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Editorial

ये संघर्ष,अंतर्द्वंद्व व संभावनाएं

मोदीत्व एक बड़े संघर्ष व अंतर्द्वंद से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व, विचारधारा और कार्ययोजनाओं को चार सालों की जनस्वीकृति के बाद भी पार्टी, संघ परिवार, सरकार व न्यायपालिका सब जगह चुनौती मिल रही है। मोदीत्व का दर्शन निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के चारो ओर खड़ा किया गया है जिसमें बाकी सभी की सोच और कद बौने हो जाते हैं इसलिए पार्टी व अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को यह अखरता है। मोदीत्व प्रखर राष्ट्रवाद की बात करता है इसलिए सेकुलरपंथियो व अन्तर्राष्ट्रवादियो को अखरता है। मोदीत्व विकास, सुशासन व पारदर्शिता की बात करता है, इसलिए भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहो, न्यायाधीशों , मीडिया, व्यापारी व कॉर्पोरेट समूहों को अखरता है। मोदीत्व कट्टरता का विरोध करता है और नरम हिंदुत्व की बात करता है इसलिए सभी धर्मों के कट्टरपंथियों को अखरता है। मोदीत्व देश के समग्र व तीव्र विकास की बात करता है किंतु इसके लिए विदेश निवेश, आयात व प्रवासी भारतीयों के सहयोग की बात करता है इसलिए पूर्ण स्वदेशी की अवधारणा वालो को खटकता है। मोदीत्व अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गुटबाजी को बढ़ाबा देता है और खुलकर अमेरिकी पाले में बैठा है इसलिए चीन,पाक व रूस सहित पड़ोसी देशों को खटकता है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपना दर्शन, आक्रामक व आत्मकेंद्रित कार्यशैली जहाँ उन्हें बहुसंख्यक जनता में लोकप्रिय बनाए हुए है वहीं संघ परिवार व सरकार के तीनों अंगों के साथ ही देश के समृद्ध वर्ग के बड़े हिस्से के साथ ही अल्पसंख्यक में उनके प्रति नफरत व आक्रोश की भावना भी है।
मोदी मानते हैं कि उनका संघर्ष कांग्रेसी संस्कृति से है जो पिछले कई दशकों में सभी राजनीतिक दलों,सरकार व समाज में बुरी तरह घर कर गयी है और यह संस्कृति है लूट व यथास्थितिवादिता की संस्कृति। यह है पश्चिम से मोह व अपने देश को हल्का लेने की संस्कृति। यह है ये केन प्रकरेण सत्ता हासिल कर भ्रष्टाचार व घोटाले की संस्कृति। नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद सरकार व समाज के हर वर्ग में अन्तरचेतना जगाई व उनको बदलव के लिए प्रेरित किया, विकल्प सुझाए, उन पर यकीन किया व क्रमिक विकास की एक प्रक्रिया शुरू की। सबका साथ : सबका विकास जिसे मोदी अपना मूलमंत्र मानते हैं यह जमीनी स्तर पर कई बार उतना प्रभावी नहीं दिखता जैसी मोदी अपेक्षा रखते हैं।उनके तमाम नियंत्रणों के बाद भी उनके मन्त्रिमण्डल के अनेक मंत्री ही दिशा भटक गए जिनमे से कुछ को उन्हें हटाना पड़ा कुछ के कद छोटे करने पड़े तो कुछ के मंत्रालय बदलने पड़े। नोकरशाही से काम करवाना आज भी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है, वह बेलाग है और प्रधानमंत्री कार्यालय की अपरिमित शक्तियों के बीच वह मंत्रियों व सांसदों की खुली उपेक्षा व उनके आदेशों की अवहेलना करती है। न्यायपालिका तो रोज नए स्वांग रचती है, हाल ही में उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने जिस प्रकार प्रेसवार्ता कर मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगाए वह तो घटियापन की पराकाष्ठा है। देश के विपक्षी दल लगातार बस विरोध के लिए विरोध करते हैं व समाज विभाजन की राजनीति ही करते रहते हैं। उनके पास देश चलाने की कोई रचनात्मक कार्ययोजना ही नहीं है। संघ परिवार का कट्टरवादी व स्वदेशी विचारधारा वाला वर्ग भी मोदी सरकार के अनेक निर्णयों व कार्यशैली से खुश नहीं है व उनके विरुद्ध मुखर होता जा रहा है। ऐसे विरोधों व नकारात्मक वातावरण में सरकार चलाना आसान नहीं है। इसके बाद भी मोदी लगातार परिवर्तन के पथ पर अग्रसर है। सरकार की नीतियों का राष्ट्रीयकरण, हर जगह राष्ट्रवादी सोच के लोगों की नियुक्ति, समाज मे राष्ट्रवादी साहित्य, भारतीय सोच व संस्कृति को बढ़ाबा देने वाले कार्यक्रमों की बाढ़ सी आयी हुई है और समाज मे एक वर्ग ऐसा तैयार होता जा रहा है जो भारत केंद्रित सोच रखने लगा है व जिसके मानस में भारत तत्व घर करने लगा है। यह देश के लिए अच्छे संकेत हैं।
समुद्र मंथन की जो प्रक्रिया मोदी सरकार ने शुरू की है इसने देश को आंदोलित किया हुआ है। हर व्यक्ति की सोच व दृष्टिकोण में गहन व व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं। देश सतत विमर्श व विश्लेषण की अवस्था मे है। साथ जी जो नीतिगत बदलाव् व दीर्घकालिक विकास योजनाओं का आरंभ हुआ था वे धीरे धीरे ही सही परिणामों की ओर पहुंचने लगी हैं। माना जा रहा है कि बर्ष 2018 के अंत मे लोकसभा चुनाव हो जाएंगे यानि पूरा वर्ष संघर्ष व अंतर्द्वंद्व और गहरे होंगें किंतु इसके पश्चात जिस भारत का उदय होगा वह निश्चित रूप से वैचारिक स्थिरता वाला होगा। हमारी संवैधानिक संस्थाओं व राजनीतिक दलों की सोच का भारतीयकरण होना तय है। हमारे कारपोरेट वर्ग की मानसिकता का भारतीयकरण होना तय है और हमारे मीडिया व संचार माध्यमों की सोच का भारतीयकरण होना तय है । लोकसभा चुनावों के बाद का समय इंडिया और भारत के बीच की खाई कम करने व अंततः पाटने का समय है इसलिए राजनीतिक स्थिरता के लिए सोचें व वोट करें। मोदित्व को सुधारें मगर नकारे नहीं। यह संक्रमण काल है, हमारी बेचैनी अपनी जगह ठीक है, यह प्रसव पीड़ा है नए भारत के उदय की। इस पीड़ा के दर्द में रास्ता न भटके व आने वाले अच्छे समय को रास्ता दे।

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