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हिण्डनबर्ग का जलवा

अमेरिका में पाँच व्यक्तियों के समूह से निर्मित, एक ऐसी संस्था जिसका मुखिया कभी एक एम्बुलेंस का ड्राइवर हुआ करता था, उन्होंने अपनी सृजनात्मकता और कार्य के प्रति समर्पण की भावना से आज सम्पूर्ण विश्व में अपनी लोकप्रियता का परचम लहराया है। भारतीय दृष्टिकोण के आधार पर यदि इस संस्था का आंकलन किया जाए तो वह विश्व की कम्पनियों का लेखापरीक्षा करने में स्वयं को पूर्णतया ईमानदार और निष्पक्ष सिद्ध कर रही है। यह संस्था सोशल मीडिया से प्राप्त आंकड़ो के आधार पर ही किसी भी कम्पनी का ऑडिट करती है, जिसके अन्तर्गत इस संस्था के सदस्य निरन्तर कम्प्यूटर पर कार्य करते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार करते हैं। आज विश्व के निवेशकों का इस संस्था की कार्यप्रणाली पर एक अटूट विश्वास बन चुका है।
कोरोनाकाल में भारत की कम्पनियों का प्रदर्शन सम्पूर्ण विश्व की तुलना में सर्वाधिक रहा है। सम्पूर्ण विश्व की दृष्टि, भारत की अचम्भित करने वाली प्रगति पर ही केन्द्रित थी। अडानी ग्रुप के चर्तुमुखी विकास पर ही सर्वाधिक निवेशकों की दृष्टि केन्द्रित थी, परन्तु हिण्डनबर्ग ने 27.01.2023 को अपनी एक रिपोर्ट में अडाणी समूह की लेखा प्रणाली के सन्दर्भ में एक अचम्भित करने वाली टिप्पणी दी। इस रिपोर्ट के आधार पर इस समूह को भारी ऋण के बोझ से दबा पाया गया। जैसे ही ये रिपोर्ट सार्वजनिक हुई, अडाणी समूह के शेयर में 35 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आ गई, 24 घंटे के अन्तराल में इनके शेयरों 17.38 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, और उन्हें मात्र एक दिन में 1.60 लाख करोड़ का नुकसान हो गया। जिससे अडानी समूह आज विश्व के तीसरे (3) पायदान से लुड़ककर छब्बीसवें (26) पायदान पर आ गये हैं। फलस्वरूप अडानी समूह से जुड़े निवेशकों को अत्यधिक आर्थिक क्षति हुई है। इससे उनको मानसिक आघात एवं पारिवारिक कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। इस कांड से वर्ष 1992 में हर्षद मेहता द्वारा किए गए घोटाले का पुनः स्मरण हो रहा है, जब हर्षद मेहता द्वारा लचीले बैंकिग सिस्टम का लाभ उठाकर, उनसे ऋण लेकर उनके पैसे शेयर बाजार में लगा दिए जाते थे। हर्षद की वास्तविकता सामने आने पर शेयर बाजार में अत्यधिक गिरावट दर्ज की गई और उसे ऋण देने वाले कई बैंक ठप हो गये थे एवं कई निवेशकों को आर्थिक क्षति से व्यथित होकर आत्महत्या भी करनी पड़ी थी।
वास्तविकता यह है कि देश के आर्थिक विकास के लिए, निवेशको का भी विकास होना अत्यंत आवश्यक है, परन्तु भारतीय वित्त बाजार में पारदर्शिता बनी रहे, इसका मुख्य दायित्व वित्तीय संस्थाओं का है। विगत वर्षों में ये वित्तीय संस्थाएं बिना किसी मापदंड के प्रभावी व्यक्तित्व के दबाव में आकर किसी भी व्यापारी को ऋण दे देती हैं और इसमें सर्वाधिक नुकसान छोटे निवेशकों का होता है, जो अपना एक-एक पैसा बचाकर, किसी भी कम्पनी में निवेश इस आशा से करते हैं कि उनको बुरे समय में आर्थिक लाभ होगा, परन्तु परिणाम इसके विपरीत प्राप्त होते हैं। अतः सरकार द्वारा बैंकिग कार्यप्रणाली पर गम्भीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।

*योगेश मोहन*

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