तो कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री G20 में राष्ट्रपति के रात्रिभोज में नहीं जा रहे हैं। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने साफ झूठ बोल दिया कि उनके हेलिकॉप्टर को उड़ने की अनुमति नहीं दी गई। छत्तीसगढ़ में बैठे भूपेश बघेल ने भी कह दिया कि दिल्ली तो अब नो फ्लाई जोन है, तो अब वो कैसे जा सकते हैं। जबकि ये नो फ्लाई जोन मुख्यमंत्रियों के लिए है ही नहीं। वो अभी भी दिल्ली जा सकते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इस डिनर की जगह अपने एक जिले के किसी कार्यक्रम को प्राथमिकता दे रहे हैं। और ये सब हो क्यों रहा है? क्योंकि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इस भोज में आमंत्रित नहीं किया गया है। इस दुख को राहुल गांधी अपने यूरोप दौरे पर भी जाहिर कर रहे हैं कि खड़गे को आमंत्रित करना चाहिए था। इस दुख की घड़ी में वो ये बताना भूल गए कि इस भोज में न केवल कांग्रेस, बल्कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी आमंत्रित नहीं किया गया है। यह आमंत्रण सिर्फ मुख्यमंत्रियों के लिए है, किसी राजनीतिक पार्टी के किसी भी पदाधिकारी के लिए नहीं है। इस दुख में राहुल एक झूठ भी बोल जाते हैं कि खड़गे 60% आबादी के प्रतिनिधि हैं। इससे ज्यादा निराशाजनक क्या होगा कि 60% आबादी के प्रतिनिधि की जगह मोदी खुद जबरिया प्रधानमंत्री बने बैठे हैं। ऐसे में एक राजनीतिक पार्टी को खड़गे का मन रखने के लिए उन्हें अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर काम चलाना पड़ रहा है। अच्छा, दूसरी तरफ हेमंत सोरेन, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार वगैरह इस भोज में शामिल हो रहे हैं क्योंकि उनको पता है कि करीब 30 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों और देश के कुछ सबसे बड़े उद्योगपतियों से एक साथ एक जगह पर मिलना इनमें से कइयों के लिए वंस इन अ लाइफटाइम ऑपर्च्युनिटी है और इस मौके का उपयोग वो अपने राज्यों की बेहतरी के लिए कर सकते हैं। मगर कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की निष्ठा अपने राज्यों के प्रति न होकर गांधी परिवार और उनके कृपापात्र अध्यक्ष के प्रति है। बाकी 99.99% कांग्रेसियों का भी यही हाल है। तभी तो वन नेशन वन इलेक्शन के लिए बनाई जा रही कमिटी में जिन अधीर रंजन चौधरी को इसलिए शामिल किया जा रहा था क्योंकि वो लोकसभा में नेता विपक्ष (माने जाते) हैं, वो अधीर रंजन कमिटी का हिस्सा बनने से ये कहते हुए इनकार कर देते हैं कि उनकी जगह खड़गे को इस कमिटी में होना चाहिए। मुझे लगता है कि भारत सरकार को गांधी परिवार और उनके कृपापात्रों को संवैधानिक कुनबे का आधिकारिक दर्जा दे ही देना चाहिए। क्योंकि गलती इनकी नहीं है। इनको तो इस तरह के असाधारण ट्रीटमेंट की लत लग गई थी। ऐसे में अगर इनको थोड़ा सा भी सामान्य ट्रीटमेंट दिया जाता है तो ये अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और ऐसी हरकतें करने लगते हैं। –