भारत के नागरिकों का पिछले कुछ वर्षों से निवेश को लेकर बैंकिंग क्षेत्र मुख्य आकर्षण का केंद्र नहीं रहा है, इसके बावजूद भारतीयों की घरेलू बचत लगातार बढ़ रही है। आर्थिक निवेश के कई दूसरे स्रोत लोगों की प्राथमिकता में शामिल हो रहे हैं। कोरोना दुष्काल के दौरान बीमा की तरफ आकर्षण तेजी से बढ़ा। भारत में जीवन बीमा आर्थिक निवेश का सदैव प्रमुख स्रोत रहा है। प्रत्येक भारतीय को जीवन बीमा में आर्थिक निवेश का विचार पारिवारिक सोच के रूप में प्राप्त होता है।
जब आर्थिक बचत की बात होती है, तो व्यक्ति के दिमाग में दो प्रश्न एक साथ उठते हैं। पहला, शायद प्रति व्यक्ति खर्चा कम हो रहा है, इसलिए आर्थिक बचत बढ़ रही है। दूसरा, प्रति व्यक्ति वित्तीय आय बढ़ रही है, जिससे आर्थिक बचत भी बढ़ रही है। ये दोनों प्रश्न परस्पर विरोधाभासी हैं। पहला प्रश्न नकारात्मक रुख लिए है, तो दूसरा सकारात्मक सोच का है। इन सबके बीच एक बात और चकित करती है कि भारतीयों का आर्थिक बचत करने का रुझान बड़ी तेजी से बदल रहा है।
भारतीयों के रुख को किसी एक पक्ष पर अनुमानित करना बड़ा मुश्किल है। मसलन, पिछले एक दशक में घरेलू बचत का बैंकिंग जमाओं में हिस्सा बड़ी तेजी से गिरा है। यह बात वर्षों से चली आ रही इस सोच को एकाएक दरकिनार कर देती है कि भारतीयों के लिए आर्थिक निवेश की पहली प्राथमिकता बैंकों में जमा करना है। 2011 के दशक तक घरेलू बचत का अट्ठावन प्रतिशत बैंकों की जमाओं में सम्मिलित होता था, जो कि 2020-21 में घट कर अड़तीस प्रतिशत ही रह गया। यह आंकड़ा तेजी से घट कर पच्चीस प्रतिशत के स्तर पर आ गया। इसका एक कारण बैंक की जमाओं पर मिलने वाले ब्याज में तेजी से आई गिरावट है। दूसरा कारण कोरोना प्रभावित वर्षों में प्रति व्यक्ति आय में आई गिरावट है।
कोरोना दुष्काल के दौरान चिकित्सा बीमा की तरफ लोगों का रुझान एकाएक तेजी से बढ़ा, पर यह स्थायी रूप नहीं ले पाया। अगले वित्तवर्ष में ही इसमें कमी देखी गई। बीमा व्यवसाय के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है क्यों भारत में आज भी बीमा का चलन बहुत कम है? कोरोना दुष्काल के वर्ष में जरूर यह 3.8 प्रतिशत से एकाएक बढ़ कर 4.2 प्रतिशत हो गया था। गौरतलब है कि बीमा का वैश्विक औसत आंकड़ा सात प्रतिशत है और कई विकसित देशों- अमेरिका, ब्रिटेन आदि- में तो यह दस प्रतिशत से ऊपर रहता है। बीमा कंपनियों को इस संबंध में जरूर सोचना चाहिए कि भारत में प्रीमियम की लागत इस संदर्भ में अधिक तो नहीं है?
भारतीयों की आर्थिक बचत का रुख बड़ी तेजी से भारतीय पूंजी बाजार की तरफ हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021-22 में दस लाख नए निवेशक भारतीय पूंजी बाजार से जुड़े हैं, जिन्होंने म्यूचुअल फंड में सिप (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के माध्यम से आर्थिक निवेश किया।इसमें एक वर्ष के दौरान ही घरेलू बचत का चार प्रतिशत से अधिक रुझान भारतीय पूंजी बाजार की तरफ देखने को मिला है। इसमें ‘हिस्सेदारी’ में प्रत्यक्ष निवेश तथा म्यूचुअल फंड दोनों एक मुख्य विकल्प के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
नए दौर के स्टार्टअप में ‘पेटीएम’ और ‘जोमैटो’ के आइपीओ ने भी खूब चर्चा बटोरी। शायद यही मुख्य कारण था कि कोरोना दुष्काल काल में जब आर्थिक मंदी का दौर था, तब भी भारतीय पूंजी बाजार ने लगातार बढ़त बनाए रखी, क्योंकि उस समय बड़ी संख्या में नए निवेशक भारतीय पूंजी बाजार से जुड़े। उस दौरान वैश्विक निवेशकों की पहली प्राथमिकता भी चीन के बजाय भारत ही रहा। यह भी देखने को मिला कि भारतीयों का पेंशन तथा भविष्य निधि (प्रोविडेंट फंड) में भी निवेश के प्रति रुझान खूब बढ़ा है।
एक बात, जो आर्थिक बचत के आंकड़ों के विश्लेषण के बीच में एक विकट स्थिति को इंगित करती है, कि भारतीय समाज में इन दिनों महंगी कारों और महंगे घरों (फ्लैट्स) की खरीदारी तेजी से बढ़ रही है। इससे इस चिंता को बल मिलता है कि कहीं भारत में अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ रही आर्थिक असमानता ही तो नहीं इस आर्थिक बचत की तेजी का प्रतीक है?