वर्ष 2024 में प्रस्तावित आगामी लोकसभा चुनावों के सन्दर्भ में अत्यधिक जोर शोर से राजनीतिक हलचल होनी प्रारम्भ हो गयी है। भारत के अधिकांश राजनीतिक दल दो खेमों में विभाजित हो गए हैं। पहला खेमा भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए है जिसमें 38 पार्टियों का समावेश किया जा रहा है। सम्भावना यह है कि शीघ्र ही यह संख्या बढ़कर 40 तक हो सकती है। दूसरा खेमा कांग्रेस नेतृत्व वाला I.N.D.I.A. है, जिसके अन्तर्गत 26 पार्टियों का समावेश है। ऐसी सम्भावना है कि ज्यों-ज्यों चुनाव का समय पास आता जायेगा, त्यों-त्यों 26 में से 1-2 पार्टियाँ मोदी जी से प्रभावित होकर दूसरे खेमें में पहुँच जाएं। परन्तु इतना निश्चित है कि चुनाव से पूर्व जनता के समक्ष दो लुभावने विकल्प अवश्य प्रस्तुत होंगे। अब ये जनता पर निर्भर करेगा कि वर्ष 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में कौनसे विकल्प को प्राथमिकता देगी। परन्तु इतना अवश्य है कि आगामी लोकसभा चुनाव चाहें वह नवम्बर-दिसम्बर अथवा मार्च में हो, अत्यधिक मनोरंजक होगा।
कांग्रेस वाले I.N.D.I.A. गठबंधन के समक्ष दो प्रमुख समस्याएं हैं, जिनमें प्रथम समस्या यह है कि प्रधानमंत्री पद का दावेदार किसको बनाया जाएगा। दूसरी प्रमुख समस्या यह है कि यदि विजयश्री होती है तो उसे प्राप्त करने के पश्चात अपने घटक दलों की इच्छा अभिलाषा को किस प्रकार से शांत किया जाएगा। इसके विपरीत एनडीए के पास एक सर्वमान्य एंव निर्विवाद चेहरा मोदी जी का है। यदि निष्पक्ष रूप से आकंलन किया जाए तो I.N.D.I.A. गठबंधन के पास मोदी जी के समकक्ष कोई अन्य चेहरा दिखाई नहीं पड़ता, क्योंकि विगत 9 वर्षों में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को अत्यधिक ऊँचाई तक पहुँचा दिया है, जिसके समकक्ष पहुँचने के लिए विरोधी पक्ष के उम्मीदवार को अभी बहुत अधिक प्रयास करना होगा।
I.N.D.I.A. गठबंधन के समक्ष जो अन्य चुनौती विद्यमान है, वो मायावती और औवेसी की है, जो दोनों ही गठबंधनों से अलग हैं और इन दोनों ही दलों का मुस्लिम वोटरों पर बहुत अच्छा प्रभाव है। ये कोई सीट जीत पायेंगे अथवा नहीं ये तो भविष्य पर ही निर्भर करेगा, परन्तु ये दोनों ही दल I.N.D.I.A. गठबंधन को हानि अवश्य ही पहुँचायेगे और आगामी चुनावों में एनडीए की जीत का रास्ता प्रशस्त करने में अपना सहयोग अवश्य ही देंगे। कांग्रेस पार्टी की कर्नाटका और हिमाचल प्रदेश राज्य में जीत ने उस पार्टी के लिए एक संजीवनी का काम किया है और उसके कार्यकर्ताओं के होंसले वर्तमान में काफी बुलंदी पर हैं। ये एनडीए के लिए कुछ परेशानी पैदा कर सकते हैं।
एनडीए को अपनी कर्नाटक में हुई हार के कारणों पर गम्भीरतापूर्वक मंथन करना होगा। यदि वो हार के कारण दूसरे प्रदेशों में भी जीत के बाधक हैं तो उनका शीघ्रातिशीघ्र निराकरण करना होगा, साथ ही जनता एवं अपने कार्यकर्ताओं की परेशानियों का भी निराकरण अविलम्ब करना होगा।
*योगेश मोहन*