कोरोना दुष्काल के दौरान और उसके बाद पूरी दुनिया इस बात को लेकर हैरत में थी कि सघन आबादी वाले और अपर्याप्त चिकित्सा सुविधा वाले देश भारत में कोरोना दुष्काल के बीच और उसके बाद मृत्यु दर कम कैसे रही? इसके विपरीत कम आबादी वाले संपन्न व पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं वाले देशों में मौत का आंकड़ा कहीं ज्यादा रहा। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च अर्थात् आईसीएमआर के एक जर्नल ने हाल ही इस रहस्य को उद्घाटित किया है, इसे कई देशों ऑन साझा भी किया है।
संसार के कई देशों के वैज्ञानिक अब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारतीय व्यंजन स्वाद के साथ तमाम चिकित्सीय गुणों से भरपूर हैं, लेकिन विडंबना यही है कि भारत में विदेशी शासन के लंबे दौर ने ऐसी दासता की मानसिकता को जन्म दिया कि हम अपनी समृद्ध परंपरा व खानपान को छोड़कर विकृतियां पैदा करने वाली खाद्य शृंखला को अपना रहे हैं। हम अपनी विरासत पर तब गर्व करते हैं जब पश्चिमी अनुसंधान व शोध उस पर मोहर लगा देते हैं।
एक ताजे वैज्ञानिक अध्ययन ने कई देशों में शोध-सर्वेक्षण के बाद माना कि भारतीय भोजन स्वास्थ्यवर्धक हैं और वैकल्पिक उपचार पद्धति के रूप में उपयोगी भी हैं । ब्राजील, जॉर्डन, सऊदी अरब, स्विट्ज़रलैंड और भारतीय वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किये अध्ययन की रिपोर्ट हाल में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च अर्थात् आईसीएमआर के एक जर्नल में प्रकाशित हुई हुई है। इस अध्ययन में जहां अधिक मृत्यु दर वाले अमेरिकी व यूरोपीय देशों को शामिल किया गया तो दूसरी ओर कम मृत्यु प्रतिशत वाले भारत को भी। ज्यादा मृत्यु दर वाले अमेरिका व यूरोप के चार देशों की बारह खानपान की वस्तुओं के रोजमर्रा के उपभोग के आंकड़े जुटाये गये। वास्तव में यह अध्ययन न्यूट्रिजेनोमिक्स से संबंधित है, जिसके अंतर्गत जीनोम पर खाने से होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।
इस तरह भारतीय खानपान न्यूट्रिजेनोमिक्स की कसौटी पर खरे पाये गये। भारतीयों की खानपान की शैली व गुणवत्ता ने पश्चिमी वैज्ञानिकों को चौंकाया है। बताया जाता है कि कोरोना दुष्काल के दौरान दवा व उपचार के साथ भारतीय खानपान ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया है। इस खाने में चाय, हल्दी, राजमा-चावल व इडली-सांभर भी शामिल हैं।
इस वैज्ञानिक अध्ययन ने हमारे आयुर्वेद, योग व पुरखों के ज्ञान की वैज्ञानिकता पर मोहर लगायी है। निस्संदेह, इम्यूनिटी बढ़ाने के गुण के कारण पूरी दुनिया में इनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि विश्वव्यापी कोरोना दुष्काल के दौरान भारत में शेष दुनिया की तुलना में कम मौतें हुई थीं। पश्चिमी देशों में मौतें पांच से आठ गुना ज्यादा थीं। दुनिया इस बात को लेकर हैरत में थी कि कम आबादी वाले देशों में मौत का आंकड़ा अधिक था, लेकिन घनी आबादी वाले भारत में लोग महामारी के साथ मजबूती के साथ लड़ रहे थे।
वहीं दूसरी ओर भारत में इस महामारी से जूझने के लिये जरूरी दवा, ऑक्सीजन व आपातकालीन सुविधाओं का लगभग अभाव ही था। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने शोध का निर्णय लिया कि क्या भारतीयों के आहार की इम्यूनिटी बढ़ाने की क्षमता से ही कोरोना की गंभीरता और मौतों का मुकाबला किया जा सका। लेकिन जोखिम और भोजन को जोड़कर जब अध्ययन किया गया तो वैज्ञानिकों ने पाया कि टीकाकरण व अन्य उपायों सहित भोजन की आदतों और परंपरागत खानपान ने भारतीयों को उच्च मृत्यु दर से बचाया है।