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ये सुनवाई का अधिकार है क्या सुप्रीम कोर्ट के जजों को ?

कॉलेजियम के खिलाफ और NJAC बहाल करने के लिए वकील Mathews J Nedumpara की याचिका से भाग क्यों रहे हैं चंद्रचूड़ जी –
यदि सुनना ही है तो 11 जजों की बेंच सुने –

सुप्रीम कोर्ट के वकील Mathews J Nedumpara ने कॉलेजियम की कानूनी वैधता को चुनौती देते हुए NJAC, 2014 को बहाल करने के लिए नवंबर, 2022 में याचिका लगाई थी जिसे CJI चंद्रचूड़ ने सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया परंतु सुनवाई की तारीख तय नहीं की जबकि Mathews 4 बार उनके सामने इसे Mention कर चुके हैं –

दूसरी तरफ बार बार कॉलेजियम पर सुनवाई तो टालते हुए चंद्रचूड़ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे कोई बच्चा स्कूल न जाने के लिए जिद पकड़ कर भागता फिर रहा हो – अब 24 अप्रैल, 2023 को चंद्रचूड़ ने कहा है कि सुनवाई के लिए तारीख दी जाएगी लेकिन कब दी जाएगी, यह भगवान् ही जानता है –

CJI चंद्रचूड़ ने इस याचिका पर एक बार Mention किये जाने पर एक सवाल खड़ा किया था कि 1993 की सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच के फैसले से शुरू हुई कॉलेजियम की व्यवस्था को क्या एक Writ Petition के जरिए चुनौती दी सकती है?

यदि 9 जजों की बेंच के फैसले ने कॉलेजियम को जन्म दिया था तो 2015 में 5 जजों की तत्कालीन CJI खेहर की 5 जजों की बेंच को कॉलेजियम के पक्ष में फैसला देने का क्या अधिकार था जबकि NJAC, 2014 का कानून संसद ने सर्वसम्मति से पास किया था और 16 राज्यों की विधान सभाओं ने उसका अनुमोदन किया था, उसके बाद ही राष्ट्रपति ने कानून पास किया था –

कॉलेजियम जजों की नियुक्ति जजों द्वारा करने का एक गैर संवैधानिक और गैर कानूनी Procedure है जो अदालतों में भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार और जजों की माफियागिरी को चरम पर ले जा रहा है – आज हर तरह के अपराधी अदालत से संरक्षण प्राप्त कर रहे हैं, गिने चुने परिवारों की धूम है न्यायपालिका में जबकि राजनीति में “परिवारवाद” की चर्चा तो होती है परंतु न्यायपालिका में “परिवारवाद” भी चरम पर है –

2015 के फैसले में गलत कहा गया कि संविधान के Basic Structure के अनुसार जजों की नियुक्ति की जिम्मेदारी केवल न्यायपालिका की है जबकि ये शक्तियां राष्ट्रपति में निहित हैं जिसके लिए चीफ जस्टिस से Consultation हो सकती है, लेकिन सहमति जरूरी नहीं है –

वर्ष 2015 में 5 जजों की बेंच का NJAC कानून को ख़ारिज करना भी असंवैधानिक था और अब यदि जज ही सुनवाई करते हैं तो उनका फैसला भी असंवैधानिक होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जज स्वयं Stakeholder / Interested Party पहले भी थे और अब भी होंगे – उन्हें न तो पहले न्याय की उम्मीद की जा सकती थी और न अब की जा सकती है –

NJAC, 2014 कानून में न्यायपालिका की शक्तियों का किसी तरह हनन नहीं किया गया था, अलबत्ता चोर की दाढ़ी में तिनका जरूर मिला था – NJAC में जजों की नियुक्ति के एक समिति का गठन होना था जिसमें सदस्य थे –

-चीफ जस्टिस;
– चीफ जस्टिस के बाद सुप्रीम कोर्ट 2 अन्य वरिष्ठ जज;
– केंद्रीय कानून मंत्री ; और
– 2 प्रतिष्ठित व्यक्ति जिनका चयन प्रधानमंत्री, CJI और विपक्ष करेंगे-

इसमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता कैसे खतरे में आ गई थी ये वो 4 जज ही जाने जिन्होंने अपने अहंकार में 125 करोड़ जनता का फैसला ठोकरों में उड़ा दिया –
अब क्योंकि CJI चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के फैसले से कॉलेजियम को जन्म देने की बात कही है तो उसके अनुसार Mathews J Nedumpara की याचिका पर 11 जजों की बेंच सुनवाई के लिए गठित की जाये –

जजों को जजों की नियुक्ति का अधिकार होना चाहिए या नहीं, इसमें कोई कानूनी पचड़ा नहीं है और इसलिए 11 जजों की बजाय 11 प्रबुद्ध व्यक्तियों की बेंच फैसला करे कि कॉलेजियम ख़त्म कर NJAC बहाल किया जाए या नहीं – यह अपने तरह का अलग प्रयोग होना चाहिए – 11 प्रबुद्ध जनों के नियुक्ति प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता के समिति करे –
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश

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