Shadow

वैश्विक बैंकिंग : त्रासदी या प्रहसन

अँतत: बीती 27 मार्च को फर्स्ट सिटिजन बैंक (एफसीबी) ने सिलिकन वैली बैंक (एसवीबी) का अधिग्रहण कर ही लिया। जिसके लिए उसे अमेरिकी फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (एफडीआईसी) से वित्तीय सहायता मिली थी। मे एक मित्र ने पूछा है कि एसवीबी का पतन क्यों हुआ? इसका एक संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि बीते कई वर्षों के दौरान अमेरिका में नियामकीय मामलों में खतरे के निशान धुंधले पड़े हैं। जैसे जुलाई 2010 का डॉड-फ्रैंक वॉल स्ट्रीट सुधार और उपभोक्ता संरक्षण कानून को मई 2018 में इकनॉमिक ग्रोथ, रेग्युलेटरी रिलीफ ऐंड कज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट पारित करके काफी नरम कर दिया गया।

वैसे एसवीबी का पतन लीमन ब्रदर्स की तरह नहीं हुआ, बल्कि एसवीबी के पास लंबी परिपक्वता सीमा वाले बॉन्ड का भारी भरकम भंडार और अल्पावधि की उधारी वाले लोन पोर्टफोलियो थे। एसवीबी की व्यक्तिगत जमा में करीब 90 प्रतिशत एफडीआईसी की 2,50,000 डॉलर की बीमा सीमा से अधिक के थे। संक्षेप में कहें तो एसवीबी तथा अमेरिका के अन्य मझोले बैंकों ने बहुत बड़ा जोखिम उठाया था। इससे उनकी देनदारियों और परिसंपत्तियों के बीच परिपक्वता का भारी अंतर उत्पन्न हो गया था।

खबरों के मुताबिक करीब 4,700 अमेरिकी बैंक जिनके पास करीब 10.5 लाख करोड़ डॉलर की संपत्ति है, वे ऐसे ही व्यवहार के कारण नकदी की दिक्कत का सामना कर रहे हैं। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व इन बैंकों को उनकी दीर्घावधि की परिसंपत्तियों के अनुपात में ऋण प्रदान कर रहा था । अब निष्क्रिय हो चुका है।ज्यूरिख मुख्यालय वाला क्रेडिट सुइस सन 1856 में स्थापित किया गया था ताकि रेलवे के निर्माण के लिए जरूरी फंड उपलब्ध करा सके। हाल के वर्षों में क्रेडिट सुइस को बार-बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि वह निवेश बैंकिंग में परिसंपत्ति प्रबंधन के अपने मूल काम से दूर हो गया था। अंत में 19 मार्च, 2023 को स्विस सरकार के जोर देने पर यूबीएस ने 3.2 अरब डॉलर की राशि खर्च करके क्रेडिट सुइस को भी खरीद लिया। जानकारी के मुताबिक स्विस सरकार यूबीएस को राशि देने पर सहमत हो गई है। क्रेडिट सुइस के पतन की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंगलैंड और जी7 देशों के अन्य केंद्रीय बैंकों ने अपने प्रयासों को समन्वित किया ताकि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में डॉलर की आपूर्ति बढ़ाई जा सके।

बैंकों के लिए उच्च तयशुदा ब्याज दर वाली परिसंपत्तियों को फंड करना हमेशा से लुभावना रहा है जहां फ्लोटिंग ब्याज दर उधारी कम होती है। एसवीबी ने भी ऐसा ही किया और उसकी उधारी पुनर्मूल्यांकित हुई क्योंकि फेडरल रिजर्व, यूरोपीय केंद्रीय बैंक और बैंक ऑफ इंगलैंड ने पिछले 12 महीनों में मानक ब्याज दरों में तेजी से इजाफा किया।सवाल यह है कि क्या नियामकों ने बैंकों समेत वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों को करदाताओं के पैसे के साथ यह जोखिम उठाने दिया? इस बात को फिल्म वॉल स्ट्रीट के एक दृश्य से समझा जा सकता है जिसमें माइकल डगलस द्वारा शानदार तरीके से निभाया गया गॉर्डन गेक्को का किरदार वित्तीय क्षेत्र के बारे में आत्मसंतुष्टि की भावना के साथ कहता है, कि वित्तीय क्षेत्र में ‘लालच अच्छा है।’ उसी फिल्म के सीक्वल वॉल स्ट्रीट 2 में गेक्को का किरदार कहता है, ‘लालच अब कानूनी है।’ भले ही ये बातें मखौल के रूप में कही गई हों लेकिन मोटे तौर पर यह बात अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप में वित्तीय क्षेत्र के कई दिग्गजों के आचरण पर लागू होती हैं।

अब एक सवाल यह भी है कि क्या भारत के निजी या सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों के वरिष्ठ प्रबंधकों को इसका अनुसरण करना चाहिए? गड़बड़ियों की घटनाएं, उदाहरण के लिए इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (आईडीबीआई), येस और आईसीआईसीआई बैंकों के प्रमुखों द्वारा की गई गड़बड़ियां व्यक्तिगत लालच का परिणाम थीं। यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की स्थापना सरकारी की बहुलांश हिस्सेदारी वाले संस्थानों मसलन भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और सरकारी बैंकों की फंडिंग की मदद से की गई थी। यूटीआई ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) और एनएसई ने धीरे-धीरे निजी क्षेत्र का दर्जा हासिल कर लिया और उनके शीर्ष प्रबंधन को सालाना 5 से 8 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाने लगा। अधिक बड़े और व्यवस्थागत दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थान मसलन भारतीय स्टेट बैंक और एलआईसी के प्रमुखों को यूटीआई एएमसी और एनएसई के प्रमुखों की तुलना में बहुत कम भुगतान किया जाता है।

यह तथ्य है कि भारत के सरकारी बैंकों को कई अवसरों पर करदाताओं का धन दिया गया वहीं इन बैंकों का कर्ज चुकाने में नाकाम रहे कर्जदार अनिवार्य तौर पर बड़ी निजी कंपनियां थीं। आमतौर पर उन पर व्यवस्थित जोखिम के प्राथमिक स्रोत के रूप में अंगुली नहीं उठाई गईं। दुर्भाग्यवश ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता भी निजी क्षेत्र के कर्जदारों तथा कम क्षमतावान न्यायाधीशों के कारण धीरे-धीरे कम धारदार होती जा रही है। धीरे-धीरे यह मान्यता गहरी हो गई कि निजी क्षेत्र के सूचीबद्ध वित्तीय संस्थानों में लालच से संचालित गलतियां होने की संभावना कम होती है क्योंकि शेयर बाजारों का अनुशासन अतिरिक्त जोखिम लेने पर लगाम लगाएगा। अदाणी समूह की कंपनियां इस बात का उदाहरण हैं कि बाजार कैसे शेयरों के मूल्यांकन के मामले में गलत हो सकता है।

गैर जिम्मेदार वित्तीय क्षेत्र की जोखिम लेने की प्रक्रिया को कम करने का इकलौता तरीका है इस पेशे में मौद्रिक क्षतिपूर्ति को कम करना। इतना कम कोई भी केवल तीन-चार वर्षों में कई पीढि़यों का धन न जुटा सके। कार्ल मार्क्स ने कहा था, ‘इतिहास खुद को दोहराता है, पहले त्रासदी के रूप में और फिर प्रहसन के रूप में।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *