भारत, विश्व में उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा केन्द्र बिन्दु है, इसी कारण आज सम्पूर्ण विश्व के उद्योगपतियों की निगाहें भारत पर केन्द्रित हैं। ये उद्योगपति, भारत में निवेश हेतु कोई न कोई अवसर सदैव ही तलाशते रहते हैं। इसी कारण आज भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वृद्धि हो रही है और यह वृद्धि ही हमारी अर्थव्यवस्था को विश्व में 5वें से तीसरें पायदान पर लाने की सबसे बड़ी कुंजी है। मोदी जी के द्वारा की गई घोषणा का क्रियान्वन आगामी 5 वर्षो में सम्भव हो सकता है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था से ऊपर के पायदान पर मात्र 2 राष्ट्र – जापान व जर्मनी ही विराजमान हैं। उपरोक्त दोनों दोनों देशों की अर्थव्यवस्था की वार्षिक वृद्धि दर मात्र 1-2 प्रतिशत ही है, अतः तृतीय पायदान पर भारत के स्थापित होने की पूर्ण सम्भावना बनी हुई है।
पिछले 7 दशक में भारत की जीडीपी जो वर्ष 1947 में 2.70 लाख करोड़ थी, वो वर्ष 2023-24 तक 301.75 लाख करोड़ अर्थात् 3.75 ट्रीलियन हो गई है, तब डालर का मूल्य 3 रूपये 30 पैसे था, जबकि आज 83 रूपये से अधिक हो चुका है। दूसरे रूप में देखा जाए तो स्वतंत्रता के समय तो हमारी साक्षरता वृद्धि दर मात्र 12 फिसदी वार्षिक थी, जबकि आज 75 प्रतिशत पहुँच चुकी है। यदि पिछले 70 वर्षो में भारत की प्रगति का आंकलन किया जाए तो हमें बहुत अधिक प्रसन्न होने का कोई कारण नहीं दिखाई देता, क्योंकि वर्ष 1979 में हमारी और चीन की जीडीपी एक समान थी। इसके पश्चात चीन ने लगभग 10 प्रतिशत की दर से अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया और अब वह भारत की तुलना में बहुत आगे निकल चुका है। वर्ष 2022 में जहाँ भारत की प्रतिव्यक्ति आय 2388 डालर थी, वहीं चीन 12720 डालर प्रतिव्यक्ति का स्तर प्राप्त कर चुका था। चीन की सुदृढ़ होती अर्थव्यवस्था से, भारत के अर्थशास्त्रियों को गम्भीर चिंतन करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था 5वें पायदान पर तो पहुँच गई, परन्तु उसका वास्तविक लाभ कुछ प्रतिशत जनता को ही प्राप्त हो रहा है, जिनकी आय में असीमित वृद्धि होती जा रही है। भारत की प्रगति का संतुलित वितरण आम जनता के मध्य असफल रहा है। आज भारत की 85 करोड़ जनता 2 वक्त की रोटी जुटाने में भी असमर्थ है, जोकि मोदी जी की कृपा से प्रतिदिन अपनी भूंख को शान्त करती है। देश के सर्वांगीण विकास हेतु आगामी सरकार को बेराजगारी, चिकित्सा, शिक्षा, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, न्याय प्रणाली, संवैधानिक संस्थाओं की राजनैतिक प्रभाव से मुक्ति, बाल स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा, कृषि का तकनीकी विकास, प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश आदि विषय पर विशेष ध्यान देना होगा। राजनेताओं का कार्य योजना बनाना होता है और उस योजना को क्रियान्वित करना और सुविधापूर्ण बनाना अधिकारियों का कार्य है। भारत की विडम्बना है कि सरकार के प्रशासनिक अर्थशास्त्री, भारत की प्रगति को जनता के मध्य न्यायपूर्ण वितरण करने की श्रेष्ठ नीति बनाने में सफल नहीं हो पाए है। जब भारत की प्रगति का लाभ यहाँ की सम्पूर्ण 140 करोड़ जनसंख्या को मिलने लगेगा तो भारत के लिए भी चीन के सदृश 10 प्रतिशत की प्रगति को प्राप्त करना असम्भव नहीं होगा, जिसकी भारत को नितान्त आवश्यकता है। ईश्वर से प्रार्थना है कि भारत को कोई श्रेष्ठ प्रशासनिक अर्थशास्त्री मिले, जिससे यहाँ की भूखमरी और बेरोजगारी दोनों पर अंकुश लग सके और भारत की अर्थव्यवस्था आगामी 5 वर्षों में ही तीसरें पायदान पर सुशोभित होकर मोदी जी का स्वप्न पूर्ण हो।
योगश मोहन