आर.के. सिन्हा
भारत को मेडिकल टूरिज्म के हब के रूप में स्थापित करने को लेकर जो कोशिशें बीते कुछ सालों से चल रही हैं उनके सुखद परिणाम अब सामने आने भी लगे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्रीपद नाईक ने हाल ही में गोवा में आयोजित जी-20 से जुड़े के एक कार्यक्रम में बताया कि पिछले साल भारत में 14 लाख विदेशी पर्यटक मात्र इलाज के लिए भारत आए। जाहिर है, इनमें वे भी शामिल हैं जो रोगियों के साथ आए थे। यह आंकड़ा ही साबित करता है कि भारत की मेडिकल सुविधाओं को लेकर दुनिया में भरोसा बढ़ रहा है।
यह तो अभी शुरुआत है। अभी तो भारत को बहुत सी मंजिलों को पार करना है। आप दिल्ली,चंडीगढ़,मुंबई वगैरह के किसी भी प्रतिष्ठित अस्पताल में खुद जाकर देख लें। वहां आपको अनेक विदेशी रोगी और उनके परिजन बैठे मिल जाएंगे। इनमें अफ्रीकी और खाड़ी देशों के रोगियों की तादाद भी खासी रहती है। भारत में ओमान, इराक, मालदीव, यमन, उज्बेकीस्तान, सूडान वगैरह से भी रोगी आ रहे हैं। अगर भारत-पाकिस्तान के संबंध सुधर जाए तो हर साल सरहद के उस पार से भी हजारों रोगी हमारे यहां इलाज के लिए आने लगेंगे। कुछ सीरियस मरीज तो अब भी आते हैं। कहना नहीं होगा कि इन रोगियों के भारत में आने से देश को अमूल्य विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। जब भी एक रोगी भारत आता है तो उसके साथ दो-तीन रोगी की देखभाल के लिए सहयोगी भी आते हैं। ये महीनों होटलों में रहते हैं। भारत में हृदय रोग, अस्थि रोग, किडनी, लिवर ट्रांसप्लांट, आंखों और बर्न इंजरी के इलाज के लिए सबसे अधिक विदेशी रोगी आते हैं। दुनियाभर में बसे भारतवंशी भी अब यहां पर इलाज के लिए आने लगे हैं। राजधानी के अपोलो अस्पताल से जुड़े हुए मशहूर प्लास्टिक सर्जन डॉ. अनूप धीर कहते हैं कि उनके पास हर महीने कुछ विदेशी रोगी इलाज के लिए आ जाते हैं।
अगर हमारे यहां भी इलाज सस्ता होता रहे तो यकीनन देश मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में लंबी सफल छलांग लगाने की स्थिति में होगा। भारत के पास अत्यधिक योग्य चिकित्सा पेशेवर और अत्याधुनिक उपकरण हैं। इसके अलावा, भारत स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता किए बिना अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में कम खर्चीला उपचार विकल्प प्रदान करता है। भारत में इलाज का खर्च अमेरिका के मुकाबले करीब एक चौथाई है। यदि हम इस मोर्चे पर संभल कर चले तो फिर इलाज के लिए रोगी थाईलैंड, सिंगापुर, चीन और जापान जैसे देशों की बजाय भारत का ही रुख करने लगेंगे। ये सभी देश विदेशी रोगियों को अपनी तरफ खींचने की चेष्टा तो कर ही रहे हैं। मेडिकल टूरिज्म सालाना अरबों डॉलर का कारोबार है। इस पर भारत को अपनी पकड़ मजबूत बनानी होगी। इस क्षेत्र में भारत के सामने तमाम संभावनाएं हैं। दरअसल अब सारी दुनिया के लोग बेहतर इलाज के लिए अपने देशों की सरहदों को लांघते हैं।
लेकिन, अपने यहां भारत के अस्पतालों की साफ-सफाई और नर्सिंग व्यवस्था में सुधार तो करना ही होगा I
भारत में इलाज की बेहद कम लागत, उत्तम चिकित्सा तकनीकों और उपकरणों की उपलब्धता के चलते विदेशी मरीज यहां पर इलाज के लिए आते हैं। उन्हें यहां पर भाषा की समस्या से भी ज्यादा जूझना नहीं पड़ता। यहां पर अंग्रेजी बोलने वाले हर जगह मिल ही जाते हैं। यानी विदेशों से आए रोगियों के लिए भारत एक उत्तम स्थान है। कोरोना के आने से पहले भारत में मेडिकल टुरिज्म का बाजार 9 अरब डॉलर यानी 68 हजार 400 करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान था। लेकिन, कोरोना ने इस पर ब्रेक लगा दिया। जानकारों का कहना है कि दुनियाभर में हर साल एक-सवा करोड़ से ज्यादा लोग इलाज के लिए दूसरे देशों में जाते हैं।
अब हमें मेडिकल टूरिज्म को और मजबूत गति देनी होगी। हमें अपने मेडिकल क्षेत्र में फैली बहुत सी कमियों में सुधार भी करना होगा। हमारे यहां के कुछ सरकारी तथा निजी अस्पतालों में मेडिकल लापरवाही और मरीजों और उनके सम्बन्धियों के साथ दुर्व्यवहार के केस बढ़ते ही जा रहे हैं। निजी अस्पतालों में इलाज भी तेजी से क्रमश: महंगा होता जा रहा है। अब लगभग हर दूसरे दिन किसी अस्पताल में रोगियों के परिजनों और डॉक्टरों में मारपीट के समाचार भी मिलते रहते हैं। डॉक्टरों ने अपनी सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा कर्मी और बाउंसर भी रखने चालू कर दिए हैं। कहना न होगा कि डॉक्टरों और रोगियों के बीच झगड़ों के समाचार सुनकर विदेशी भारत में इलाज के लिए आने से पहले दस बार सोचते होंगे।देश के मेडिकल टूरिज्म में नई जान फूंकने के लिए केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य, विदेश, गृह और पर्यटन मंत्रालयों को मिल-जुलकर पहल करनी होगी। विदेशी रोगियों को तुरंत वीजा सुविधा देने के साथ-साथ यहां पर उन अस्पतालों पर भी नजर रखने की आवश्यकता है,जहां पर ये इलाज के लिए आते हैं। विदेशी रोगियों को बिचौलियों से भी बचाना होगा।
इसके साथ ही, विदेशी रोगियों का इलाज कुछ बड़े सरकारी अस्पतालों में ही करने के लिए अलग विंग भी शुरू किया जा सकता है। दिल्ली के एम्स या राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) जैसे अस्पतालों में भी विदेशी रोगियों का इलाज हो सकता है। इनसे इलाज के बदले में मार्केट दर से पैसा लिया जाए। इस तरह के कदम उठाकर यह सरकारी अस्पताल अपने को आत्मनिर्भर बनाने की स्थिति में भी होंगे। विदेशी रोगियों को एम्स तथा आरएमएल से काबिल डॉक्टर तो सारे संसार में मुश्किल से ही मिलेंगे।
अगर बात मेडिकल टूरिज्म से हटकर करें तो भारत के टूरिज्म सेक्टर में आगे बढ़ने की अपार संभावनाएं हैं। यह सबको पता है। हमारे यहां सब कुछ तो है। यहां पर घने जंगलों में विचरण करते जानवर हैं, समुद्री तट हैं, पर्वत हैं, नदियां हैं मंदिर, मस्जिद, बुद्ध विहार, गिरजाघर हैं। हमारे देश से बेहतर और विविध डिशेज कहीं हो ही नहीं सकतीं। बुद्ध और गांधी के भारत में कौन सा सच्चा घुमक्कड़ आना नहीं चाहेगा।
भारत में विदेशी पर्यटकों की आवक तो हर सूरत में बढ़ानी होगी। हमारे यहां पर जितने महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं, उस अनुपात में हमारे देश में पर्यटक नहीं आते। भारत में ताजमहल, गुलाबी नगरी जयपुर, पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग, असीमित जल का क्षेत्र, कन्याकुमारी, पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर समेत अनगिनत अहम पर्यटन स्थल हैं। इनके अलावा भारत में भगवान बुद्ध से जुड़े अनेक अति महत्वपूर्ण स्थल हैं। भारत में बौद्ध के जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थलों के साथ एक समृद्ध प्राचीन बौद्ध विरासत है। हम बौद्ध की भूमि होने के बावजूद दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों को आकर्षित करने में क्यों असफल रहे। भारतीय बौद्ध विरासत दुनिया भर में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत रुचिकर है। बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। भगवान बुद्ध ने कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
इतना सब कुछ होने के बावजूद हमारे यहां विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा सालाना तीन करोड़ तक भी नहीं पहुंचता। बेशक, ये विचारणीय बिन्दु है। इस पर सबको सोचना होगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)