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यदि लैंगिकता के आधार पर स्त्री-पुरुष का निर्धारण नहीं होगा तो कितनी अव्यवस्था फैल जाएगी

इसका शायद अनुमान भी यह टिप्पणी करने वाले जजों को नहीं है।
कल कोई पुरुष कहेगा कि
● मैं ऐसा मानता हूंँ कि मैं स्त्री हूँ और मेट्रो ट्रेन में महिला डिब्बे में सवार हो जाएगा, तो उसे किस कानून के तहत रोकेंगे?
● किसी ने कहा कि वह तो स्वयं स्त्री मानता है… कोर्ट उसे इस आधार पर छोड़ देगी कि ‘यह स्त्री है’, दूसरी स्त्री का बलात्कार नहीं कर सकती?
● यदि कोई पति-पत्नी तलाक के लिए अदालत पहुंचे, पत्नी भरण-पोषण मांगा और पति ने कह दिया कि
‘मैं तो स्वयं को स्त्री मानता हूँ।’ तो क्या होगा?
चूंकि स्वयं सुप्रीमकोर्ट कह चुका है कि लैंगिकता के आधार पर स्त्री-पुरुष का निर्धारण नहीं हो सकता, तो भला उस महिला को खुद को महिला मानने वाले पति से भरण-पोषण कैसे दिलाएगा?
● यदि कोई पुरुष कहेगा कि ‘मैं स्वयं को गर्भवती स्त्री मानता हूँ, इसलिए मुझे मातृत्व अवकाश दो, तो क्या उसे मातृत्व अवकाश मिल जाएगा?
जज साहब ये SSC की रीजनिंग नहीं है जो आपने कहा दिया कि
सभी स्त्रियाँ पुरुष हैं और सभी पुरुष स्त्रियाँ हैं।
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253

समलैंगिक शादी की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने अजीब बात की ।
कहा बायोलॉजिकल पुरुष जैसी कोई चीज नहीं होती, गुप्तांग आपके जेंडर को परिभाषित नहीं करते, एक पुरुष भी खुद को अगर महिला की तरह Identify करना चाहे तो कर सकता है ।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कह रहे हैं कि बायोलॉजिकल पुरुष का मतलब और कुछ हो नहीं सकता, बायोलॉजिकल पुरुष मतलब बायोलॉजिकल पुरुष ही है लेकिन मुख्य न्यायाधीश मानने को तैयार ही नहीं हैं । बच्चा पैदा होता है तो गुप्तांग के आधार पर ही कहते हैं कि लड़का है या लडक़ी लेकिन मुख्य न्यायाधीश कह रहे हैं कि नहीं, ऐसा नहीं ही सकता ।
उल्टे चंद्रचूड़ साहब ने सवाल किया क्या शादी के लिए अलग-अलग लिंग का होना जरूरी है ?
फिर कहा “मैं हूँ सुप्रीम कोर्ट का इंचार्ज , मैं करूँगा फैसला , प्रक्रिया क्या होगी ये बताने की अनुमति किसी को नहीं दूँगा।”
इन जज साब का भारतीय संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है, ये बस यूरोप अमेरिका के जजमेंट पढ़कर प्रेरणा लेते है, और जिस हिसाब से समलैंगिक शादी को ले कर आक्रामक हैं, सुनवाई के अंत तक किसी ब्रदर जज के गले में माला डाल कर बाहर आ सकते हैं।
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253

साभार…
यदि जननागों के आधार पर महिला पुरुष की परिभाषा समाप्त कर दी गई तो महिलाओं के लिए बनाए गए अधिकार और सुरक्षा के क़ानून की उपयोगिता समाप्त हो जाएगी।

पुरुष ख़ुद को महिला बताकर महिलाओं के खेल में हिस्सा लेंगे, उनके बाथरूम टॉयलेट का इस्तेमाल करेंगे। बलात्कार करने के पश्चात यह कहकर की वह महिला हैं इस कारण बलात्कार के क़ानून के दायरे से बाहर हैं, बच जाएँगे। बच्चा गोद लेने के लिए बनाए क़ानून में भी गड़बड़झाला हो जाएगा। पुरुष स्वयं को महिला घोषित करके बच्चों को गोद ले लेंगे। महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर पुरुष स्वयं को महिला घोषित करके क़ब्ज़ा कर लेंगे।
महिलाओं के छात्रावास में पुरुष ख़ुद को महिला बताकर रहेंगे और बलात्कार आदि होने पर भी जेंडर फ्लूईडीटी बताकर ख़ुद को बचने का भी रास्ता खोज लेंगे।

चीफ़ जस्टिस द्वारा पश्चिम की नक़ल करने की जो ललक है उससे पहले उन्हें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि समाज के .001% लोगों को अधिकार देने के लिए समाज के 50% लोगों के अधिकार एवं सुरक्षा पर डाका तो नहीं डाल रहे??
यह एक गंभीर विषय है। इस विषय पर मजाक करने के बजाय गंभीरता से लोगों को, विशेष रूप से महिलाओं को इस विषय से होने वाले असहज स्थिति एवं हानि के बारे में जाग्रत करना है।

समलैंगिकता समाज में हमेशा से रही है। ऐसे लोगों से हमारी सहानुभूति है लेकिन समलैंगिकता को प्रमोट करना शुद्ध रूप से समाज के साम्य को बिगाड़ने का बामपंथी प्रयास है। समाज में लोग अंधे भी होते हैं और लंगड़े भी। हमारी उनके साथ सहानुभूति होती है लेकिन उसके लिए हम मोतियाबिंद का आपरेशन और पोलियो का टीकाकरण बंद नहीं करते।

समलैंगिकता को गाली देने के पक्ष में मैं क़तई नहीं हूँ। लेकिन इसको प्रमोट करना बिलकुल मूर्खतापूर्ण हरकत है।
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश

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