जन पार्षद की अवधारणा : जन पार्षद की जिम्मेदारी
- जन पार्षद, स्थानीय जनता के प्रति उत्तरदायी होगा।
- वह नगर निगम और दिल्ली के राजकाज की सभी व्यवस्थाओं के बारे में अपनी जानकारी बनाएगा और उसमें सतत बढ़ोत्तरी करेगा।
- साथ में स्थानीय जनता को भी इसके बारे में शिक्षित करेगा।
- नगर निगम के संचालन में निगम पार्षद की क्या भूमिका है, यह अपने लिए भी स्पष्ट करेगा और स्थानीय जनता को भी शिक्षित करेगा।
- अगर नव निर्वाचित निगम पार्षद, कमिश्नर या उसके ऊपर की राजसत्ता को अपने संविधानिक दायित्व का निर्वाह समुचित रूप से करवाने में अपने को अक्षम पाता है , तो जन पार्षदों को दबाव बनाने के लिए, स्थानीय जनता के सहयोग से निगम पार्षद को अपने पद से त्यागपत्र देकर दोबारा चुनाव की मांग करनी चाहिए।
- अभी की जो वैधानिक व्यवस्था है उसमें सत्ता कमिश्नर के पास है। पार्षद का काम जनता का काम कमिश्नर के समक्ष रखकर उस पर कार्यवाही कराना है। उसकी स्वयं की कोई कार्यकारी भूमिका नहीं है। दूसरे शब्दों में पार्षद जनता के प्रति कमिश्नर को उत्तरदायी बनाने के लिए जनता का प्रतिनिधि और हथियार है।
- पार्षद फण्ड, पार्षद के काम का एक मामूली हिस्सा है। वह उसका मुख्य कार्य नहीं है। पिछले सभी वित्त आयोगों ने पार्षद फण्ड को समाप्त करने की अनुशंसा की है।
- निर्वाचित निगम-पार्षद को अपने काम में सहयोग और सलाह के लिए- वार्ड स्तर पर स्थानीय सलाहकार परिषद का गठन अधिकतम संभव जनतांत्रिक तरीके से करना चाहिए। इसमें सभी बूथ- एरिया के महिला पुरुष और युवा प्रतिनिधि होने चाहिए।
- निगम पार्षद को वार्ड लेवल सलाहकार परिषद के साथ मिलकर अपने क्षेत्र की समस्याओं और विकास कार्यक्रमों की प्राथमिकता तय करनी चाहिए। साथ ही क्षेत्र के विकास की एक योजना भी तैयार करनी चाहिए। इसी योजना के तहत स्थानीय विकास के कार्यक्रम एमसीडी और दिल्ली सरकार के द्वारा कराए जाने चाहिए।
- वर्तमान में जानकारी के अभाव में और राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में निगम पार्षद, स्थानीय वार्ड व जोन के स्तर पर, निगम की स्टैंडिंग कमेटी में और सदन में, अपनी नियामक भूमिका को प्रभावी रूप में निभाने में अक्षम साबित हुए है।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव देश की राजनीति के एक संगीन मोड़ पर हो रहे है। दिल्ली देश की राजधानी है। दिल्ली के निवासियों को न केवल एक आदर्श शहर बनाना है बल्कि शेष देश के सामने भी उदाहरण प्रस्तुत करना है, एक सुंदर शहर का, राजकाज की एक आदर्श व्यवस्था का।
कृपया निम्न चुनौतियों को अपनी निगाह में रखें
- दिल्ली में नयी सरकार से जो अपेक्षा थी, वह पूरी नहीं हो पाई है। यह सरकार एक बहुत बड़े राष्ट्र व्यापी जन आन्दोलन का नतीजा थी। इसलिए हमें इस आधार पर विचार करना होगा की भविष्य के जन संघर्षों की रूपरेखा और दिशा का निर्माण कैसे हो।
- दिल्ली में राज्य सरकार, नगर निगम और केंद्र सरकार के बीच लगातार मतभेद बने रहने के कारण दिल्ली का राज काज लगभग पंगु अवस्था में पहुंच गया। कोई भी पक्ष अपनी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है, न ही दोष आरोपण छोड़ कर मिल के कार्य करने को अपना लक्ष्य बनाने को तैयार है। इसलिए राज काज के पूरे ढांचे पर तात्विक दृष्टि से पुनर्विचार की आवश्यकता है।
- जिस झाड़ू को चुनाव चिह्न बनाकर नयी सरकार सत्ता में आई, उसका प्रयोग करने वाले सफाई कर्मी समाज को अपेक्षा थी की उनके साथ हुए अनेक सामयिक और ऐतिहासिक अन्यायों का प्रतिकार होगा और जीवन जीने के नए अवसर उनको प्राप्त होंगे। दुर्भाग्य है कि नगर निगम और दिल्ली सरकार के बीच चलते मतभेदों के कारण पिछले तीन वर्षों में सबसे ज्यादा उनको कष्ट उठाने पड़े।
- स्वच्छता अभियान के बावजूद दिल्ली शहर केंद्र सरकार की नाक के नीचे कूड़े और दुर्गन्ध से सड़ता रहा, डेंगू की मार झेलता रहा और तीनों स्तर की सरकारें बिलकुल असहाय नजर आयीं।
- दिल्ली की जनता को स्पष्ट हो गया कि चाहे विधायक हो, या निगम पार्षद या संसद सदस्य, दिल्ली के राज काज में इनकी भूमिका नगण्य है। सारे अधिकार अफसरशाही के हाथ में केन्द्रित हैं। उस पर लगाम लगाने का रास्ता किसी के पास नहीं है। इस संदर्भ में दूसरे -तीसरे और चौथे दिल्ली राज्य वित्तीय आयोग की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और दिली नगर निगम के अधिकारियों की संयुक्त कमिटी का गठन करके पिछले 15 वर्षों से इन्तजार कर रहे म्युनिसिपल रिफॉम्र्स के कार्यक्रम की ओर शीघ्र प्रभावी कार्यकारी कदम उठाये जाएं, जिससे नागरिक सुविधाओं में सुधार हो सके और दिल्ली शहर, भारत की राजधानी एक विश्व स्तर का शहर बनने की दिशा में ठोस कदम उठा सके।
- शहरी आवास और कौशल प्रशिक्षण, मुद्रा ऋण योजना जैसी घोषणाओं के बावजूद नीचे के तबकों को इनका कोई लाभ नहीं मिल पाया। दूसरी तरफ ऐसी स्थितियां तैयार हो रही हैं कि गरीब और दुर्बल तबकों का दिल्ली में रहना दूभर होता जा रहा है। इससे संदेह पैदा होता है कि क्या ऐसी योजना इस देश के प्रभु वर्ग द्वारा बनायी जा रही हैं, जिसके चलते रोजगार खोजने के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन का प्रवाह विपरीत हो जाए और आम गरीब नागरिक शहरों को खाली करके वापिस गांवों और कस्बों की तरफ लौटने को मजबूर हो जाए। विगत वर्षों में खास तौर से कॉमनवेल्थ गेम्स के समय ऐसी कहानी रची गयी थी।
- ऐसी सम्भावना है कि नए सन्दर्भों में नए छद्म रूपों का सहारा लेकर इस इतिहास को नए रूप से दोहराया जाए और स्मार्ट सिटी के नारे के तहत दिल्ली के गरीबों को उनके मूल अधिकारों से वंचित करके वापसी गावों की तरफ खदेडऩे का प्रयास किया जाए।
उपरोक्त चुनौतियों के मद्देनजऱ हमने दिल्ली जन पार्षद चौपाल के गठन की सार्वजनिक घोषणा की है।
भारतीय न्याय मंच की भूमिका
- यह मंच एक गैर दलिए गैर चुनावी मंच है जिसका मुख्य काम नेतृत्व विकास, प्रशिक्षण और लोक शिक्षण है।
- भारतीय न्याय मंच किसी भी उम्मीदवार को स्वयं जन पार्षद घोषित नहीं करेगा, यह तो जनता और उम्मीदवार के बीच का परस्पर अनुबंध है। हम केवल जन पार्षद के जो मानदंड हमने निर्धारित किये हैं उनको जनता के बीच में प्रसारित करेंगे। अब जनता को यह तय करना है कि जो व्यक्ति अपने को जन पार्षद घोषित कर रहा है, वह इन मानदंडों पर खरा उतरता है, या नहीं।
- दिल्ली में जो नागरिक जन पार्षद की अवधारणा से सहमत होते हुए अपने को जन पार्षद घोषित करेंगे वे अपना मंच स्वयं बनायेंगे। यह एक स्वतंत्र मंच होगा, भारतीय न्याय मंच की इसमें प्रेरक और सहयोगी भूमिका होगी। नियंत्रण और निर्णय की कोई भूमिका नहीं होगी।
- अन्य सहमना संगठनों से मिलकर हम जन पार्षद की अवधारणा को प्रसारित-प्रचारित करेंगे।
- साथ में दिल्ली के वर्तमान राजनीतिक ढांचे में बदलाव, मतदाता को नागरिक में बदलना, वार्ड लेवल राज काज की महत्ता और दिल्ली में नगर निगम के अधिकारों को वापिस लेकर नागरिक स्वराज की स्थापना के लिए आम।
- यह केवल शुरुआती मानदंड हैं। आगे दिल्ली के नागरिकों के सुझावों के आधार पर इनका विस्तार किया जायेगा।
- जिस क्षेत्र में हमें बुलाया जाएगा उसमें जाकर वहां की स्थानीय जनता को अपने मत से परिचित कराने के लिए हम तत्पर रहेंगे।