–रमेश शर्मा
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अधिकाँश क्राँतिकारियों का बलिदान सत्ता प्राप्ति के लिये नहीं अपितु इस राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया । क्राँतिकारी ऊधमसिंह वे संकल्पवान बलिदानी हैं जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लंदन जाकर लिया और जनरल डायर को लंदन में गोली मारी । यह घटना 13 मार्च 1940 की है । हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि वह जनरल डायर दूसरा था । और उसकी मौत 1927 मे हो गई थी । पर यह सच नहीं लगता । चूंकि क्राँतिकारी ऊधम सिंह ने वर्षों लंदन में रहकर डायर का पीछा किया था ।
क्राँतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले अंतर्गत सुनम गाँव में हुआ था | उनके जन्म के दो वर्ष बाद ही माँ का निधन हो गया था और पिताजी सरदार तेजपाल सिंह का निधन 8 साल बाद 1907 हो गया ।
माता पिता की मृत्यु के बाद उन्हें अमृतसर के खालसा अनाथालय भेज दिया गया । उनके बचपन का नाम शेर सिंह था । पर वे इतने चंचल थे कि उन्हें उधम सिंह के नाम से पुकारा जाने लगा और आगे चलकर यही ऊधम सिंह उनका नाम हो गया | उन्होंने 1918 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की ।
अभी वे अपने जीवन और भविष्य के बारे में विचार कर ही रहे थे कि जलियाँ वाला बाग कांड हो गया । यह घटना 13 अप्रैल 1919 की थी । उस दिन जलियावाला बाग़ में बैशाखी पर्व का आयोजन था एक विशाल सभा का आयोजन किया था । जलियावाला बाग़ में परिवार सहित हजारों लोग जमा थे स्त्री बच्चे बूढ़े युवा सभी । समय उधम सिंह उस सभा मे थे । अचानक अंग्रेजी फौज आ धमकी निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चला दीं । सैकड़ों बेगुनाह लोगों के प्राण गये । मरने वालों में दुधमुँये बच्चे भी थे । इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था । ऊधमसिंह ने इस घटना का बदला लेने की ठान ली’ । जनरल माइकल ओडायर उस समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था । उसी के आदेश पर यह गोली चालन हुआ था ।
उधम सिंह उससे बदला लेने का मौका ढूँढने लगे । पर वह कड़ी सुरक्षा के बीच रहता था । कुछ दिनों पश्चात् ही वह लंदन चला गया । क्राँतिकारी ऊधमसिंह ने एक पिस्तौल भी खरीद ली थी । लेकिन वे पकड़े गये । और जल्दी रिहा भी हो गये ।
जेल से छुटने के बाद इसके बाद वे सुनाम आये फिर अमृतसर में उधम सिंह ने एक दुकान खोलकर पेंटर का काम करने लगे । अवसर मिलते ही वे पहले अफ्रीका गये फिर नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका होते हुये सन् 1934 में लंदन पहुंचे । वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने एक पिस्टल और छह गोलियाँ खरीदीं और उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे । उन्हें यह अवसर 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में मिला । जहां डायर भी एक वक्ता था। उधम सिंह बैठक स्थल पर पहुंचे, रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी पुस्तक में छिपा रखा था । अवसर मिलते ही उन्होंने गोलियाँ डायर के सीने में उतार दी वह वहीं ढेर हो गया । क्राँतिकारी ऊधमसिंह ने भागने की कोशिश नहीं की । वे दीवार के सहारे खड़े हो गये । गिरफ्तार हुये और 31 जुलाई 1940 को उन्हें फाँसी दी गयी ।