय के रिसन को पूर्णतः समाप्त कर लिया गया है। जनधन योजना के अंतर्गत खोले गए बैंक खाते, आधारकार्ड एवं मोबाइल को जोड़कर वित्तीय समावेशन के लक्ष्यों को प्राप्त किये जाने के सफल प्रयास भी किए गए हैं। साथ ही, अधिकतम सरकारी सेवाओं को भी डिजिटल प्लेटफोर्म पर लाया जा रहा है ताकि नागरिकों को और अधिक सुविधाएं प्रदान की जा सकें।
श्री एंगस मेडिसन दुनिया के जाने माने ब्रिटिश अर्थशास्त्री इतिहासकार रहे हैं। आपने विश्व के कई देशों के आर्थिक इतिहास पर गहरा रिसर्च किया है। भारत के संदर्भ में आपका कहना है कि एक ईस्वी के पूर्व से लेकर 1700 ईस्वी तक भारत पूरे विश्व में सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित था। अब डिजिटल अर्थव्यवस्था के माध्यम से भारत पुनः वैश्विक स्तर पर एक महाशक्ति के रूप में अपने आप को स्थापित कर सकता है। इसकी प्रबल सम्भावनाएं दिखाई देने लगी हैं। भारत में पिछले 9 वर्षों के दौरान किए गए कई आर्थिक उपायों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था का इंजन अब तेज़ गति से पटरी पर दौड़ने लगा है। लगभग समस्त अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान भी लगातार बता रहे हैं कि आगे आने वाले समय में भारत में आर्थिक विकास की दर पूरे विश्व में सबसे अधिक रहने वाली है।
साथ ही, कोरोना महामारी के दौरान भारत ने टेली शिक्षा, टेली मेडिसिन, वर्क फ्रोम होम के माध्यम से पूरे विश्व के सामने डिजिटल अर्थव्यवस्था का एक सफल उदाहरण प्रस्तुत किया है। भारत में स्किल इंडिया कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षित जनबल तैयार किया जा रहा है, जो विश्व के अन्य देशों में भी अपनी सेवाएं प्रदान करने के लिए तैयार है। अतः भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पूरे विश्व को नेतृत्व प्रदान कर सकता है। भारत आगे बढ़ेगा तो पूरी दुनिया आगे बढ़ेगी। इसकी गवाही इतिहास भी दे रहा है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक