नैतिकता का हनन या न्याय की जीत
राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम ब्रम्हास्त्र से करेंगे मोदी का शिकार
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आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
राहुल गांधी की राहत पर प्रश्न चिन्ह भी लगे हैं, कोई न्याय कह रहा है तो कोई नैतिकता का प्रश्न भी उठा रहा है। लोकतंत्र में सबको अपने-अपने विचार रखने की आजादी है। फिलहाल कांग्रेस को संजीवनी तो जरूर मिली हुई है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ब्रम्हास्त्र पर सवार होकर राहुल गांधी मोदी का राजनीतिक और चुनावी शिकार करेंगे? इस मिले अवसर का राहुल गांधी कितना लाभ उठायेंगे?
राहुल गांधी को मोदी सरनेम वाले प्रकरण पर राहत देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज बीआर गवई की परिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेसी रही है। गवई ने खुद कहा था कि उनके पिता कांग्रेसी थे, उनके पिता का कांग्रेस से लगाव सर्वश्रेष्ठ था, उनके भाई आज भी कांग्रेसी हैं। गवई के भाई कांग्र्रेस के समर्पित कार्यकर्ता और नेता हैं। गवई ने यह रहस्योधाटन करते हुए गर्व की अनुुभूति की थी या नहीं, यह मैं नहीं कह सकता। लेकिन गवई के लिए यह गर्व की बात तो जरूर रही होगी। गवई के विकास में कई सहुुलियतें भी मिली होगी। क्योंकि जब किसी के पिता और भाई राजनीति में हों तो कई सुविधाएं और लाभ मिलने में आसानी होती है। भारत जैसे देश में जहां पर वैध और कानूनी कार्य के लिए भी परेशान किया जाता है और बिना पैरबी व पहुंच के लोग लाचार रहते हैं, विवश होकर रिश्वतखोरी के शिकार हो जाते हैं। राजनीतिक पहुंच है तो कम से कम वैध और कानूनी ढंग से जरूरी कार्य आसान हो जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जज नैतिकता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करने की परमपरा का वाहक होते हैं। किसी पक्ष और किसी विपक्ष के प्रति किसी तरह का विचार रखना प्रतिबंधित हैं। सिर्फ गुण-दोष के आधार पर सुनवाई और फैसले की उम्मीद होती है। चूकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच की अध्यक्षता बीआर गवई के पास ही थी। इसलिए गवई से सर्वश्रेष्ठ नैतिकता को स्थापित करने की उम्मीद थी। उन्होंने नैतिकता स्थापित करने की कोशिश जरूर की थी लेकिन उनकी कोशिश क्या अधूरी थी? उन्होंने मंशा जतायी थी कि अगर पक्ष और विपक्ष को आपत्ति है तो वे राहुल गांधी की सजा पर सुनवाई से हट सकते हैं। लेकिन दोनों पक्षों ने गवई से परेशानी नहीं होने की बात कही थी और गवई ने दोनों पक्षों की कसौटी पर सुनवाई जारी रखी थी।
लेकिन एक प्रश्न स्वस्थ परमपरा को लेकर उठता है। नैतिकता स्थापित करने का प्रश्न बीआर गवई ने पक्ष और विपक्ष पर क्यों छोड़ दिया? यानी राहुल गांधी और पुर्नेश मोदी के वकीलों पर क्यों छोड़ दिया? नैतिकता किसी अन्य की कसौटी और विचार से स्थापित नहीं होती है। नैतिकता स्वयं के निर्णय और सक्रियता से सुनिश्चित होती है, स्थापित होती है। विचारवान जज पक्ष और विपक्ष की तरफ से किसी भी प्रकार के संबंध होने पर मुकदमें की सुनवाई से स्वयं हट जाते हैं, मुकदमें से हटने के लिए किसी पक्ष और विपक्ष से स्वीकृति नहीं लेते हैं। बीआर गवई को सुनवाई से स्वयं हट जाना चाहिए था। अगर गवई स्वयं सुनवाई से हट जाते तो फिर न्यायिक नैतिकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत होता और न्यायिक इतिहास में उनका नाम अमर होने की श्रेणी में दर्ज होता। उदाहरण यहां पर मैं भगवान राम को देता हूं। भगवान राम ने अयोध्या की जनता के प्रश्न पर माता सीता का त्याग किया था। उन्होंने इसके लिए अयोध्या की जनता की रायशुमारी नहीं ली थी और न ही उन्होंने किसी पक्ष से सलाह ली थी कि मुझे ऐसा करना चाहिए या नहीं करना चाहिए।
जनचर्चा क्या थी? इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जिस दिन गवई ने रहस्योधाटन किया था कि उनके पिता कांग्रेसी थे और उनका भाई कांग्रेसी है उसी दिन से न्याय होने और न होने पर जन चर्चा शुरू हो गयी थी। जन चर्चा यह थी कि अब राहुल गांधी को राहत मिल ही जायेगी। राहुल गांधी की इच्छा पूर्ति का जरिया मिल ही गया। अब जनचर्चा यह कह रही है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो स्वाभाविक है। जनचर्चा यह भी कह रही है कि ऐसे प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम नैतिकता अपनानी चाहिए और न्याय का सर्वश्रेष्ठ पायदान स्थापित करना चाहिए। जनता का एक बहुत बडा वर्ग यह मानता है कि राहुल गांधी अगर नेहरू खानदान का व्यक्ति और कांग्रेस जैसी पार्टी का सर्वश्रेष्ठ नेता नहीं होता तो फिर सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी का मुकदमा सुनवाई के लिए इतनी तेज सूचीबद्ध होता ही नहीं। जनचर्चा के विषय और चिंतन को कौन खारिज कर सकता है?
गवई की बेंच ने राहुल गांधी को मिली हुई अधिकतम सजा पर प्रश्न खड़ा किया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राहुल गांधी को अधिकतम सजा क्यों मिली हुई है? अधिकतम से थोड़ी कम सजा मिलती तो राहुल गांधी की सदस्यता नहीं जाती। निचली अदालत की समझ पर भी प्रश्न खड़ा किया गया है। राहुल गांधी आदतन अपराधी की श्रेणी में है। ऐसा तर्क निकली अदालत में पुर्नेश मोदी ने दिया था। पुर्नेश मोदी की बात को यहां पर रखें तो यह साबित होता है कि राहुल गांधी को अपनी भाषा पर नियंत्रण नहीं है, वह शिष्टाचार को नहीं मानता, उसकी हरकतें शिष्टाचार और नैतिकता को शर्मसार करती हैं। बार-बार झूठ बोलता है। संसद में प्रधानमंत्री को चिढाने के लिए आंखें भी मारता है। सुप्रीम कोर्ट को भी हथकंडा बना देता है, अपने झूठ को साबित करने के लिए राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट को भी हथकंडा बना लेता है, घसीट लेता है। इस प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट में रहुल गांधी को माफी भी मांगनी पडी थी। क्या सुप्रीम कोर्ट को राहुल गांधी की माफी मांगने वाला अपराध नहीं मालूम है?
सुप्रीम कोर्ट के न्याय से राहुल गांधी को एक अवसर मिला है। काग्रेस को मजबूत करने और अपने आप को प्रधानमंत्र.ी के तौर पर मजबूती से स्थापित करना का असवर मिला हुआ है। राहुल गाधी को राहत मिलने पर राजनीति तेज हो गयी है। राहुल गांधी की चेहरे खिले हुए हैं, कांग्रेसियों के चेहरे चमके हुए है। जगह-जगह मिठाइयां बांटी जा रही है, खुशिया मनायी जा रही है। कांग्रेसी जगह-जगह पर मोदी के खिलाफ आग उगल रहे हैं। मोदी का बाजा बजने की घोषणा की जा रही है।
हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले आने वाले हैं। इन फैसलों से नरेन्द्र मोदी की किस्मत भी तय होगी। क्योंकि लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए कोई एक नहीं बल्कि कई कारको की भूमिका होती है। मोदी और सुप्रीम कोर्ट के बीच पहले से छत्तीस का आकंडा है। न्यायिक नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और नरेन्द्र मोदी के बीच शह-मात की राजनीति और खेल जारी है। सुप्रीम कोर्ट से मिले अवसर को राहुल गांधी वोट में कितना तब्दील करेंगे? असली बात यही है।
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