-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
(30 सितम्बर 2023 को भारतीय धरोहर द्वारा आयोजित स्वर्गीय गुरूदत्त जी के सम्मान समारोह में दिये गये वक्तव्य का सार)
पितृपक्ष के इस प्रथम दिन में हमारे पूज्य पितरों को श्रद्धांजलि देने की परंपरा के क्रम में भारतीय धरोहर ने संस्कृति की रक्षा के लिये किये गये पुरूषार्थी लोगों के सम्मान समारोह का एक क्रम चलाया है, जिसमें आज स्वर्गीय श्री गुरूदत्त जी को श्रद्धांजलि देेते हुये गौरव का अनुभव हो रहा है। वार्षिक सम्मान पितृपक्ष में ही दिया जाये, ऐसी कोई परंपरा नहीं है परंतु इस बार का संयोग जो जुट गया है, वह स्वयं में प्रसन्नता की बात है। भारतीय धरोहर के सभी न्यासियों और संरक्षकों तथा अधिकारियों और कार्यकर्ताओं सहित सभी आयोजकों कों साधुवाद।
1945-50 ईस्वी के बाद हिन्दी में जो भी प्रसिद्ध लेखक हुये उनमें विज्ञान के विधिवत अध्येता दो ही प्रसिद्ध हैं, स्वर्गीय श्री गुरूदत्त और नाटककार-कवि श्री बिपिनकुमार। परंतु श्री बिपिनकुमार को भारतीय शास्त्रों को कोई ज्ञान नहीं था। इस प्रकार भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान परंपरा दोनों के जानकार एक ही प्रसिद्ध लेखक हुये हैं और वे हैं श्री गुरूदत्त। जिन्होंने 198 उपन्यास तथा 17 दार्शनिक ग्रंथ, 3 राजनैतिक अध्ययन, 2 नाटक तथा 13 संस्मरण एवं 8 अन्य रचनायें भी लिखी हैं। इस प्रकार उनकी 241 रचनायें हैं। उनके उपन्यास 5 वर्गों में बांटे जा सकते हैं – ऐतिहासिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, राजनैतिक और महाभारत पर आधारित।
उन्होंने वेदमंत्रों के अर्थ और देवताओं के स्वरूप को अपने सम्प्रदाय आर्य समाज के अनुसार सर्वसाधारण के लिये सुगम भाषा में प्रस्तुत किये जिससे अन्य सम्प्रदायों की मतभिन्नता सहज है। परन्तु वह कार्य स्वयं में बहुत उपयोगी है।
इसके साथ ही उन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न,मुण्डक, माण्डूक, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर आदि महत्वपूर्ण उपनिषदों के सरल भाष्य भी प्रस्तुत किये। जो इस अवधि में किसी भी हिन्दी कथाकार, उपन्यासकार ने नहीं किया है।
उनका जीवन वृत्ति-वैविध्य से भरपूर है तथा उनकी सृजन शीलता भी सर्जना-वैविध्य से भरपूर है। उनका सघन लेखन कार्य 1942 ईस्वी से प्रारंभ हुआ और जीवन के अंत तक वे सृजनरत रहे। 8 दिसम्बर 1894 को उनका जन्म हुआ और 8 अप्रैल 1989 को उनका प्रयाण हुआ। सृजन शीलता की 47-48 वर्षों की सुदीर्घ अवधि में उन्हांेने उच्च स्तरीय प्रभूत लेखन किया। वे विज्ञान और सनातनशास्त्र दोनों के विधिवत अध्येता रहे। विज्ञान का उन्होंने विधिवत अध्ययन किया और साथ ही प्लेटो, एरिस्टाटिल, कांट, जॉन स्टुअर्ट मिल, हर्बर्ट स्पेंसर तथा हेराल्ड लास्की का उन्होंने मूल रूप से अध्ययन किया। जबकि हिन्दी के बहुत से लेखक केवल इन यूरोपीय विद्वानों के आंशिक उद्धरणांे से ही उत्तेजित और उत्प्रेरित होते रहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने वेदों, उपनिषदों, पुराण, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, इतिहास ग्रंथ, स्मृतिशास्त्र एवं अन्य शास्त्रों का विस्तार से अध्ययन किया। स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद आदि का भी उन्होंने अध्ययन किया। सम्पर्क की दृष्टि से वे बड़े सौभाग्यशाली रहे और उनका सम्पर्क भाई परमानंद, स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपतराय, महात्मा हंसराज, पंडित भगवददत्त, स्वामी आनन्द, सीताराम गोयल, विजयराघवाचार्य, सिद्धेष्वर अवस्थी, रामनारायण मिश्र आदि से रहा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में वे 52 वर्ष की अवस्था में 1946 ईस्वी में आये। यद्यपि उसके प्रशंसक वे 1936-37 ईस्वी से ही थे। क्योंकि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा हिन्दुओं की रक्षा के अनेक प्रसंग उनकी जानकारी में आते रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर नेहरू जी द्वारा राजनैतिक भय के कारण प्रतिबंध लगाया गया तो इसके विरूद्ध सक्रिय हुई जनाधिकार समिति में प्रमुख सदस्यों के रूप में वे तथा पंडित मौलिचन्द्र शर्मा थे। बाद में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के परामर्श और संघ के द्वितीय सरसंघचालक की सहमति से बने भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से वे थे। 1952 ईस्वी से 1964 ईस्वी तक वे उसके सक्रिय सदस्य रहे। परंतु बाद में उन्हें वहाँ नीति से अधिक रणनीति और कूटनीति का वर्चस्व दिखा तो एक निश्छल देश भक्त के रूप में उन्होंने इस प्रपंच से दूरी बना ली।
वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रभक्ति के मुक्त प्रशंसक थे। परंतु साथ ही उनका मत है कि संघ में तानाशाही के तत्व हैं और वे नीति की मर्यादारेखा को लांघ जाने वाली तानाशाही को कई बार छूते हुये लगते हैं, इसलिये राष्ट्र के हित में उसकी प्रशंसा करते हुये भी उससे दूरी बना लेनी उन्हें आवश्यक लगी। उनके विचारों का विस्तार बहुत है और प्रारंभ में हम उनके बीज शब्दों (की वर्ड्स) के द्वारा उनके वैचारिक क्षितिज का विस्तार देखेेंगे।
विराट अध्ययनशीलता, प्रशांत विवेक और निर्भय सर्जना: श्री गुरूदत्त जी
श्री गुरूदत्त जी के वैचारिक क्षितिज को बीज शब्दों (की वर्ड्स) के रूप में नौ-नौ पदों की
निम्नांकित पांच सरणियों में रखा जा सकता है –
1 धर्म, राष्ट्र, देश, हिन्दू, हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू धर्म, सामान्य धर्म, भारत, आर्य
2 आत्मा, परमात्मा, संस्कार, पूर्वजन्म के संस्कार, हिन्दू संस्कार, शास्त्राध्ययन के संस्कार, हिन्दू शास्त्र, शाश्वतवाणी, सत्कर्म/सदाचार के संस्कार
3 वेद, उपनिषद, शास्त्र, भगवद्गीता, पुराण, इतिहास, महाभारत, रामायण, स्मृतिशास्त्र
4 पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, कर्म, कर्मफल, पुरूष, पुरूषार्थ, पुरूषार्थ चतुष्टय, भाग्य, अदृश्य
5 विज्ञान, प्रकृति, सृष्टि, जगत, आकाश, अंतरिक्ष, ब्रह्मांड, मंत्र-विज्ञान
-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज