Shadow

क़ानून : सहज, सरल और बोधगम्य हो

यह शत प्रतिशत सही सोच है कि देश में कानून की व्याख्या और क़ानून उस भाषा में सहजता-सरलता से पेश होना चाहिए, जिसे देश का आम आदमी भी समझ सके। किसी भी लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके नागरिकों को आर्थिक, सामाजिक और कानूनी न्याय सहजता से मिल सके। इसी कड़ी में देश के अंतिम व्यक्ति को न्याय प्रक्रिया से सहजता से न्याय मिलना भी उतना ही जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय अधिवक्ता सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की उपस्थिति में कहा कि सरकार की कोशिश है कि कानूनों को आसान व भारतीय भाषाओं में बनाने का प्रयास किया जाए। निस्संदेह, यह एक सार्थक पहल कही जाएगी। निश्चित रूप से कानून का मसौदा देश में उस भाषा में सहजता-सरलता से उपलब्ध होना चाहिए, जिसे देश का आम आदमी भी समझ सके।

सही मायने में यही सोच देश के शीर्ष स्वतंत्रता सेनानियों की भी थी, जो खुद परतंत्र भारत में अच्छे अधिवक्ता थे। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि फैसलों की अनुवादित प्रति वादी की मातृभाषा में भी उपलब्ध करायी जाए। विडंबना यही है कि आज आजादी के सात दशक बाद भी अधिकतर सरकारी काम व न्यायिक व्यवस्था के फैसले अंग्रेजी में ही उपलब्ध होते हैं। व्यक्ति की अपनी मातृभाषा में मिला न्यायिक निर्णय उसे समझने में संतुष्टि देता है और उसके विभिन्न पहलुओं से गहनता के साथ रूबरू कराता है। इस बाबत प्रधानमंत्री का कहना था कि सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि कानून को दो तरह से बनाया जाए। कानून का एक मसौदा उस भाषा में हो, जिसका उपयोग न्यायालय करता है। दूसरा उस भाषा में जिसे आम आदमी सहजता से समझ सके।

वैसे आदर्श न्याय प्रणाली का तकाजा तो यही है कि कानून की भाषा निर्विवाद रूप से आम आदमी की समझ में आने वाली हो। कोशिश हो कि व्यक्ति को उसी की भाषा में न्याय मिल सके। आजादी का अमृतकाल मना रहे देश का नागरिक यदि इस सुविधा से वंचित है तो नीति-नियंताओं के लिये चिंता का विषय होना चाहिए। हालांकि, इस दिशा में एक सार्थक पहल यह हुई है कि देश की शीर्ष अदालत ने न्यायिक फैसलों का हिंदी समेत कई क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कराने का फैसला किया है। इसके बावजूद देश के विभिन्न राज्यों में स्थित उच्च न्यायालयों में राज्य की मुख्य भाषा में न्याय मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। वैसे दुनिया के तमाम देशों में स्थानीय भाषा में कानून बनाने व न्याय देने की सार्थक पहल सिरे चढ़ी है। जरूरत इस बात की भी है जो अनुवाद अंग्रेजी से हिंदी या अन्य भाषा में हो, वह भी सरल व सहज हो।

भाषा की जटिलता कई बार बुरा अनुवाद उपलब्ध कराती है। जो कई बार अनुवाद की गई भाषा से भी अधिक जटिल होता है। राजग सरकार में पिछले दिनों कुछ राज्यों में इंजीनियरिंग व मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में होनी संभव हुई है। इसी तरह की पहल कानून बनाने व न्याय देने में भी हो तो आम आदमी को खासी राहत मिलेगी। खासकर कम पढ़े-लिखे व ग्रामीण परिवेश के अंग्रेजी न जानने वाले लोगों तो इससे राहत जरूर मिलेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *